
नीरव मोदी, मेहुल चोकसी से जुड़े अरबों रुपये के बैंक लोन घोटाले के बाद अब दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक का घोटाला सामने आया है. यहां फर्जी दस्तावेज पर जमकर लोन बांटे गए. फर्जी ई-स्टैम्प, फर्जी आईटीआर, फर्जी रजिस्ट्री, फर्जी पते के दस्तावेज और न जाने क्या क्या बना कर लोन की बंदरबांट हुई. हालत ये कि कर्मचारियों और दलालों की मिलीभगत से बैंक को करोड़ों रुपये का चूना लगाता रहा और बैंक आंखें मूंद चुपचाप बैठा रहा. यमुना विहार ब्रांच, करावलनगर ब्रांच, शाहदरा ब्रांच, लाजपत नगर ब्रांच, जनकपुरी ब्रांच और न जाने कितनी और ब्रांच में 2011 से लेकर 2014 के बीच लोन के नाम पर धंधलेबाजी हुई.
फर्जी सदस्य बनाए
हजारों की तादाद में फर्जी तरीके से सोची समझी साज़िश के तहत बैंक सदस्य बनाए गए जिसके बाद लाखों-करोड़ों रुपये के लोन को हड़प किया गया. गबन, घोटाले, फर्जी लोन की जानकारी बैंक, चेयरमैन,डायरेक्टर और अधिकारियों से लेकर रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटी तक कथित तौर पर सभी को जानकारी थी, लेकिन सब ने चुप्पी साधे रखी. इतने साल बीत जानने के बाद भी बैंक ने कानूनी कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ती तक भी नहीं की.
देश की राजधानी में दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक के खातों के इस गोरखधंधे को ''आजतक'' की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने अपनी जांच में बेनकाब किया. सबसे पहले जांच के तहत मौजपुर में पाया कि मोना नाम की महिला ने 2014 में साढ़े चार लाख रुपये लोन लिए थे. दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक की यमुना विहार शाखा ने मोना को ब्यूटिक का काम बढ़ाने के लिए लोन पर दिया. लेकिन जहां बुटीक का पता था वहां पर खाली प्लॉट मिला. मोना ने लोन लेते वक्त बैंक में तीन साल की इनकम टैक्स रिटर्न, पैन कार्ड समेत तमाम दस्तावेज़ लगाए. वो सारे कागज़ फर्जी थे और मोना घरों में काम करके गुजारा चलाती थी. मोना के अकांउट में आया लोन का पैसा उमेश नाम के शख्स के एकाउंट में चला गया.
मौजपुर इलाके में ही रहने वाले सरकारी कर्मचारी विशाल पाठक ने तीन लाख का लोन लिया. लेकिन ये लोन ही उसके लिए जी का जंजाल बन गया. विशाल पाठक की माने तो उन्होंने बैंक में लोन लेने के लिए कागज लगाए, लेकिन आज तक उनके अकाउंट में लोन का पैसा आया ही नहीं. इसके बदले आ रहे हैं तो लोन की रिकवरी के लिए किस्त चुकाने के नोटिस. हैरानी की बात है कि विशाल पाठक का पैसा भी उमेश नाम के शख्स के खाते में ही गया. चौकाने वाली बात ये भी है कि बैंक में विशाल पाठक के नाम पर उन लोगों की लोन लौटाने की श्योरिटी भी ले रखी है जिन्हें वो जानता तक नहीं.
आज तक की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम जांच के तहत ही यमुना विहार में मकान नंबर C-12/8 तक पहुंची. यहां रहने वाले मग्गो दंपति को बैंक से करीब 10 लाख रुपये मकान के रिनोवेशन और बुटीक चलाने के लिए लोन के तौर पर 2012-13 में दिए गए थे. हैरानी की बात है यहां ना रिनोवेशन हुआ, ना ही कोई कोई बुटीक खुला. जब आज तक की टीम ने लोन के लिए लगाए गए कागजात की पड़ताल की तो पता चला कि सब फर्जी दस्तावेज देकर लोन लिया गया. यहां भी लोन की गारंटी विशाल पाठक ने दी हुई थी जिसका खुद विशाल को ही नहीं पता था. ये पैसा भी उमेश के अकाउंट में गया.
आज तक की टीम तलाश के बाद उमेश तक पहुंच गई. उमेश ने बताया कि 5 लोन उसके अकांउट में ट्रांसफर हुए. उमेश ने दावा किया कि ये सब बैंक के पूर्व डायरेक्टर के इशारे पर हुआ. उसी के लोग फर्जी काग़ज़ बनाते थे और लोगों के लोन करवाते थे. चौंकाने वाली बात है कि इस जालसाज़ी के बारे में सब कुछ बैंक को पता होने के बावजूद उमेश के खिलाफ एक भी शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं की गई.
