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दिल्लीः MCD अस्पताल में 12 बच्चों की मौत, वैक्सीन खत्म, अस्पताल ने पल्ला झाड़ा

पीड़ित बच्चों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में डिप्थीरिया का वैक्सीन उपलब्ध नहीं है जिसकी कीमत करीब 10 हजार रुपये है. इसकी वजह से मरीजों को वैक्सीन बाहर से लानी पड़ रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
चिराग गोठी/वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST

दिल्ली के किंग्सवे कैम्प स्थित महर्षि वाल्मीकि संक्रामक अस्पताल में पिछले दो हफ्तों में 12 बच्चों की मौत हो चुकी. बच्चों की मौत डिप्थीरिया नामक संक्रामक रोग की वजह से हुई है. मृतक बच्चों के अभिभावक अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं, जबकि प्रशासन स्टॉक में दवा नहीं होने की बात कह कर मामले से पल्ला झाड़ रहा है.

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बहरहाल बता दें कि इन सभी बच्चों के परिवार दिल्ली से बाहर के रहने वाले हैं, जो अलग-अलग राज्यों से रेफर होकर नार्थ एमसीडी के इस अस्पताल में इलाज कराने आए थे. मृतक बच्चों के परिजनों का आरोप है कि सबसे बड़े संक्रामक रोगों के अस्पताल में डिप्थीरिया के लिए वैक्सीन तक मौजूद नहीं है. इस वैक्सीन की बाजार में कीमत करीब दस हजार रुपये बताई जा रही है.  

पिछले 6 से 19 सितंबर तक कुल 12 बच्चों की मौत डिप्थीरिया की वजह से हो चुकी है. अभी डिप्थीरिया से पीड़ित करीब 300 बच्चे यहां भर्ती है. कुछ तीमारदारों का आरोप है कि सही इलाज न होने की वजह से मौतें हो रही हैं. इसलिए वह अपने बच्चों को दूसरे अस्पतालों के लिए लेकर जा रहे हैं.

एक मृतक बच्ची के मामा मोहम्मद आरिफ का कहना है कि वह अपनी भांजी को ठीक ठाक लाए थे. सुबह तक वह ठीक थी. लेकिन अचानक फोन आया कि उसकी मौत हो गई. उनका आरोप है कि यह सब अस्पताल की लापारवाही की वजह से हुआ. जबकि सहारनपुर के सरफराज का कहना है कि यहां बच्चों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है. इसलिए वह अपनी बच्ची को किसी दूसरे अस्पताल में भर्ती कराने जा रहे हैं.

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पीड़ित बच्चों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में डिप्थीरिया का वैक्सीन उपलब्ध नहीं है जिसकी कीमत करीब 10 हजार रुपये है. इसकी वजह से मरीजों को वैक्सीन बाहर से लानी पड़ रही है.

महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक सुनील कुमार गुप्ता का कहना है कि इसके संबंध में लिखा जा चुका है और सितंबर के अंत तक इसके उपलब्ध होने की संभावना है. उन्होंने यह भी कहा कि अभिभावक पीड़ित बच्चों की अंतिम स्थिति में अस्पताल लेकर पहुंचते हैं, तब तक उनकी प्रतिरोधिक क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हो चुकी होती है.

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