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Delhi Weather, IMD Alert: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले महीने के आखिरी में मॉनसून लगभग अपने समय के आसपास ही पहुंचा. शुरुआत में तो अच्छी बारिश हुई, लेकिन उसके बाद से मानों बारिश दिल्ली से रूठ ही गई. मॉनसून की एंट्री के कुछ दिनों बाद से दिल्ली में झमाझम बारिश देखने को नहीं मिली. इस बीच, एक और बात जिससे लोग काफी निराश हैं, वह है मौसम विभाग (IMD) द्वारा मौसम का गलत पूर्वानुमान करना. दरअसल, कई दफे दिल्ली में बारिश को लेकर मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत साबित हुई. IMD ने समय-समय पर येलो और ऑरेंज अलर्ट जारी किए, लेकिन हर बार वह चूकते गए. विभिन्न मॉडलों के माध्यम से अनुमानित आंकड़ों की खराब व्याख्या के कारण दिल्ली के मामले में मॉनसून का पूर्वानुमान औसत रूप से विफल रहा है.
एक्सपर्ट्स के अनुसार, मौसम की भविष्यवाणी एक मैथमैटिकल एक्सरसाइज है जो काफी हद तक डेटा की सटीकता पर निर्भर करती है और तकनीकी गणनाओं के जरिए से इनकी व्याख्या की जाती है. यहां तक कि इन आंकड़ों में थोड़ी सी भी गलती होती है तो फिर पूर्वानुमान गलत साबित हो जाता है. यह काफी सामान्य है. मॉनसून की शुरुआत के बाद से, राष्ट्रीय राजधानी के लिए प्रमुख मॉनसून सिस्टम मायावी बना रहा है. यहां तक कि सोमवार और मंगलवार को हुई बारिश भी दिल्ली से गुजरने वाली किसी मॉनसून ट्रफ के बजाय लोकल सिस्टम की वजह से हुई है.
विशेषज्ञों का दावा है कि वैज्ञानिक रूप से पिछले पांच वर्षों के दौरान मौसम पूर्वानुमान प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ है, फिर भी मौसम की भविष्यवाणी करना अब भी कठिन है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक (DG) मृत्युंजय महापात्रा ने 'इंडिया टुडे' को मौसम की भविष्यवाणी की जटिलता और क्यों कुछ मामलों में इसे सही ढंग से पढ़ने में विफलता मिलती है, उसके बारे में समझाया है.
'100% सटीक नहीं हो सकता मौसम का पूर्वानुमान'
महापात्रा ने कहा कि पूर्वानुमान 100% सटीक नहीं हो सकता है, हालांकि हमारा 24 घंटे का पूर्वानुमान लगभग 80% सही है और हमने पिछले 5 वर्षों में इसे लगभग 40% तक सुधारा है. यहां तक कि 5 दिन का पूर्वानुमान भी अधिक है सटीक और सटीकता दर लगभग 60% है. हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आने वाले वर्षों में सुधार की काफी गुंजाइश है. निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट भी पूर्वानुमान मॉडल पर काम करती है और पिछले कुछ दिनों में यह विशेष रूप से दिल्ली के मौसम की भविष्यवाणी करने में भी लड़खड़ा गई है. स्काईमेट के वाइस प्रेसिडेंट महेश पलावत बताते हैं, ''हमने 7 और 8 जुलाई की जो भविष्यवाणी की थी, वह फेल हो गई क्योंकि हमने अनुमान लगाया था कि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली हवा दिल्ली और हरियाणा में मिल जाएगी, लेकिन यह पंजाब में मिल गई. दिल्ली पहुंचते ही सिस्टम कमजोर हो गया."
सटीक भविष्यवाणी के लिए और काम कर रहा मौसम विभाग
हालांकि, IMD नए मॉडलों के माध्यम से तकनीकी प्रगति और अन्य परिवर्तनों के साथ अपनी प्रणाली में सुधार के लिए लगातार काम कर रहा है. अभी तक, IMD के पास 34 सक्रिय रडार हैं, जिनके माध्यम से वह जानकारी इकट्ठी करता है. पिछले तीन वर्षों में 6 रडार जोड़े गए हैं. आईएमडी डीजी महापात्रा का दावा है कि हम रडार की संख्या बढ़ाने जा रहे हैं. 2025 तक, देश में रडार की कुल संख्या 65 हो जाएगी. अगले कुछ वर्षों में, हमने पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में 4 और रडार लगाने का फैसला किया है. पूर्वोत्तर क्षेत्र में 10 रडार और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में 11 अतिरिक्त रडार होंगे.
स्थापित किए जा रहे रडार सिस्टम
IMD यह भी जानता है कि मेट्रो शहरों के लिए इसकी भविष्यवाणी और पूर्वानुमान का ध्यानपूर्वक पालन किया जाता है और अगर यह गलत होती है तो उन्हें बहुत आलोचना का सामना करना पड़ता है. इसलिए, जहां तक सटीक मौसम पूर्वानुमान का संबंध है, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरी क्षेत्र सर्वोच्च प्राथमिकता में हैं. महापात्रा बताते हैं कि हम मुंबई में 4 रडार स्थापित कर रहे हैं, कोलकाता में एक अतिरिक्त रडार स्थापित किया जा रहा है, चेन्नई में 3 रडार हैं जबकि दिल्ली में आयानगर में एक नया रडार स्थापित किया गया है. कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजधानी में सफदरजंग, पालम में तीन रडार हैं, और आयानगर में नया स्थापित किया गया है. लेकिन इन मशीनों को स्थापित करने से ही जानकारी जुटाने में मदद मिल सकती है.
'मॉडल को पढ़ने में भी हो जाती है गलती'
एक्सपर्ट्स का दावा है कि मुख्य समस्या तब आती है जब व्याख्या गलत हो जाती है. महेश पलावत बताते हैं, "कभी-कभी व्याख्या में कोई खराबी होती है या कभी-कभी हम मॉडल को गलत तरीके से पढ़ लेते हैं, मॉडल में भी कुछ दोष हो सकते हैं. इसलिए, जब तक एक बड़ी मौसम प्रणाली शामिल नहीं होती है, तब तक सटीकता की समस्या बनी रहेगी. कभी-कभी उच्च आर्द्रता (हाई ह्यूमिडिटी) का रंग बारिश के रूप में दिखाया जा सकता है, इसलिए व्याख्या गलत हो जाती है. अगर नमी के आधार पर ऑरेंज या येलो अलर्ट जारी किया जा रहा है, तो यह गलत हो जाता है." यही वजह है कि आईएमडी अब एक्यूरेसी पार्ट पर ज्यादा काम कर रहा है. मॉडलों को सही ढंग से पढ़ने के लिए IMD को एडवाइंस कंप्यूटिंग सिस्टम की भी आवश्यकता होती है. अभी, विभाग 10 टेराफ्लॉप की क्षमता के साथ काम करता है और अगले तीन वर्षों में इसे 30 टेराफ्लॉप तक बढ़ाने की योजना बना रहा है.