
Delhi MCD Election: दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने वाला बिल शुक्रवार को लोकसभा में पेश हुआ. ऐसे में एकीकरण से एमसीडी पर पड़ने वाले असर को लेकर चर्चाएं तेज हैं. वैसे एमसीडी के एकीकरण का सबसे बड़ा फायदा यह हो सकता कि आर्थिक रूप से बदहाल उत्तरी और पूर्वी निगम अब जनता का भला कर सकेंगे, क्योंकि जो तीन गुना खर्चा था वो अब आधा हो जाएगा.
हालांकि निगम और सशक्त हो, जनता को ज्यादा लाभ मिले इसके प्रावधान एमसीडी एकीकरण बिल में नही हैं. इसके अलावा बिल में निगम के दिवालिया होने की वजहों, पार्षदों और मेयर को पावरफुल बनने या मिलने वाले नए अधिकारों का कोई जिक्र नहीं है.
एकीकरण के बाद घाटा ना रहे, कर्मचारियों को समय से वेतन, पेंशन, प्रमोशन और जनता को राहत मिल सके इसको देखते हुए. आर्थिक रूप से दिवालिया हो चुके निगमों को पैकेज के माध्यम से उबार कर लाने के लिए भी कोई प्रावधान बिल में नजर नहीं आ रहा है.
बिल के मुताबिक मेयर सिर्फ सदन की अध्यक्षता करेगा. 'मेयर इन काउंसिल' का प्रावधान नहीं है. मेयर के पास कोई फाइनेंशियल पावर नहीं होगी बल्कि कमिश्नर के हाथ में यह पावर रहेगी. सदन के पास बजट पास करने का अधिकार है जिसकी अध्यक्षता मेयर करेगा. उस बजट में पैसा खर्च करना, बजट आवंटन करना, ये अधिकार कमिश्नर को दिए गए हैं.
खत्म होगा दिल्ली सरकार-MCD के बीच विवाद?
एकीकृत नगर निगम के निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगाई कहते हैं कि दिल्ली नगर निगम पर दिल्ली सरकार के करोड़ों रुपये का कर्ज बकाया है. ऐसे में केंद्र जब हजार करोड़ की अनुदान राशि निगमों को वाया दिल्ली सरकार देता है तो दिल्ली सरकार उस पर लगने वाला ब्याज और किश्त काट लेती है. जो दोनों के बीच विवाद की बड़ी वजह है.
एमसीडी को ग्लोबल शेयर, एक मुश्त पार्किग शुल्क और ट्रांसफर ड्यूटी में दिल्ली सरकार से हिस्सा मिलता है जो दो दशकों पुराना विवाद है. नए वाहनों के पंजीकरण में दिल्ली सरकार को मिलने वाला पार्किंग चार्ज में निगम का भी हिस्सा होता है. जमीन की खरीद-फरोख्त में ट्रांसफर ड्यूटी में भी निगम का हिस्सा होता है.
इन सभी को लेकर निगम दिल्ली सरकार पर पैसे ना देने का आरोप लगाता रहता है.दिल्ली वित्त आयोग की रिपोर्ट ये कहती है कि दिल्ली सरकार की आय का कुछ हिस्सा दिल्ली नगर निगम को भी देना होता है. लेकिन इन विवादों पर बिल में कुछ भी बात नहीं की गई है.
'डबल इंजन' सरकार में भी हुए विवाद
अगर आप सोच रहे हैं कि इसका हल दिल्ली राज्य और निगम में डबल इंजन यानी एक ही सरकार होगी तो विवाद नहीं होंगे तो ऐसा नहीं है. साल 2002 से 2007 तक केंद्र-दिल्ली में कांग्रेस की सरकार की थी तो एमसीडी में भी कांग्रेस ही थी लेकिन तब के मेयर बाबू राम शर्मा से शीला दीक्षित की कभी नहीं बनी. कहा जाता है कि शीला ने बाबू राम की राजनीतिक जीवन खत्म करने के लिए निगम को 2012 में तीन भागों में बांट दिया था.
जब उपराज्यपाल ने निगम को पैसा नहीं दिया
साल 2014 में आप सरकार के सीएम अरविंद केजरीवाल के त्यागपत्र के बाद केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त उपराज्यपाल ने निगम के बीजेपी नेताओं को पैसा देने से मना कर दिया था. उनका कहना था कि चुनी हुई सरकार ही इस नीतिगत फैसले लेगी.