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MCD में मुस्लिमों ने मोड़ा मुंह तो मौलानाओं को मनाने में जुटी AAP, एक्टिव हुए अमानतुल्लाह 

मुस्लिम मतदाताओं ने एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी से मुंह मोड़ लिया है. ऐसे ही मुस्लिमों का मिजाजा लोकसभा चुनाव में भी रहा तो आम आदमी पार्टी के लिए चिंता बढ़ जाएगी. इन्हीं सारे समीकरण को देखते हुए आम आदमी पार्टी और उनके नेता मुस्लिमों को साधने में जुट गए हैं. केजरीवाल ने अपने मुस्लिम चेहरा अमानतुल्ला खान को भी एक्टिव कर दिया है.

इमाम अहमद बुखारी और अमानतुल्ला खान इमाम अहमद बुखारी और अमानतुल्ला खान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 05 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 3:15 PM IST

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में भले ही आम आदमी पार्टी ने एकतरफा जीत दर्ज की हो, लेकिन मुसलमानों ने अरविंद केजरीवाल से मुंह मोड़ लिया है. मुस्लिम समुदाय ने एक बार फिर से कांग्रेस की तरफ रुख किया है, तो आम आदमी पार्टी की बेचैनी बढ़ गई है. दिल्ली की सियासत में खिसकते मुस्लिमों को साधने की कवायद आम आदमी पार्टी ने शुरू कर दी है. दिल्ली डिप्टी मेयर के लिए आले मोहम्मद इकबाल को प्रत्याशी बनाकर मुस्लिमों को सियासी संदेश दिया तो दूसरी तरफ पार्टी के मुस्लिम चेहरे अमानतुल्ला खान ने मौलानाओं के साथ मेल-मिलाप शुरू कर दिया है. 

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ओखला से आम आदमी पार्टी के विधायक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्ला खान इन दिनों मुस्लिम समुदाय के तमाम उलेमाओं और इमामों से मुलाकात कर रहे हैं. पिछले एक सप्ताह में उन्होंने दिल्ली के आधे दर्जन मौलानाओं के साथ अलग-अलग बैठक की है. जमियत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, तबलीगी जमात के मौलाना साद, दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी, फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम और जमात-ए-इस्लामी के चीफ सैयद सदातुल्लाह हुसैनी से अमानतुल्ला खान मुलाकात कर चुके हैं. 

मुस्लिम उलेमाओं और इमामों से मुलाकात का दौर शुरू

मुस्लिम उलेमाओं और इमामों से मुलाकात का सिलसिला अमानतुल्ला खान ने एमसीडी चुनाव के बाद शुरू किया है. ऐसे में उन तमाम उलेमाओं से मेल मिलाप शुरू किया है, जिनका मुस्लिम समुदाय के बीच अच्छा खासा प्रभाव है. मौलाना साद से मुलाकात के पीछे माना जा रहा है कि तब्लीगी जमात के लोगों में जो नाराजगी है उसे दूर किया जाए. ऐसे ही जमात-ए-इस्लामी और मौलाना अरशद मदनी के जरिए भी साधने की कवायद है. इसीलिए इन मुलाकात को सियासी नजरिए से देखा जा रहा है, क्योंकि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को लेकर मुस्लिम समुदाय की सोच बदली है. एमसीडी के चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी से छिटकर कांग्रेस की ओर रुख किया है. इसी का नतीजा है कि ओखला, सीलमपुर, मुस्तफाबाद, शास्त्री पार्क जैसे मुस्लिम इलाके में मुसलमानों ने कांग्रेस के प्रति भरोसा जताया है.

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मौलाना साद से मिलते अमानतुल्ला खान

आम आदमी पार्टी मुसलमानों के सियासी मूड को देखते हुए उन्हें अब साधने की कवायद शुरू की है. इसी कड़ी में मटिया महल से विधायक शोएब इकबाल के बेटे आले मोहम्मद इकबाल को डिप्टी मेयर का कैंडिडेट बनाया है और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य के लिए आमिल मलिक को प्रत्याशी बनाया है. इसी कड़ी में सीएम केजरीवाल के भरोसेमंद और पार्टी के मुस्लिम चेहरे अमानतुल्ला खान ने दिल्ली के बड़े मुस्लिम उलेमाओं और इमामों के साथ मुलाकात का सिलसिला शुरू किया है. 

अमानतुल्ला खान ने aajtak.in से बताया कि मौलाना अरशद मदनी से लेकर मौलाना साद और इमाम बुखारी तक से उनके निजी रिश्ते है. इसीलिए इन मुलाकातों को राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा चाहिए, क्योंकि हमारे बुजुर्ग है. ऐसे में तमाम उलेमाओं के साथ व्यक्तिगत है. अमानतुल्ला भले ही निजी मुलाकात बता रहे हों, लेकिन कांग्रेस उसे एमसीडी चुनाव में खिसके मुस्लिम वोटों की बेचैनी बता रही है. 

कांग्रेस के पूर्व विधायक चौधरी मतीन अहमद ने क्या कहा?

कांग्रेस के नेता व पूर्व विधायक चौधरी मतीन अहमद कहते हैं कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की सच्चाई को मुसलमान समझ चुका है. केजरीवाल बीजेपी की बी-टीम है और आरएसएस के लिए काम कर रहे हैं. सीएए-एनआरसी मुद्दे से लेकर तब्लीगी जमात के मरकज तक के मामले में केजरीवाल के स्टैंड से मुस्लिम वाकिफ हो चुका है. एमसीडी चुनाव में मुस्लिमों का विश्वास फिर से कांग्रेस पर कायम हुआ है, जिससे आम आदमी पार्टी चिंतित है. ऐसे में अमानतुल्ला किसी तरह की कोई भी कोशिश कर लें, लेकिन न तो उनके बरगलाने में कोई मुस्लिम मौलाना आएंगे और न ही आम मुस्लिम वोटर्स.  

