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दंगों का दर्द और बंटा हुआ समाज... दंगा प्रभावित नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में MCD चुनावों को लेकर ऐसा है माहौल

फरवरी 2020 में हुए दंगों के बाद राजधानी दिल्ली में पहला चुनाव है. उस बुरे वक्त को बीते हुए भले ही दो साल हो गए हैं लेकिन लोगों के जहन में उसकी कड़वी यादें अबतक हैं. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली की जिन सीटों पर दंगों का सबसे ज्यादा असर हुए था वहां अब क्या चुनावी माहौल है इस ग्राउंड रिपोर्ट से समझिए.

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में MCD चुनाव पर दंगों का पूरा-पूरा असर है नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में MCD चुनाव पर दंगों का पूरा-पूरा असर है
Vishnu Rawal
  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:43 AM IST

फरवरी 2020, दिल्ली दंगे. पढ़ते ही जो तस्वीरें सामने आईं वे भले दो साल पुरानी हो चुकी हैं, लेकिन नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के लोगों के लिए वो अब भी जैसे बीते कल-परसों की ही बात है. इन दंगों के दो साल बाद अब दिल्ली में पहला चुनाव है, ऐसे में सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि दंगों का दर्द झेलने वाले इस इलाके का मतदाता किसकी तरफ रुख करेगा.

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MCD चुनाव 2022 के लिए हर पार्टी, उम्मीदवार दम खम लगाकर जीत के दावे के साथ मैदान में है. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में सीट पर दंगे का कितना और कैसा असर है, परिसीमन के क्या नफा-नुकसान हैं, इसको समझकर ही पार्टियों ने उम्मीदवारों का भी चुनाव किया है.

MCD की 14-15 सीटों पर पड़ा था दंगे का असर

दंगों की बात करें तो इसका असर नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के कई इलाकों पर पड़ा था. MCD सीटों के नजरिए से देखें तो ये इलाके करीब 14-15 सीटों में सिमटे हैं. ज्यादातर इलाकों में मिली-जुली आबादी रहती है और दोनों ही समुदाय के लोगों के जहन में दंगें से जुड़ी कोई ना कोई याद अबतक ताजा है.

दंगों का चुनाव पर क्या असर है, ये समझने के लिए हम उन इलाकों में गए जहां से दंगे शुरू हुए और जिन-जिन इलाकों पर उनका ज्यादा असर पड़ा. इसमें सीलमपुर, मौजपुर, नेहरू विहार आदि इलाके शामिल हैं.
 
इन इलाकों में घूमने पर, लोगों से बात करने पर ये पता चलता है कि यहां दिल्ली MCD चुनाव में मुख्य टक्कर 15 साल से सत्ता में मौजूद भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच है. लेकिन नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में कुछ सीटों पर कांग्रेस का भी दबदबा है. एक सीट को ऐसी भी है यहां निर्दलीय उम्मीदवार को AAP कैंडिडेट ने सपोर्ट कर दिया है. जिन 15 सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM दिल्ली में चुनाव लड़ रही है, उसमें से ज्यादातर इसी क्षेत्र की हैं.

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कांग्रेस और एआईएमएम के मुस्लिम प्रत्याशी दिल्ली दंगों और तब्लीगी जमात के मरकज प्रकरण को उठाकर आम आदमी पार्टी को घेर रहे हैं. ऐसे में अरविंद केजरीवाल के उन बयानों के पुराने वीडियो को निकालकर वायरल किया जा रहा, जिसमें तब्लीगी जमात के मरकज को लेकर दिए थे. मुस्लिम इलाकों में आम आदमी पार्टी इस मुद्दे घिरी हुई नजर आ रही तो बीजेपी भी ध्रुवीकरण के सहारे मुस्लिम इलाके में जीत की उम्मीद लगे हैं. ऐसे में देखना है कि एमसीडी चुनाव में दंगे प्रभावित क्षेत्रों में कौन बाजी मारता है? 

