
इंडिया गेट पर सर्जिकल स्ट्राइक की वर्षगांठ के दूसरे दिन जहां एक तरफ फौजियों के साथ बच्चे सेल्फी ले रहे थे. बड़े हथियारों की प्रदर्शनी में असलहों की रेंज और मारक क्षमता को जानने को उत्सुक थे. वहीं दूसरी तरफ पूर्व फौजी जो युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं, हाथों में तख्तियां लेकर दिल्ली सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक की निंदा में जुटे थे.
दरअसल दिल्ली सरकार करीब एक हजार पूर्व फौजियों को अपने अस्पतालों के सुरक्षा गार्ड के पदों से हटा रही है. वहीं पिछले दिनों सीएम अरविंद केजरीवाल ने इनसे मिलने से मना कर दिया. अब यही पूर्व फौजी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि क्या सैनिकों का सम्मान सिर्फ मरने के बाद ही होगा.
2007 में तत्कालीन सरकार ने सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के साथ बढ़ती मारपीट और अस्पतालों में दलाली रोकने के लिये डायरेक्टर जनरल रिसेटलमेंट, जो सेना के उन सैनिकों के रिसेटलमेंट के लिए बना है जो जल्दी रिटायर हो जाते हैं, से अस्पतालों की सुरक्षा के लिए इन पूर्व फौजियों को लगाने का एमओयू साइन किया था.
लेकिन अब केजरीवाल सरकार इन्हें बिना किसी शिकायत के हटा रही है. ऐसा करने से करीब एक हजार पूर्व फौजियों की आमदनी आधी हो जाएगी और पेंशन पर गुजारा करना पड़ेगा. रिटायर्ड कर्नल घनश्याम मिश्र जो कि करगिल युद्ध लड़ चुके हैं, उनका कहना है कि सरकार का ये कदम सरासर सैनिकों को सड़क पर लाने का प्रबंध है. जहां एक तरफ केजरीवाल सरकार शहीदों को एक करोड़ का मुआवजा दे रही है तो वहीं पूर्व फौजियों को नौकरी से बेदखल कर रही है.
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक की वर्षगांठ पर पूरे देश में 28 से 30 सितंबर तक पराक्रम पर्व का ऐलान किया है. जिसके तहत दिल्ली के इंडिया गेट पर प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया है.