
दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने आगामी कॉलेजों और केंद्रों का नाम वीर सावरकर और दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज के नाम पर रखने का फैसला किया है. उन्होंने बताया कि यह फैसला विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठक में लिया गया है.
परिषद ने तीन सदस्यों सीमा दास, राजपाल सिंह पवार और अधिवक्ता अशोक अग्रवाल की असहमति के बावजूद सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति में प्रस्तावित बदलावों को भी पारित किया. इंटरव्यू के लिए उम्मीदवारों की संख्या सीमित करने का प्रस्ताव था, जिसे पहले वापस ले लिया गया था.
कॉलेजों के लिए उम्मीदवारों की संख्या की कोई सीमा नहीं है, जबकि विश्वविद्यालय विभागों के लिए, पहली वैकेंसी के लिए न्यूनतम 30 और प्रत्येक अतिरिक्त वैकेंसी के लिए 10 उम्मीदवारों को बुलाया जाएगा. सदस्यों ने सहायक प्रोफेसरों के चयन के लिए पीएचडी को महत्व दिए जाने पर अपना असंतोष व्यक्त किया क्योंकि पीएचडी के बिना कई एड हॉक और कॉन्ट्रैक्चुअल शिक्षकों को नुकसान होगा.
असंतुष्ट सदस्यों ने शिक्षा मंत्रालय के 5 दिसंबर, 2019 के पत्र को लागू करने और एड हॉक शिक्षकों के अवशोषण के लिए एक नियमन की मांग की है. मंत्रालय के पत्र में कहा गया है, "एड हॉक, टेंपररी या कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नियुक्त और काम करने वाले और पात्रता मानदंडों को पूरा करने वालों को संबंधित विश्वविद्यालय और या उसके कॉलेजों में इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किया जाएगा."
सीमा दास ने बताया कि वीसी ने कहा कि वे देखेंगे कि इस लेटर पर क्या करने की जरूरत है. विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद ने अगस्त में हुई अपनी बैठक में वीर सावरकर और सुषमा स्वराज के नाम पर आगामी कॉलेजों और सुविधा केंद्रों का नाम रखने का फैसला किया था. परिषद ने अटल बिहारी वाजपेयी, सावित्री बाई फुले, अरुण जेटली, चौधरी ब्रह्म प्रकाश और सीडी देशमुख के नामों का भी सुझाव दिया है. हालांकि, परिषद ने नामों को अंतिम रूप देने का अधिकार वीसी को दिया है.