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कोरोना: दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती ने कायम की मिसाल, 'सेहत आपाओं' ने निभाई बड़ी जिम्मेदारी

इलाके की पार्षद यास्मीन किदवई बतातीं हैं कि तकरीबन 20 हजार की आबादी वाले निजामुद्दीन में मरकज के मामले के बाद कोरोना से जीत की कहानी अपने आप में मिसाल है. सबसे पहले हमने चारों ओर से फायर ब्रिगेड की गाड़ियों के जरिए सभी मुख्य रास्तों को सैनिटाइज किया.

सांकेतिक तस्वीर (PTI) सांकेतिक तस्वीर (PTI)
कुमार कुणाल
  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 9:59 AM IST

  • निजामुद्दीन बस्ती में कोरोना पर नियंत्रण
  • सेहत आपाओं ने निभाई बड़ी जिम्मेदारी

दिल्ली का निजामुद्दीन मरकज सबको याद होगा, जब तबलीगी जमात की वजह से दिल्ली में कोरोना की बाढ़ सी आ गई. उस वक्त यह इलाका काफी सुर्खियों में रहा, लेकिन उसी मरकज से सटे निजामुद्दीन बस्ती ने कोरोना में एक नई मिसाल कायम की है. निजामुद्दीन बस्ती ने कोरोना पर कंट्रोल करके एक नया मुकाम हासिल किया है. इसके पीछे दिल्ली सरकार, एमसीडी और आगा खां ट्रस्ट नामक एनजीओ ने अहम भूमिका तो निभाई ही, एक बड़ा रोल इस इलाके की तकरीबन 50 “सेहत आपाओं” का भी है. जब दिल्ली में तबलीगी जमात को लेकर पूरा बवाल चल रहा था तो आगा खां ट्रस्ट से जुड़ी ये आपाएं लोगों को बता रही थीं कि कैसे कोरोना से बचाव हो.

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दिल्ली में लॉकडाउन के वक्त जब सब कुछ बंद था, घर-घर जाने में भी दिक्कत थी और लोगों को जागरूक भी करना था. इन सबके बीच आगा खां ट्रस्ट ने एक इनोवेटिव तरीका अपनाया. ट्रस्ट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रातिश नंदा कहते हैं, 'हमने सोशल मीडिया पर ग्रुप मैसेज भेजने शुरू किए, क्योंकि इस इलाके की आबादी काफी बड़ी थी. हमने वाट्सऐप मैसेज का सहारा लिया, खास तौर पर वॉयस मैसेज का. जब भी वह मैसेज लोगों के पास पहुंचता है तो लोग उसे वाट्सऐप रेडियो कहते हैं.' सेहत आपाएं ही अपनी आवाज़ में थोड़ी हिंदी और थोड़ी अंग्रेजी में मैसेज भेजती हैं, हर आपा ने तकरीबन 50 घरों का जिम्मा संभाल रखा है.

जब मामला मरकज मस्जिद का आया तो ये साउथ ईस्ट दिल्ली का सबसे पहला कंटेनमेंट जोन बन गया क्योंकि तब तक इतने मामले एक साथ दिल्ली में ही क्या पूरे देश में नहीं आए थे. इलाके की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हरलीन कौर बताती हैं, 'उनके और पूरे प्रशासन के लिए चुनौती काफी बड़ी थी, क्योंकि इलाके में तबलीगी जमात की वजह से ये हॉटस्पॉट बन गया था. सबसे पहले जरूरी ये था कि वायरस पूरे इलाके में न फैले. इसी वजह से हमने डोर टू डोर सर्वे करवाया और इस सर्वे में तकरीबन 2000 घरों को शामिल किया गया. लोगों ने सहयोग भी किया और हमने कंट्रोल कर लिया.' इसी दौरान सेहत आपाओं के साथ ही दिल्ली सरकार के हेल्थ वर्करों ने भी पूरी बस्ती में घूम-घूम कर लोगों के बीच न सिर्फ कोरोना से जुड़ी जानकारियां पहुंचाईं बल्कि कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में मास्क, साबुन और सैनिटाइजर जैसे जरूरी सामानों को भी बांटा.

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इलाके की पार्षद यास्मीन किदवई बतातीं हैं, “तकरीबन 20 हजार की आबादी वाले निजामुद्दीन में मरकज के मामले के बाद कोरोना से जीत की कहानी अपने आप में मिसाल है. सबसे पहले हमने चारों ओर से फायर ब्रिगेड की गाड़ियों के जरिए सभी मुख्य रास्तों को सैनिटाइज किया. फिर पानी के टैंकर का इस्तेमाल भी सैनिटाइजेशन के लिए किया गया. यहां तक कि शहर में सबसे पहले ड्रोन के जरिए सैनिटाइजेशन का काम भी यहीं शुरू हुआ. घर-घर जाकर स्प्रे करने का काम तो आज भी चालू है.”

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इलाके की डीएम हरलीन कौर बतातीं हैं कि पूरे इलाके में अबतक 20 से भी कम कोरोना के मामले सामने आए हैं. वहीं आगा खां ट्रस्ट के रातिश नंदी का दावा है कि जो भी मामले आए हैं वो लॉकडाउन के बाद ही आए हैं. लॉकडाउन के दौरान तो पूरी बस्ती में एक भी मामले दर्ज नहीं किए गए. अब भी बिलकुल संकरे इलाके में बनी इस घनी आबादी वाली बस्ती निजामुद्दीन से कोरोना का डर तो गया नहीं है. लेकिन वाट्सऐप रेडियो, सेहत आंटी, दिल्ली सरकार और एमसीडी के नुमाइंदे दिन रात इस बात को सुनिश्चित करने में लगे हैं कि हजरत निजामुद्दीन दरगाह के पास सूफी परंपराओं की ये जमीन कोरोना से महफूज रहे.

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