
दिल्ली को कूड़े के पहाड़ों से मुक्ति दिलाने के लिए सीएम अरविंद केजरीवाल एक्शन मोड में हैं और खुद लैंडफिल साइट से कूड़े के निपटान की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. गुरुवार को अरविंद केजरीवाल ने भलस्वा लैंडफिल साइट का दौरा किया. मुख्यमंत्री का इस महीने ओखला लैंडफिल साइट के बाद यह दूसरा दौरा था इस दौरान सीएम ने साइट से कूड़ा खत्म करने की प्रक्रिया को समझा और एमसीडी को दोगुनी गति काम करते हुए अगले साल मार्च-अप्रैल तक पूरा कूड़ा खत्म करने के निर्देश दिए.
सीएम ने कहा कि भलस्वा से दिसंबर तक 30 लाख मीट्रिक टन कूड़ा उठा देंगे और मार्च-अप्रैल 2024 तक पूरा कूड़ा खत्म कर देंगे. लैंडफिल साइट्स पर पहले से अब दोगुनी गति से काम चल रहा है और जल्द ही हम दिल्ली को कूड़ा मुक्त करेंगे. इस अवसर पर शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज, एमसीडी की मेयर शैली ओबेराय, डिप्टी मेयर आले इकबाल, एमसीडी कमिश्नर समेत वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे.
ग्रीन कार्पेट को लेकर BJP का निशाना
इस बीच अरविंद केजरीवाल की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इस तस्वीर में भलस्वा लैंडफिल पर ग्रीन कार्पेट बिछाई गई है और सीएम केजरीवाल उस पर चलकर मुआयना कर रहे हैं. इस तस्वीर को लेकर बीजेपी ने सीएम केजरीवाल पर तीखा हमला किया है. बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने ट्वीट करते हुए कहा, 'लैंडफिल साइट का विजिट किया तो ग्रीन कार्पेट लगाकर चले.. क्योंकि राजा हैं साहेब.. हद है AAP की अरविंद केजरीवाल जी'
केजरीवाल ने कही ये बात
इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने बताया, 'पिछले 30 सालों में भलस्वा लैंडफिल साइट एक बड़ा कूड़े का पहाड़ बन गया है. पूरी दिल्ली का कूड़ा यहां आता है. इस कूड़े के पहाड़ को हटाने का कार्य चल रहा है. एनजीटी के आदेश के बाद 2019 में यहां से कूड़ा हटाया जाना शुरू हुआ. उस समय भलस्वा लैंडफिल साइट पर करीब 80 लाख मीट्रिक टन कूड़ा मौजूद था. 2019 से लेकर आजतक 30 लाख मीट्रिक टन कूड़ा हटाया जा चुका है. जबकि अभी 50 लाख मीट्रिक टन साइट पर पड़ा है. लगभग दो-ढाई साल में 30 लाख मीट्रिक टन कूड़ा हटाया जा सका है.'
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अब हम लोगों ने दिसंबर 2023 तक 30 लाख मीट्रिक टन कूड़ा हटाने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने कहा, 'हमें पूरी उम्मीद है कि अगले साल मार्च-अप्रैल तक लैंडफिल साइट पर बचा 50 लाख मीट्रिक टन कूड़े को हटा दिया जाएगा. कूड़ा हटाने की पहले जो गति थी, अब उससे दोगुनी गति से काम चल रहा है. मैंने इसकी समीक्षा भी की है. पहले यहां से 6500 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन उठाया जा रहा था. लेकिन कल (बुधवार) से 9 हजार मीट्रिक टन कूड़ा उठ रहा है. वहीं, इस महीने के अंत तक कूड़ा उठाने की गति दोगुना कर दी जाएगी और करीब 12-13 हजार मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन उठना चालू हो जाएगा.'
दिल्ली में हर दिन 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि लैंडफिल साइट पर जो नया कूड़ा आ रहा है, उसके लिए अलग से इंतजाम किया गया है. नया आने वाले कूड़े के निपटान की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है और लगातार उसको डिस्पोज किया जा रहा है. दिल्ली में प्रतिदिन करीब 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा बनता है. उसमें से 8100 मीट्रिक टन से अधिक कूड़े के डिस्पोजल का हम लोगों के पास इंतजाम है. वहीं, करीब 2800 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना बच रहा है. इसके लिए ओखला में एक हजार मीट्रिक टन का अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने का काम चल रहा है. इस कूड़े को डिस्पोज करने के लिए बवाना में दो हजार मीट्रिक टन का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बन रहा है, जो 2026 तक बनकर तैयार हो जाएगा. उन्होंने कहा, 'तब तक नये कूड़े को प्रतिदिन डिस्पोज करने के लिए हमने अस्थाई व्यवस्था की है. भलस्वा साइट से 10 हजार मीट्रिक प्रतिदिन लेगेसी वेस्ट उठता है और प्रतिदिन आने वाला 2 हजार मीट्रिक टन कूड़े को डिस्पोज किया जाता है. उन्होंने कहा कि कूड़ा घरों में भी सेग्रीगेशन हो सकता है. लेकिन कई घरों में सेग्रीगेशन नहीं होता है. हम जो कूड़ा एकत्र करते हैं, उसको भी सेग्रीगेट करते हैं. अब वेस्ट टू एनर्जी में भी काफी कूड़ा सीधे जा सकता है.'
क्या है भलस्वा लैंडफिल साइट
भलस्वा लैंडफिल साइट 28 साल पुरानी साइट है. यह 70 एकड़ में फैली है. इस लैंडफिल की ऊंचाई जमीन से 65 मीटर थी. जब 2019 में सर्वेक्षण किया गया, तो इसमें 80 लाख मीट्रिक टन कूड़ा पाया गया. तब से साइट पर 24 लाख मीट्रिक टन नया कूड़ा डंप किया गया है और वहां 30.48 लाख मीट्रिक टन कचरे का बायोमाइनिंग किया गया है. बायोमाइनिंग के दौरान, लेगेसी वेस्ट को तीन घटकों, इनर्ट वेस्ट, कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट और रिफ्यूज डेराइव्ड फ्यूल में अलग किया जाता है. इसमें से निष्क्रिय और सीएंडडी कचरे का उपयोग दिल्ली और उसके आसपास एनएचएआई की परियोजनाओं में खाली भूमि को भरने में किया जा रहा है. अपशिष्ट व्युत्पन्न ईंधन का उपयोग सीमेंट कारखानों, बिजली संयंत्रों और प्लास्टिक पुनर्चक्रण संयंत्रों में किया जा रहा है.