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JNU चुनाव से पहले डिबेट में रेप, रोहित और राजद्रोह रहा मुद्दा

ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया जो कि वैचारिक धरातल पर एक दूसरे के धुर विरोधी हैं, लेकिन पहली बार कथित फासिस्ट खतरे यानी एबीवीपी के खिलाफ चुनावी गठजोड़ कर लिया है.

सभी संगठनों के निशाने एबीवीपी सभी संगठनों के निशाने एबीवीपी
विवेक शुक्ला
  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 6:44 AM IST

राहत इतनी ही थी कि बुधवार रात जेएनयू प्रेसिडेंशियल डिबेट के लिए तैयार मंच से आग भर नहीं बरसी, बाकी जेएनयू छात्र संघ चुनाव के मतदान से पहले तमाम दलों की तरफ से अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों ने भाषण के जरिए माहौल गरमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. प्रेसिडेंशियल डिबेट में 9 फरवरी के राजद्रोह मामले से लेकर #शटडाउनजेएनयू, #स्टैंडअपविदजेएनयू, रोहित वेम्यूला और हाल ही में आईसा के अनमोल रतन के रेप में फंसने जैसे मामले छाए रहे. कई मायनों में इस प्रेसिडेंशियल डिबेट और जेएनयू के चुनावों में हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ.

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बुधवार रात 8 बजे शुरू हुई प्रेसिडेंशियल डिबेट गुरुवार सुबह करीब 4 बजे तक चलने के बाद तो तमाम छात्रों के जहन में तस्वीर साफ हो चुकी थी कि किस दल का उम्मीदवार कितने पानी में हैं. एबीवीपी की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार जाह्नवी ओझा ने मंच से ऐलान भी किया कि 9 फरवरी का बदला लेफ्ट पार्टियों से जेएनयू 9 सितंबर को लेगा. मतदान 9 सितंबर को होना है.

'फासिस्ट खतरे' के खिलाफ लेफ्ट की ऐतिहासिक एकता
ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया जो कि वैचारिक धरातल पर एक दूसरे के धुर विरोधी हैं, लेकिन पहली बार कथित फासिस्ट खतरे यानी एबीवीपी के खिलाफ चुनावी गठजोड़ कर लिया है. हालांकि राजनीति में सूरज के पश्चिम से उगने जैसा कुछ नहीं होता लेकिन मिसाल के लिए यहां इस मुहावरे का इस्तेमाल जरूर किया जा सकता है. लेफ्ट गठबंधन, पारंपरिक एबीवीपी और एनएसयूआई के अलावा पहली बार छात्र चुनावों में किस्मत आजमा रही स्टूडेंट्स फॉर स्वराज, जो कि योगेंद्र यादव वाली स्वराज पार्टी का छात्र संगठन है, और बाप्सा यानी बिरसा-अंबेडकर-फुले स्टूडेंट्स असोसिएशन भी दौड़ में है. बाप्सा के बनने का आधार ये है कि अब तक तमाम पारंपरिक छात्र संगठनों और राजनीतिक पार्टियों ने अंबेडकर के नाम पर समाज की पिछड़ी जातियों का शोषण भर किया है, लिहाजा अंबेडकरवादी पार्टी फ्लोट करने का यही सही समय है.

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डिबेट में बाप्सा के राहुल पूनाराम ने मारी बाजी
साल 2015 के ऐतिहासिक जेएनयू छात्र संघ चुनाव से पहले कन्हैया को शायद ही कैंपस में कोई जानता रहा हो. लेकिन शानदार डिबेट की बदौलत पहले अध्यक्ष बनने वाले कन्हैया को अब देश में शायद ही ऐसा कोई हो जो न जानता हो, तो अगर डिबेट आधार है तो बाप्सा के राहुल ने बाजी मार ली. अंबेडकरवादी झंडा बुलंद करते हुए राहुल ने आईसा-एसएफआई और एबीवीपी समेत तमाम छात्र संगठनों की जमकर बखिया उधेड़ी. रेप से लेकर ऊना तक लेफ्ट और मनुवादी एबीवीपी को एक कैटेगरी में खड़ा करते हुए ये भी कहा कि 9 फरवरी की घटना के बाद आरएसएस को उनकी औकात दिखा दी. ये भी कहा कि लेफ्ट पार्टियों में सिर्फ गुंडे और लालची भरे हैं. कश्मीर का जिक्र करते हुए राहुल ने कहा कि कश्मीर में अपने बच्चों की तलाश में पत्थर हाथ में लेकर खड़ी उन मांओं को सलाम करता हूं.

9 फरवरी का जवाब 9 सितंबर को मिलेगा
एबीवीपी अकेला ऐसा छात्र संघ है जिसने अध्यक्ष पद के लिए किसी पुरुष के बजाय महिला को प्राथमिकता दी है. परिषद् की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार जाह्नवी झा ने जेंडर जस्टिस की लड़ाई में खुद को शेरनी बताया और कहा कि जेएनयू को शर्म से लाल करने वालों को 9 फरवरी का जवाब 9 सितंबर को मिलेगा. तकरीबन हर छात्र संगठन के प्रत्याशी ने विचारधारा के खिलाफ अवसरवादी गठबंधन करने के लिए लेफ्ट संगठनों पर हमला बोला. जेंडर जस्टिस को लेकर आईसा का सिर शर्म से इसलिए भी झुका है क्योंकि खुद उनका एक्टिविस्ट बलात्कार के आरोप में कुछ हफ्ते पहले ही जेल गया है.

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सभी संगठनों के निशाने एबीवीपी
कैंपस से जुड़े तमाम मुद्दों पर लेफ्ट से लेकर बाप्सा, स्वराज स्टूडेंट और एनएसयूआई के उम्मीदवारों में मतभेद भले रहा हो लेकिन एबीवीपी और आरएसएस पर हमले में चारों के बीच जबरदस्त एका था. एबीवीपी के वरिष्ठ कार्यकर्ता और 2016 के चुनावों में अहम भूमिका निभा रहे अभिषेक श्रीवास्तव इसे चुनाव से पहले ही परिषद की वैचारिक जीत बताते हैं. अभिषेक ने कहा लाल का गढ़ कहे जाने वाले जेएनयू में ये भय साबित करता है कि जेएनयू में भगवा सूरज का उदय हो रहा है.

वहीं एनएसयूआई के उम्मीदवार सनी धीमान ने कहा कि 9 फरवरी की घटना के बाद जब आरएसएस की साजिश में जेएनयू पर कालिख पोती जा रही थी तो राहुल छात्रों के साथ खड़े थे, बिना ये देखे कि वो किस विचारधारा से ताल्लुक रखता है. योगेंद्र यादव के स्वराज अभियान की स्टूडेंट्स फैडरेशन फॉर स्वराज यानी एसएफएस के उम्मीदवार दिलीप कुमार भी अध्यक्ष पद के लिए मैदान में है. दिलीप कुमार ने एबीवीपी पर आरोप लगाया कि शटडाउन जेएनयू आरएसएस की करतूत थी तो वहीं लेफ्ट पर हमला बोलते हुए कहा कि स्टेंड विद जेएनयू के वक्त सभी कॉमरेड गायब थे. 9 सितंबर को जेएनयू में वोटिंग होगी और 12 सितंबर को नतीजे सामने आएंगे.

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