कर्मचारियों की मिलीभगत
ये तो वो आम लोग थे जिन्होनें बैंक के कर्मचारियों के साथ मिलकर घपलेबाजी कर फर्जी तरीके से लोन लिए और उस पर बैंक ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. लेकिन यहां तो बैंक में बैठे डायेक्टर अजीत सिंह ने भी फर्जी तरीके से लोन लिया और चुपचाप से चुका दिया. अजीत सिंह ने बैंक में लोन अप्लाई किया और कागजात में लोन लेने के लिए खुद को करावल नगर के एक प्राईवेट स्कूल का कर्मचारी दिखाया. वहीं की सेलरी स्लिप लगाई. जब उस स्कूल में जा कर पड़ताल की गई तो पता चला कि अजीत सिंह का अपना एक स्कूल है और वो कभी इस स्कूल में कर्मचारी नहीं रहे हैं. इतना ही नहीं अजीत सिंह ने जो ई-स्टैम्प की रजिस्ट्ररी लगाई वो भी फ़र्जी थी.
डायरेक्टर अजीत सिंह की तरह ही बैंक के चेयरमैन के रिश्तेदार भी फर्जीवाड़े में पीछे नहीं थे. बैंक में ऐसी रजिस्ट्री रखवाई गई जिस पर ना तो खरीदने वाले के हस्ताक्षर थे ना बेचने वाले के. जब इस बात से चेयरमैन को रु-ब-रु कराया गया तो पहले तो वो कुछ बोलने से बचते रहे. फिर कहा कि ऐसा कुछ उनकी जानकारी में नहीं है.
इस पूरे प्रकरण में 5 मुकदमे हुए और वो सारे बैंक की लाजपत नगर शाखा से जुड़े हैं और अमर कॉलोनी थाने में दर्ज हैं. इनमें अभी तक पुलिस की तरफ से कोई तफ्तीश नहीं हुई है. जब मामले ने राजनीतिक रंग लेना शुरू किया तब कहीं जाकर उपराज्यपाल ने इस की तफ्तीश दिल्ली पुलिस की ईओडब्लू को सौंपी.
आरबीआई नियम की उड़ीं धज्जियां
वर्ष 2013 में ही आरबीआई की रिपोर्ट ने साफ कर दिया था कि दिल्ली नागरिक बैंक में सबकुछ ठीक नहीं है. रिपोर्ट में बताया गया था कि लाजपत नगर की शाखा में 80 प्रतिशत लोन फर्जी तरीके से दिए गए थे. ये सारे लोन या तो शादी में भात देने के नाम पर थे या फिर मकान ठीक कराने के नाम पर. आरबीआई ने आपत्ति जताई थी कि इसके अलावा लोन का कोई और मकसद क्यों नहीं था. ये शाखा उस वक्त के चेयरमैन जयभगवान के कंट्रोल में थी. इसी रिपोर्ट में 283 लाख के लोन में गड़बड़झाला पाया गया था. बाद में पांच पीड़ितों ने कोर्ट के माध्यम से फर्जी लोन के पांच मुकदमे भी करवाए लेकिन उसमें ना तो पुलिस ने और ना ही बैंक ने कोई कार्रवाई की.
कैसे खुला मामला
आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल कुमार गौड़ ने 2016 में कई बैकों के 717 खातों से फर्जी तरीके से लोन देने की शिकायत की थी. उसके बाद सिर्फ 72 खातों की जांच हुई और जिनमें 58 खातों में फर्जी कागजात के जरिए लोन लेने की बात समाने आई थी.
इसके बाद रजिट्रर ऑफ सोसाइटी ऑफिस ने सेक्शन 62 के तहत संजय शर्मा नाम के अधिकारी की अगुवाई में जांच बिठाई. जांच में सामने आया कि बैंक ने बड़े पैमाने पर नियमों को ताक पर रख कर पहले तो फर्जी सदस्य बनाए. फिर लोन देने के लिए फर्जी कागजात बनाए गए जैसे इनकम टैक्स रिटर्न, पते का सबूत आदि. फिर सब लोन को आंख बंद कर बिना किसी जांच पड़ताल पास कर दिया गया. ये सब हुआ बैंक कर्मचारियों की कथित मिलीभगत से हुआ.