सीलमपुर (वार्ड नंबर 225)

दंगों की शुरुआत का पहला प्वाइंट यही थी. इसी वार्ड में पड़ने वाले जाफराबाद के इलाके में वह मेट्रो स्टेशन मौजूद है, जिसके नीचे CAA-NRC के विरोध में चक्काजाम किया गया था. फिर इनके खिलाफ मौजपुर में लोगों ने धरना दिया था. इसके बाद स्थिति बिगड़ी और बात पथराव से आगजनी-गोलीबारी तक कब पहुंच गई, किसी को समझ नहीं आया.

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के सीलमपुर वॉर्ड मुस्लिम बहुल इलाका है. यहां से कुल 7 उम्मीदवार मैदान में हैं. ये सीट महिला उम्मीदवार के लिए रिजर्व है. यहां की मौजूदा पार्षद हज्जन शकीला हैं जो बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर चुनाव जीती थीं. लेकिन अब निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर मैदान में हैं. यहां AAP आदमी पार्टी की उम्मीदवार ने खुद का प्रचार बंद करके हज्जन शकीला को सपोर्ट कर दिया है.

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जिस निर्दलीय उम्मीदवार हज्जन शकीला की यहां इतनी चर्चा हो रही है वह पहले दो बार पार्षद रह चुकी हैं. वह और उनके पति हाजी अफजाल पहले बहुजन समाज पार्टी और फिर आम आदमी पार्टी में थे. AAP से टिकट नहीं मिलने के बाद इसबार हज्जन ने निर्दलीय (ऑटो रिक्शा चुनाव चिन्ह) पर्चा भरा.

प्रमुख उम्मीदवार
पार्टी उम्मीदवार
कांग्रेस मुमताज
बीजेपी सीमा शर्मा
निर्दलीय हज्जन शकीला
AIMIM शबनम

सीलमपुर का चुनावी समीकरण

सीलमपुर इलाके से दंगों की शुरुआत जरूर हुई, लेकिन यहां इसका उतना असर नहीं था. कुल 44 हजार वोटों में से 29 हजार के करीब मुस्लिम और 15 हजार के करीब हिंदू वोट हैं. इसलिए यहां बीजेपी ने हिंदू प्रत्याशी को उतारा है. दरअसल, कांग्रेस, AIMIM समेत बाकी सभी उम्मीदवार मुस्लिम हैं. ऐसे में अगर मुस्लिम वोट बंटा तो बीजेपी की जीत के चांस हैं. दूसरी तरफ यहां AIMIM भी मजबूती से ताल ठोक रही है. खुद ओवैसी ने यहां जनसभा कर अपनी उम्मीदवार के लिए वोट मांगे थे.

परिसीमन का क्या इस सीट पर कोई असर पड़ा? इसके जवाब में ज्यादातर पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि ये पूरा इलाका ही मुस्लिम बहुल है इसलिए यहां इलाके को काटने और नए जोड़ने से बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ा है.

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प्रमुख इलाके- सीलमपुर, शास्त्री पार्क, जाफराबाद (गली नंबर एक से 12 तक)
कुल वोट - 42 से 44 हजार के करीब

कुल सात उम्मीदवारों में से सिर्फ बीजेपी ने हिंदू कैंडिडेट पर भरोसा जताया है. बता दें कि सीलमपुर ऐसी विधानसभा सीट है जहां कभी बीजेपी नहीं जीत पाई, हालांकि, पार्षदी में उसको कामयाबी पहले भी मिल चुकी है.

चौहान बांगर (वार्ड नंबर 227)

मुस्लिम बहुल इस सीट से मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में माना जा रहा है. महिला सीट रिजर्व होने की वजह से कांग्रेस ने यहां मौजूदा पार्षद चौधरी जुबैर अहमद की पत्नी शागुफ्ता चौधरी को उतारा है. जुबैर दो साल पहले हुए उपचुनाव में जीतकर पार्षद बने थे. शागुफ्ता चौधरी के ससुर चौधरी मतीन भी कांग्रेस के सीनियर नेता हैं और इलाके से विधायक भी रह चुके हैं.

दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने इलाके के मौजूदा विधायक अब्दुल रहमान की पत्नी आसमां रहमान को उम्मीदवार बनाया है. वहीं बीजेपी ने भी इस सीट पर मुस्लिम चेहरे (सबा गाजी) पर दांव लगाया है. सबा गाजी पसमांदा मुस्लिम हैं. मुस्लिम समाज के इस पिछड़े वर्ग को बीजेपी अपने वोटबैंक का हिस्सा बनाना चाहती है. हालांकि, कांग्रेस और AAP दोनों का दावा है कि बीजेपी इस मुकाबले में कहीं से कहीं तक नहीं है.

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प्रमुख उम्मीदवार
पार्टी उम्मीदवार
कांग्रेस शागुफ्ता चौधरी
बीजेपी शबा गाजी
AAP आसमां रहमान

प्रमुख इलाके - चौहान बांगर का पूरा इलाका, जाफराबाद (गली नंबर 13 से 52 तक)
कुल वोट- 44 हजार के करीब

चौहान बांगर का चुनावी समीकरण

सीलमपुर के बगल वाले इस इलाके पर दंगों का असर रहा था. यहां से ही सबसे पहले आगजनी, पत्थरबाजी और गोलीबारी की खबरें मिली थीं. यहां बीजेपी का कड़ा विरोध है. इसी के साथ दंगे के बाद से AAP के खिलाफ भी लोगों में गुस्सा है. AAP पर परिवारवाद के आरोप भी लग रहे हैं कि विधायक की पत्नी को ही पार्षदी का टिकट दे दिया गया है. आसमां रहमान के पति और मौजूदा विधायक अब्दुल रहमान पर दंगे के वक्त इसे भड़काने के आरोप लगे थे.

मौजूदा पार्षद जुबैर (जिनकी पत्नी चुनावी मैदान में हैं) के भी कुछ वीडियोज इलाके में वायरल हुए थे. दावा था कि वे समाज में एक समुदाय के प्रति जहर घोलने का काम कर रहे थे. हालांकि, उपचुनाव में हुई जीत के बाद पूरे कॉन्फिडेंस के साथ मैदान में है.

मौजपुर (वार्ड नंबर 228)

अब बात करते हैं मौजपुर सीट की. दंगों के दौरान इसी इलाके में हिंदू समुदाय के लोग एकजुट हुए थे. ये लोग CAA-NRC के खिलाफ चक्का जाम करके बैठे लोगों के खिलाफ यहां सड़क पर उतरे थे. इस सीट पर परिसीमन और दंगे का असर देखने को मिलता है.

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AAP पार्टी ने मौजूदा पार्षद रेशमा नदीम का टिकट काटा है. इसकी जगह हिंदू चेहरे नीरज कौशिक को उम्मीदवार बनाया है. इसकी मुख्य वजह ब्रह्मपुरी के कुछ इलाकों का पार्षदी सीट में जुड़ना माना जा रहा है, जहां अधिकतर आबादी हिंदू समुदाय की है.

दूसरी तरफ बीजेपी ने अनिल कुमार शर्मा को उम्मीदवार बनाया है जो कि पहले कांग्रेस में थे और दो बार पार्षदी का चुनाव भी लड़ चुके हैं. यहां कांग्रेस की तरफ से विनोद कुमार शर्मा उम्मीदवार हैं, जो कि पहली बार चुनावी मैदान में हैं. यहां नंदकिशोर नाम के प्रत्याशी ने बीजेपी से टिकट ना मिलने पर निर्दलीय पर्चा भी भरा है, लेकिन उनको जनता का कोई खास रेस्पॉन्स नहीं मिल रहा.

प्रमुख उम्मीदवार
पार्टी उम्मीदवार
कांग्रेस विनोद कुमार शर्मा
बीजेपी अनिल कुमार शर्मा
AAP नीरज कौशिक
BSP दीपक गुप्ता

मौजपुर का चुनावी समीकरण

मौजपुर के कुल 53 हजार वोटर्स में 35 हजार के करीब हिंदू वोटर हैं, जिसमें ज्यादा संख्या शर्मा और वैश्य समाज के लोगों की है. इसके अलावा 18 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता हैं. इनपर कांग्रेस और AAP दोनों की नजर है. लेकिन इसमें बीजेपी भी सेंध लगाएगी. क्योंकि बीजेपी प्रत्याशी अनिल गौड़ पहले कांग्रेस में थे और दूसरे समुदाय के लोगों के लिए वे अछूत नहीं हैं. इसके अलावा कांग्रेस, AAP उम्मीदवार की तुलना में उनकी पकड़ मजबूत है.

