
दीपावली के त्योहार की धूम है. कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बावजूद दीपावली को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह नजर आ रहा है. लोग बड़ी संख्या में खरीदारी करने बाजार में पहुंच रहे हैं. दीपावली के त्योहार पर चीनी लाइट्स की मांग अधिक रहती है लेकिन इस साल इसके उलट तस्वीर देखने को मिल रही है.
पुरानी दिल्ली के भगीरथ मार्केट के लाइट व्यावसायियों की मानें तो चीन के साथ तनाव और कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए काफी कम लाइट्स चीन से आयात की गई थीं. भगीरथ मार्केट के व्यावसायी बताते हैं कि जो चीनी माल था भी, वो एनसीआर के शहरों जैसे गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम से आए छोटे व्यावसायियों ने खरीद लिए.
व्यावसायियों की मानें तो ऐसा तीन साल बाद हुआ है जब दीपावली से पहले लाइट्स बिक गई हों. लाइटिंग बिजनेस से जुड़े व्यापारी बताते हैं कि ड्यूरेबिलिटी के लिहाज से स्वदेशी लाइट्स की मांग अधिक है. लाइटिंग मार्केट की इलेक्ट्रिकल ट्रेडर एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत आहुजा का कहना है कि लाइटिंग के सौ फीसदी मार्केट पर कभी चीन का कब्जा था. अब लोग चीनी माल को कम तरजीह दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों की संख्या भले ही दो फीसदी ही हो पर जरूरत है प्रोडक्शन को बढ़ाने की ताकि पूरी तरह से मेक इन इंडिया का नारा बुलंद हो सके.
इंडिया की तुलना में चीनी आइटम भले ही 20 फीसदी सस्ता हो लेकिन गारंटी के साथ लोग भारतीय माल ही खरीद रहे हैं. सदर बाजार में लड़ियों और फैंसी लाइट के होलसेलर सुनील कुमार बत्रा का कहना है कि भारत के साथ चीन का माल भी बाजार में है. चीन के माल की शॉर्टेज है लिहाजा भारतीय लाइट्स डिमांड में है. उन्होंने कहा कि चीनी आइटम भारतीय की तुलना में करीब 20 फीसदी सस्ता पड़ता है.
जामा मस्जिद में सदियों पुरानी पटाखे की दुकान चलाने वाले महेश्वर दलाल का कहना है कि पहले कभी ‘माचिस तीली’, ‘पॉप अप’ नाम के चीनी पटाखों की बहुत डिमांड थी लेकिन अब खुद भारत में ही ये पटाखए तैयार किए जाने लगे हैं. सदर बाजार में पटाखों के विक्रेता हरजीत सिंह छाबड़ा ने कहा कि बैन की वजह से हिंदुस्तानी पटाखे बेच नहीं पा रहे तो चाइनीज कहां से बेचेंगे?”
स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि हम कई चीजों में आत्मनिर्भर हो सकते हैं जैसे लड़ियां बना सकते हैं लेकिन एलईडी नहीं बना रहे. उन्होंने कहा कि गाड़ी बना रहे हैं लेकिन सेमी कंडक्टर नहीं बना रहे. अश्विनी महाजन ने कहा कि चीनी माल पर निर्भरता तब तक खत्म नहीं हो सकती जब तक हम प्रोडक्शन ना करें.