
पिछले कई वर्षों के चुनाव खर्च का ब्यौरा मांगे जाने के बावजूद जानकारी साझा न करने पर हाईकोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन को फटकार लगाई है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आप चुनाव खर्च नहीं बताने के आधार पर निर्वाचित सदस्यों का नाम अधिसूचित नहीं कर रहे हैं और उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं. आपके द्वारा चुनाव खर्च मांगने के पहले की प्रक्रिया भी नहीं बताई गई है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, क्या कारण है कि आप पहले का विवरण नहीं दे रहे हैं.
कोर्ट ने यह कहते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन से चुनाव खर्च मांगने के पिछले वर्षों का विवरण पेश करने को कहते हुए सुनवाई टाल दी है. कोर्ट ने यह दिशा-निर्देश जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के निर्वाचित सदस्यों की याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया गया. दरअसल पिछले सालों में छात्र संघ के निवार्चित सदस्यों द्वारा अलग-अलग चुनाव का खर्च नहीं देने की वजह से विश्वविद्यालय ने चुनाव जीते प्रत्याशियों के नाम की अधिसूचना ही जारी नहीं की है, जिसे निर्वाचित सदस्यों ने चुनौती दी है.
कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन से 11 मार्च को पिछले वर्षों का चुनाव खर्च मांगे जाने की प्रक्रिया बताने को कहा था. दिल्ली हाई कोर्ट में विश्वविद्यालय में निर्वाचित सदस्यों ने याचिका दाखिल कर कहा है कि अधिसूचना जारी नहीं करके उन लोगों को अपने कर्तव्य निर्वाहन से रोका जा रहा है. लिहाजा कोर्ट, प्रशासन को निर्देश दे कि वह जल्द अधिसूचना जारी करे. कोर्ट ने पहले कहा था कि विश्वविद्यालय प्रशासन को पहले से निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. चुनाव खर्च की जानकारी नहीं देने वाले सदस्यों के नाम शिकायत निवारण समिति के पास दिए जाने चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया गया और निर्वाचित सदस्यों को सुने बगैर डीन ने फैसला ले लिया.
विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से पेश हुए वकीलों ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि लिंगदोह कमेटी के अनुसार चुनाव नतीजे घोषित होने के 15 दिनों के भीतर निर्वाचित सदस्यों को चुनाव खर्च का ब्यौरा देना होता है. लेकिन 19 निर्वाचित सदस्यों ने संयुक्त बिल दिया है. जबकि उनसे अलग-अलग बिल देने को कहा गया था. इसपर छात्र संघ की तरफ से पेश हुए वकीलों ने कहा कि 2018 से पहले के चुनाव में बैंक खातों का आडिटेड स्टेटमेंट मांगा जाता था, न कि व्यक्तिगत बिल.