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इसके अलावा मौजपुर की जनता में AAP विधायक गोपाल राय और अब्दुल रहमान को लेकर नाराजगी भी है. ये लोग पार्षद रेशमा नदीम (AAP) से भी नाराज हैं. लोगों ने आरोप लगाए कि इन सभी ने उनके इलाके में कोई काम नहीं किया. दूसरी तरफ दंगों के बाद यहां बीजेपी के पक्ष में माहौल दिखाई पड़ता है. हालांकि, यहां हिंदू वोट बंटने की भी आशंका है क्योंकि तीनों ही मुख्य पार्टियों ने ब्राह्मण जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया है. इस वजह से ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मानना है कि ये 18 हजार मुस्लिम वोट ही निर्णायक भूमिका निभाएंगे.

कुल वोटर- 53 हजार के करीब
प्रमुख इलाके- अर्जुन मोहल्ला, आदर्श मोहल्ला, अशोक मोहल्ला, जम्मू मोहल्ला, गुरुद्वारा मोहल्ला, बजरंग बली मोहल्ला, ब्रह्मपुरी (गली नंबर 1 से 13)

यहां के लोगों की मुख्य समस्याएं जाम और एक दारू का ठेका है, जिसको नए शराब नीति के तहत खोला गया था और वह अबतक नहीं हटा है. बीजेपी-कांग्रेस के साथ-साथ AAP उम्मीदवार भी जीतने पर इसे हटाने का वादा कर रहे हैं.

यमुना विहार (वार्ड नंबर- 232)

मौजपुर के बाद दंगे की आग यमुना विहार की तरफ भी बढ़ी थी. हिंदू बहुल इस इलाके के आसपास नूर ए इलाही, नेहरू पार्क, मुस्तफाबाद, कर्दमपुरी एरिया हैं जहां की संख्या मुस्लिम बहुल है. इस सीट से तीनों मुख्य पार्टियों ने हिंदू चेहरे को उम्मीदवार बनाया है और प्रचार में दंगों का जिक्र खुलकर हो रहा है.

बीजेपी ने यहां मौजूदा पार्षद प्रमोद गुप्ता पर भरोसा जताकर उनको फिर से टिकट दिया है. बातचीत के दौरान प्रमोद ने कहा कि यमुना विहार इलाका दंगों का विक्टिम है. वह ये भी बोले कि AAP आदमी पार्टी के खिलाफ यहां लोगों में गुस्सा है. इसकी वजह पूछने पर उन्होंने नेहरू विहार के उस वक्त के पार्षद ताहिर हुसैन का जिक्र किया.

प्रमुख उम्मीदवार
पार्टी उम्मीदवार
कांग्रेस राजकुमार शर्मा
बीजेपी प्रमोद गुप्ता
AAP विनीता लूथरा

कुल वोटर- 45 से 50 हजार के करीब
कौन-कौन से इलाके- यमुना विहार, भजनपुरा का सी-ब्लॉक, सुभाष मोहल्ले का ई और F ब्लॉक, संजय मोहल्ला.

यहां ज्यादातर वोटर वैश्य समुदाय से आते हैं. इसलिए बीजेपी ने अग्रवाल जाति के प्रमोद गुप्ता को फिर मैदान में उतारा है. यहां पंजाबी (सिख) लोगों की जनसंख्या भी ठीक-ठाक है, जिसे देखते हुए AAP ने विनीत लूथरा को उम्मीदवार बनाया है. लूथरा को काउंटर करने के लिए बीजेपी सिख नेताओं, मंत्रियों को प्रचार के लिए बुला रही है. दूसरी तरफ AAP 'कूड़े का पहाड़ चाहिए तो BJP' को वोट दें, वाले तंज के साथ मैदान में है.