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बता दें कि दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनाव से मुस्लिम समुदाय ने एकतरफा आम आदमी पार्टी को वोट दिया था और 2020 में पांचों मुस्लिम विधायक उसके बने थे. कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. मुस्लिम इलाकों में आम आदमी पार्टी को बड़ी तादाद में मत मिलता रहा है, लेकिन अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षाओं और बीजेपी के नैरेटिव को काउंटर करने की मंशा में आम आदमी पार्टी पर मुस्लिम हितों की उपेक्षा, यहां तक कि कई बार उनके खिलाफ काम करने के तक आरोप लगते रहे हैं. 

शाहीन बाग आंदोलन

दिल्ली के जहागीरपुरी दंगों के लिए पार्टी नेता आतिशी मार्लेना और मनीष सिसोदिया ने रोहिंग्या मुस्लिमों और बांग्लादेशी मुस्लिमों को जिम्मेदार बताया था. शाहीन बाग के लंबे आंदोलन में भी आम आदमी पार्टी ने विशेष सक्रियता नहीं दिखाई थी, ना ही अरविंद केजरीवाल वहां पहुंचे थे. सीएए-एनआरसी पर केजरीवाल की खामोशी, दिल्ली दंगे पर चुप्पी, मरकज और तब्लीगी जमात पर एक्शन से मुस्लिम समुदाय आम आदमी पार्टी से नाराज थे, जिसके चलते मुस्लिम इलाके में आम आदमी पार्टी को मात खानी पड़ी है. 

एमसीडी के वोटिंग पैटर्न को देखते हुए इतना तो साफ हो रहा है कि जरूरी मुद्दों पर समर्थन ना मिलने के चलते मुस्लिम वोट वापस कांग्रेस की तरफ खिसका है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिम ऐसे ही नाराज रहे और एमसीडी चुनाव की तरह वोटिंग पैटर्न रहा तो आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती थी. बीजेपी को हराने की तुलना में बेहतर स्थिति में हो, कुल मिलाकर बहुत संभावना है कि अगर कोर्स करेक्शन नहीं हुआ, तो मुस्लिमों का वोट कांग्रेस के पाले में जा सकता है.

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मुस्लिम सियासत से कुछ दूरी बनाने वाली आम आदमी पार्टी ने अपने खिसकते मुस्लिम आधार को रोकने के लिए सक्रिय हुई है. विधायक अमानतुल्ला खान ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और केजरीवाल सरकार में मंत्री गोपाल राय ने मुसलमानो के सबसे बड़े रहनुमा मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात करने पहुंचे थे. इससे समझा जा सकता है कि एमसीडी चुनाव में मुंह मोड़ चुके मुस्लिमों का दोबारा से विश्वास जीतने के लिए आम आदमी पार्टी हरसंभव कोशिश में जुट गई है. 

दिल्ली में मुस्लिम राजनीति
दिल्ली की सियासत में मुस्लिम मतदाता 12 फीसदी के करीब हैं. दिल्ली की कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटों को मुस्लिम बहुल माना जाता है, जिनमें बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर और किराड़ी सीटें शामिल हैं. इन विधानसभा क्षेत्रों में 35 से 60 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं. साथ ही त्रिलोकपुरी और सीमापुरी सीट पर भी मुस्लिम मतदाता काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. ऐसे ही तीन लोकसभा सीटों पर भी मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है, जिसमें उत्तरी दिल्ली, चांदनी चौक और दक्षिण पूर्वी दिल्ली. इन तीनों ही संसदीय सीटों पर करीब 25 से 35 फीसदी वोटर्स मुस्लिम हैं. 

दिल्ली में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न 
दिल्ली की राजनीति में मुस्लिम वोटर बहुत ही सुनियोजित तरीके से वोटिंग करते रहे हैं. एक दौर में मुस्लिमों को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था. मुस्लिम समुदाय ने दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट किया था. वहीं, 2014 लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय की दिल्ली में पहली पसंद AAP बनी थी. इसका नतीजा था कि कांग्रेस 2013 में दिल्ली में आठ सीटें जीती थीं, जिनमें से चार मुस्लिम विधायक शामिल थे. 

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2013 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस को पांच और AAP को एक सीट मिली थी. इसके बाद कांग्रेस का वोट आम आदमी के साथ चला गया था, जिसने दोबारा से 2019 के लोकसभा चुनाव में वापसी की है. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस दिल्ली में भले ही एक सीट न जीत पाई हो लेकिन वोट फीसदी में वह AAP को पीछे छोड़ते हुए दूसरे नंबर पर रही.  

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली थी लीड

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मुस्लिम बहुल इलाकों में नंबर की पार्टी बनी रही है. कांग्रेस को सर्वाधिक 4,10,107 मत मिले थे जबकि बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में 30,252 वोट कम मिले थे. बीजेपी को इन सभी सीटों पर कुल वोट 3,79,855 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी को महज 1,33,737 वोटों के साथ करारा झटका लगा था. 

मुस्लिम समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ जुड़े. इसका नतीजा रहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के दिग्गजों को करारी मात देकर कब्जा जमाया था. आम आदमी पार्टी ने सभी मुस्लिम बहुल इलाके में जीत का परचम फहराया था, लेकिन अब उसी इलाके में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है और 2024 के चुनाव में जिससे चुनौती खड़ी हो गई है. इसीलिए आम आदमी पार्टी मुस्लिम उलेमाओं के जरिए मुसलमानों को साधने की कवायद कर रही है. 

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