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दिल्ली हिंसा के पीड़ितों पर कुदरत का कहर, राहत कैंपों में भरा बारिश का पानी

मुस्तफाबाद के राहत कैंपों के अंदर बारिश का पानी आने से हिंसा पीड़ित न बैठ पा रहे हैं और न ही सो पा रहे हैं. गुरुवार और शुक्रवार को हुई बारिश ने राहत कैंपों में शरण लिए लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी है.

बारिश से खुद को बचाने की कोशिश करते हिंसा पीड़ित बारिश से खुद को बचाने की कोशिश करते हिंसा पीड़ित
मुनीष पांडे
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 9:15 AM IST

  • राहत कैंपों में ठहरे लोगों के कपड़े और बिस्तर हुए गीले
  • टेंटों से टपक रहा बारिश का पानी, मुश्किल हुआ सोना
  • बारिश ने दिल्ली सरकार की बदइंतजामी की खोली पोल

दिल्ली हिंसा में अपने सिर के ऊपर की छत गंवा चुके पीड़ितों पर कुदरत भी कहर बरपा रहा है. गुरुवार और शुक्रवार को हुई बारिश ने राहत कैंपों में शरण लिए हिंसा पीड़ितों की मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी है. दिल्ली के मुस्तफाबाद में राहत कैंपों के अंदर बारिश का पानी भर गया. इसने दिल्ली सरकार की बदइंतजामी की भी पोल खोल दी है. इन पीड़ितों ने पहले हिंसा का दंश झेला और अब बारिश से जूझ रहे हैं.

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मुस्तफाबाद के कैंपों में पहले से ही काफी ज्यादा संख्या में हिंसा प्रभावित लोग शरण लिए हुए थे, जिनकी जिंदगी को बारिश ने और मुश्किल बना दिया है. राहत कैंपों के अंदर बारिश का पानी आने से हिंसा पीड़ित न बैठ पा रहे हैं और न ही सो पा रहे हैं. दिल्ली हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने इन लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया था. इसके बाद से ये लोग मजबूर होकर मुस्तफाबाद के राहत कैंपों में शरण लिए हुए हैं.

दिल्ली सरकार ने हिंसा पीड़ितों के लिए मुस्तफाबाद में राहत कैंप बनवाए हैं. ये राहत कैंप कपड़े के टेंट के बने हुए, जो पूरी तरह से वाटरप्रूफ नहीं हैं. लिहाजा गुरुवार रात और शुक्रवार को हुई बारिश का पानी कैंपों के अंदर चला गया. कई टेंटों की छत से भी पानी टपक रहा है. इसके चलते हिंसा पीड़ितों के कपड़े और बिस्तर भी गीले हो गए.

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राहत कैंपों में मासूम बच्चों की जिंदगी हुई मुश्किल

मुस्तफाबाद के एक कैंप में शरण लिए नूरजहां ने बताया कि गुरुवार रात को हुई बारिश का पानी कैंप के अंदर आ गया, जिसके चलते रातभर बच्चे भी नहीं सो पाए. दिल्ली हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने शिव विहार स्थित नूरजहां के घर को आग के हवाले कर दिया था.

राहत कैंप में शरण लिए हिंसा पीड़ित

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दिल्ली सरकार के अलावा गैर-लाभकारी सरकारी संगठनों ने हिंसा पीड़ितों के लिए दवाओं, कंबल, बिस्तर और कपड़े की व्यवस्था की है. हालांकि ये पर्याप्त नहीं हैं. इसकी वजह यह है कि राहत कैंपों में काफी संख्या में लोग शरण लिए हुए हैं.

सोचा भी नहीं था कि ऐसे तबाह होगी जिंदगी: हिंसा पीड़ित

राहत कैंप में अपने बच्चों और बहुओं के साथ ठहरी 65 वर्षीय नबीला का कहना है कि कुछ दिन पहले तक हम लोगों का अच्छा खासा घर था. हमने कल्पना भी नहीं की थी कि हमारी जिंदगी ऐसे तबाह हो जाएगी. उपद्रवियों ने पहले हमारे घर को लूटा और फिर गैस सिलेंडरों से घर में आग लगा दी. हम नहीं जानते हैं कि अब हमारी जिंदगी का क्या होगा.

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नबीला की एक बहू ने बताया कि अब वो अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है. उनका कहना है कि यह कोई जिंदगी नहीं हैं.

उस्मानपुर के राहत कैंपों में नहीं पहुंचे हिंसा पीड़ित

मुस्तफाबाद के अलावा दिल्ली सरकार ने उस्मानपुर में भी राहत कैंप बनाए हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहां कोई भी हिंसा पीड़ित नहीं पहुंच रहा है. जब आजतक की टीम कैंप नंबर 225 पहुंची, तो वहां सिर्फ तीन लोग ही मिले और वो भी हिंसा पीड़ित नहीं थे. यही हाल कैंप नंबर 202 का भी रहा.

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