यमुना विहार का चुनावी समीकरण

इस सीट पर बीजेपी की टिकट के कई दावेदार थे. पूर्व विधायक साहब सिंह चौहान की पुत्रवधु पूनम चौहान, सामाजिक कार्यकर्ता यूके चौधरी, मुकेश जैन आदि यहां से टिकट मांग रहे थे. लेकिन बीजेपी ने दोबारा प्रमोद गुप्ता पर भरोसा जताया. अंदरखाने प्रमोद गुप्ता को टिकट मिलने की कुछ नाराजगी भी है.

बातचीत में लोगों ने आरोप लगाया कि पार्षद गुप्ता उनके फोन नहीं उठाते और दो बार चेयरमैन बनने के बाद भी इलाके के लिए कुछ काम नहीं किया. उनपर व्यापारियों को चालान का डर दिखाकर तंग करने के आरोप भी लग रहे हैं. बावजूद इसके उनको क्या सिर्फ हिंदुत्व और पार्टी के नाम पर वोट मिलेगा ये देखने वाली बात होगी.

दूसरी तरफ AAP का कहना है कि वे लोग पार्कों के रखरखाव, आवारा कुत्तों की समस्या, साफ सफाई के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं वहीं बीजेपी सिर्फ हिंदू-मुस्लिम करके वोट लेना चाहती है. यहां बीजेपी अपनी टक्कर कांग्रेस से मानकर चल रही है.

सुभाष मोहल्ला - 233 (W)

यमुना विहार और मौजपुर के बीच में मौजूद ये वॉर्ड सुभाष मोहल्ला है. दंगों के दौरान यहां कई दुकाने और वाहनों को आग के हवाले किया गया था. मिली-जुली आबादी वाले इस क्षेत्र में कुल चार उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसमें से दो हिंदू और दो मुस्लिम हैं. बीजेपी और AAP ने हिंदू चेहरे, वहीं कांग्रेस और AIMIM ने मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतारा है.

कुल वोटर - 57 हजार के करीब
इलाके- सुभाष मोहल्ला, नूर ए इलाही, मोमीन चौक, बाबूराम चौक

AAP ने यहां मौजूदा पार्षद रेखा त्यागी पर भरोसा जताया है. लेकिन उनको कांग्रेस, BJP के साथ-साथ AIMIM से भी टक्कर मिल रही है. दरअसल, AIMIM की तरफ से जो उम्मीदवार और उनके सपोर्ट में कार्यकर्ता हैं वे पहले खुद AAP का हिस्सा थे. लेकिन दंगों में मौजूदा विधायक गोपाल राय का रुख उनको ठीक नहीं लगा जिसकी वजह से वे लोग पार्टी छोड़कर AIMIM के साथ खड़े हो गए.

प्रमुख उम्मीदवार
पार्टी उम्मीदवार
कांग्रेस नाजरा नफीस मलिक
बीजेपी मनीषा पुनिया
AAP रेखा त्यागी
AIMIM मनाजरा राशिद अली

सुभाष मोहल्ले का चुनावी समीकरण

बीजेपी के उम्मीदवार के प्रति यहां नाराजगी है. लोगों का कहना है कि दो-ढाई साल पहले पार्टी में आए सतीश पुनिया की पत्नी को टिकट क्यों दिया गया? जबकि ईश्ववर सिंह जैसे उनसे पुराने कई चेहरे टिकट के लिए लाइन में थे. बावजूद इसके लोगों की नजर में चारों उम्मीदवारों में सबसे आगे वही हैं क्योंकि हिंदू वोट उनके साथ खड़ा दिखाई देता है. दूसरे नंबर पर यहां रेखा त्यागी को माना जा रहा है. लेकिन दंगे के बाद से हिंदू वोटर के साथ-साथ कुछ मुस्लिम वोटर्स भी उनसे और उनकी पार्टी से नाराज दिख रहे हैं.

चुनाव में दंगों का असर है? इस सवाल पर कांग्रेस और AIMIM के लोगों ने जवाब हां में दिया. दूसरी तरफ रेखा त्यागी ने कहा कि बाकी पार्टियां यहां धार्मिक रंग से चुनाव लड़ रही हैं. लेकिन ये इलाका ऐसा है जहां दोनों तरफ से लोगों को साथ लिए बिना जीत हो ही नहीं सकती. रेखा की बात यहां कई मायनों में सही भी लगती है. इस सीट के चुनावी नतीजे पर भविष्यवाणी करना इतना आसान नहीं है. खुद रेखा पिछले चुनाव में यहां कुल 315 वोटों से विजयी हुई थीं.

