
9 सितंबर को होने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव इस साल कई मायनों में अहम है. एक तरफ एनएसयूआई अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है, तो वहीं दूसरी तरफ एबीवीपी के लिए ये चुनाव साख की लड़ाई से कम नहीं है. लगातार दो सालों से डूसू के पूरे पैनल पर काबिज एबीवीपी हैटट्रिक करना चाहेगी, तो वहीं एनएसयूआई डूसू के पैनल पर वापसी करने के लिए पूरा दम-खम लगा रही है.
चुनाव प्रचार में कोई पीछे नहीं
हालात ये हैं कि चुनाव प्रचार के लिए उम्मीदवार अनोखे तरीके अपना रहे हैं और इन तरीकों के बीच खुलेआम लिंगदोह की सिफारिशों का उल्लघंन हो रहा है. कोई पटाखों की लड़ियों के शोर के बीच वोट मांग रहा है, तो कोई हमर और लम्बोर्गिनी जैसी लक्जरी कारों को शोकेस कर छात्रों को आकर्षित कर रहा है. कहीं नारेबाजी का दौर है, तो कहीं चलती कारों से पर्चा उड़ाते कार्यकर्ता कैंपस में प्रचार कर रहे हैं. कोई सर्कस से लंबे विशालकाय करतब दिखाने वाला लाया है, तो कोई अलग-अलग करैक्टर के कार्टून. ये डूसू का चुनावी रंग है, जो छात्र संगठनों के सिर चढ़कर बोल रहा है. फिर चाहे एबीवीपी हो या एनएसयूआई. चुनाव प्रचार में कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता. यही वजह है कि कैंपस की दीवारों से लेकर खंबे तक उम्मीदवारों और छात्र संगठनों के बैनर-पोस्टर से पटे हुए है.
डूसू जीतने का भरोसा
चुनाव प्रचार के रंगों और समर्थकों की भीड़ के बीच डूसू जीतने का भरोसा भी इन उम्मीदवारों को पूरा है. एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अमित तंवर के मुताबिक एबीवीपी ने साल भर कैंपस में छात्रों के लिए काम किया है. लिहाजा डूसू के पैनल की चारों सीटों पर एबीवीपी काबिज होगी. वहीं एनएसयूआई के वाइस प्रेसिडेंट कैंडिडेट अर्जुन छपराना के मुताबिक एबीवीपी की नाकामियां ही एनएसयूआई को जिताएगी. डूसू का असल मुकाबला बेशक एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच है, लेकिन आइसा भी डूसू जीतने की जोर आजमाइश कर रही है. लिहाजा क्लास टू क्लास कैंपन के जरिए आइसा के उम्मीदवार प्रचार करते दिखे. आइसा की ज्वाइंट सेक्रेटरी कैंडिडेट अंकिता निर्मल के मुताबिक पिछले चुनाव में भी आइसा का वोट शेयर बढ़ा था और इस बार भी आइसा बराबरी की टक्कर देगी.
लिंगदोह की सिफारिशों का उल्लंघन
लिंगदोह की सिफारिशों के मुताबिक डूसू में प्रचार के लिए छात्र के पास करीब 5 हजार रुपये का बजट होता है, लेकिन धनबल और बाहुबल दिखाने के मामले में एबीवीपी और एनएसयूआई सरीखे छात्र संगठन लाखों खर्च करते हैं. एनजीटी के आदेशों और लिंगदोह की सिफारिशों के उल्लंघन के मामले में डूसू इलेक्शन कमेटी ने छात्रों को नोटिस भी दिया है. लेकिन एबीवीपी के उम्मीदवारों के मुताबिक ये विरोधी दलों की साजिश है, तो वहीं एनएसयूआई इसे समर्थकों का जोश बता कर पल्ला झाड़ रही है.
छात्रों को रास नहीं आ रहा प्रचार का तरीका
डूसू उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार का तरीका छात्रों को भी ज्यादा रास नहीं आ रहा, लिहाजा कुछ छात्र तो वोट नहीं देने का भी मन बना रहे हैं. हालांकि डूसू इलेक्शन कमेटी इस साल लिंगदोह की सिफारिशों को लेकर पिछले साल के मुकाबले ज्यादा सख्त है. लिहाजा नियमों की अनदेखी करने वाले उम्मीदवारों का नामांकन तक रद्द हो सकता है. चीफ इलेक्शन ऑफिसर डी. एस. रावत डूसू चुनाव के मुताबिक उम्मीदवारों को दिए गए नोटिस के जवाब में ज्यादातर छात्रों ने विरोधी दलों का हवाला दिया है. लिहाजा सबूतों के आधार पर शिकायत प्रकोष्ठ विभाग को इलेक्शन कमेटी ने मामला सौंप दिया है. उम्मीदवारों के दोषी पाए जाने पर कमेटी उनका नामांकन भी रद्द कर सकती है.
रद्द हो सकता है छात्रों का नामांकन
बहरहाल डूसू का दंगल जीतने से पहले चुनाव प्रचार की ये कवायद कहीं उम्मीदवारों को भारी ना पड़े. हालांकि छात्र नामांकन रद्द होने की सूरत में अदालती रुख अख्तियार करने की तैयारी में हैं, लेकिन जरा सोचिए अगर चुनाव प्रचार में कैंपस का ये हाल है, तो डूसू जीतने के बाद का जश्न कैसा होगा.