
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के लिए राजधानी की सियासी तपिश गर्म है. बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच भले ही त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन कई अन्य क्षेत्रीय दल चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. बसपा से लेकर सपा, एनसीपी, जेडीयू और लेफ्ट पार्टियां चुनाव के लिए ताल ठोक रही हैं तो असदुद्दीन ओवैसी ने भी एमसीडी चुनाव में अपने कैंडिडेट उतारे हैं. ऐसे में देखना है कि छोटे और क्षेत्रीय दल दिल्ली की सियासत में अपना गेम बनाएंगे या फिर कांग्रेस-बीजेपी-AAP का खेल बिगाड़ेंगे.
दिल्ली एमसीडी चुनाव में 250 पार्षद सीटों के लिए 1349 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से 382 निर्दलीय प्रत्याशी हैं. बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे हैं, जबकि कांग्रेस 247 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है. इस तरह से दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियां पूरी ताकत के साथ चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रही हैं, लेकिन छोटे और क्षेत्रीय दलों ने मैदान में उतरकर एमसीडी चुनाव को दिलचस्प बना दिया है.
ये छोटे और क्षेत्रीय दल दिखा रहे दम
दिल्ली एमसीडी चुनाव में छोटे और क्षेत्रीय दल किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरे हैं. इस फेहरिश्त में यूपी और बिहार में मजबूत सियासी आधार रखने वाले दल भी शामिल हैं. जेडीयू ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, जबकि मैदान में महज 23 प्रत्याशी उतारे हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमईआईएम के 15 कैंडिडेट मैदान में हैं और एक सीट पर निर्दलीय को समर्थन कर रही है.
पश्चिमी यूपी में सियासी आधार रखने वाली आरएलडी भी एमसीडी चुनाव में उतरी है, जिसने चार कैंडिडेट मैदान में उतारे हैं. समाजवादी पार्टी ने एक, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने 12, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 3, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के चार उम्मीदवार मैदान में है. बसपा ने एमसीडी के दंगल में 174 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं तो एनसीपी के 29 प्रत्याशी मैदान में हैं. चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है तो योगेंद्र यादव द्वारा बनाए गए राजनीतिक संगठन स्वराज इंडिया सात पार्षद सीटों पर पर मैदान में उतरी है.
छोटे दल बिगाड़ेंगे बड़ी पार्टियों का खेल!
निर्दलीय उम्मीदवार और छोटे दलों के उम्मीदवारों के उतरने से दिल्ली की सियासत में जमे-जमाए बड़े दलों की चिंता बढ़ गई है. ये छोटे दल एमसीडी चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं. 2017 के एमसीडी चुनाव के नतीजे को देखें तो करीब 25 वार्ड ऐसे थे, जहां पर हार-जीत में सिर्फ 500 या उससे भी कम वोटों का अंतर था. इतने कम अंतर से जो यह जीत-हार का खेल होता है तो उसमें एक बड़ा कारण छोटे दल और निर्दलीय प्रत्याशियों के वोट काटने से सारे समीकरण बदल जाते हैं.
दिल्ली की सियासत में कौन जाति अहम?
दिल्ली की सियासत में पंजाबी, मुस्लिम, दलित और पूर्वांचली मतदाता अहम भूमिका अदा करते हैं. वहीं, गुर्जर, जाट, सिख और दिल्ली के पढ़े-लिखे वर्ग की भी भूमिका है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की राजनीति के साथ ही दलित, पंजाबी, वैश्य और मुसलमान मतदाताओं की बड़ी संख्या आम आदमी पार्टी के साथ चली गई, जिससे कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में कमजोर पड़ गई. जाट और गुर्जर वोटों के साथ-साथ पंजाबी वोटों का भी एक तबका बीजेपी के साथ है.
मुस्लिम सीटों पर ओवैसी का गेम प्लान
दिल्ली की सियासत में 12 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कुल 15 एमसीडी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 14 मुस्लिम है. ओवैसी की पार्टी जाकिर नगर, करावल नगर, अबू फजल, चांदनी चौक, सीमापुरी, मुस्तफाबाद, बल्लीमारान, बाबरपुर, सीलमपुर, मटिया महल और सदर बाजार विधानसभा क्षेत्रों की ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इन्हीं सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. ऐसे में इन सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम के बीच मुकाबला है.
दिल्ली में बसपा का सियासी आधार
दिल्ली की सियासत में बसपा दलित मतों के सहारे एक समय अहम रोल में थी, लेकिन आम आदमी पार्टी के बनने के बाद से उसका सियासी आधार कमजोर हुआ है. 2008 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 14 फीसदी वोट मिले थे. बीएसपी 1989 से दिल्ली में चुनाव लड़ रही है, लेकिन कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी. हालांकि, दूसरे छोटे दलों के मुकाबले बीएसपी का प्रदर्शन बेहतर रहा है. 2008 में बसपा के दो विधायक थे और 6 सीटों पर नंबर दो पर रही थी. इसी तरह से एमसीडी चुनाव में बसपा 2017 में एक पार्षद सीट जीतने में सफल रही थी. इसके अलावा भी बसपा के पांच से सात पार्षद जीतते रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में दलित मतदाता केजरीवाल के साथ है.
पूर्वांचली मतदाताओं की भूमिका
दिल्ली की सियासत में पूर्वांचली वोटों की ताकत बढ़ी है. इसी समीकरण को देखते हुए नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड इस बार दिल्ली एमसीडी में 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पूर्वांचली बहुल एमसीडी की सीटों पर ही जेडीयू चुनाव लड़ रही है. सपा ने मुस्लिम बहुल अबू फजल सीट पर कैंडिडेट उतारा है, जहां पर अखिलेश यादव ने यूपी की सत्ता में रहते हुए कब्रिस्तान के लिए जमीन दी थी. ऐसे ही लेफ्ट और एनसीपी भी उन्हीं सीटों पर फोकस किया है, जहां पर उसका संगठन है.