नेहरू विहार सीट (वार्ड नंबर 244)

मुस्तफाबाद विधानसभा की वही सीट, जिसके कुछ वीडियोज और फोटोज ने दंगों के दौरान मचे कोहराम की जीती-जागती तस्वीर सबके सामने रख दी. AAP नेता ताहिर हुसैन यहीं से पार्षद थे, जो फिलहाल दंगे भड़काने के आरोप में जेल में बंद हैं. ये वॉर्ड पहले मुस्लिम बहुल कहा जाता था लेकिन परिसीमन के बाद स्थिति थोड़ी बदली है. पार्टी उम्मीदवारों का भी ऐसा ही मानना है.

ये शायद परिसीमन और दंगों के बाद बदले समीकरण का ही असर है कि AAP ने इसबार हिंदू चेहरे प्रवेश चौधरी पर दांव लगाया है. कांग्रेस उम्मीदवार अलीम अंसारी ने बातचीत में बताया कि परिसीमन के बाद इलाका छोटा हुआ है, इसमें से मुस्तफाबाद को काट दिया गया है. वहीं कई हिंदू इलाके इस वार्ड में जोड़े गए हैं.

प्रमुख उम्मीदवार
पार्टी उम्मीदवार
कांग्रेस अलीम अंसारी
बीजेपी प्रवेश चौधरी
AAP अरुण भाटी

कुल मतदाता - 57 हजार के करीब
इलाके- चंदूनगर, नेहरू विहार, दयालपुर डी ब्लॉक, शक्ति विहार

नेहरू विहार का चुनावी समीकरण

इस सीट का चुनावी नतीजा परिसीमन की वजह से चौंका सकता है. यहां बीजेपी ने पिछली बार के अपने उम्मीदवार अरुण भाटी को ही टिकट दिया है. इनको ताहिर हुसैन ने हराया था. लेकिन दंगों के बाद AAP के खिलाफ माहौल बना है. ताहिर हुसैन से जहां हिंदू आबादी खफा नजर आती है, वहीं मौजूदा विधायक हाजी युनूस से दोनों समुदाय के लोग नाराज हैं. लोगों का कहना है कि विधायक और पार्षद ने कूड़े के ढेर को हटाने, नाले साफ करवाने, सड़क निर्माण, जलभराव से निजात दिलाने के लिए कुछ भी नहीं किया.

चंदू नगर जिसमें हिंदू मुस्लिम मिक्स आबादी है उसे इस सीट में पहली बार जोड़ा गया है. जिससे बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जीत की उम्मीद है. वहीं दयालपुर डी ब्लॉक (पहाड़ी आबादी), नेहरू विहार (हिंदू-मुस्लिम मिक्स) तीनों पार्टियों में से किसे चुनते हैं ये देखने वाली बात होगी. बता दें कि नेहरू विहार सीट मुस्तफाबाद इलाके में आती है जहां बीते दिनों ओवैसी ने जनसभा की थी. AIMIM इस सीट पर भी पूरे दमखम से लड़ रही है.

दंगों में मारे गए थे 53 लोग, 700 से ज्यादा हुए थे घायल

फरवरी 2020 में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई झड़पों ने सांप्रदायिक दंगों का रूप ले लिया था. इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे. दंगों में सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में शिव विहार, मुस्तफाबाद, भजनपुरा, विजय पार्क, यमुना विहार और मौजपुर ही रहे थे.

दंगे प्रभावित इलाके में कुछ लोग हादसे को भूलकर आगे बढ़ना चाहते हैं और कहते हैं कि एमसीडी चुनाव स्थानीय मुद्दे पर हो रहे हैं. नाली और गलियों की सफाई का है. ऐसे में भले ही चुनाव एमसीडी का हो रहा है, लेकिन इसमें दंगों के असर को नहीं नकारा जा सकता है. स्थानीय लोगों की मानें तो चुनाव पर इसका असर तो पड़ेगा ही लेकिन यह कितना प्रभावित करेगा ये सात दिसंबर को मालूम होगा.

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