
दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला आयोग के अधिकारों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले में महिला आयोग सरकार को किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई या स्थानांतरण के लिए कोई आदेश नहीं दे सकती.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले मे कहा है कि महिला आयोग का काम महिलाओं की समस्याओं को हल करने के लिए एक नोडल एजेंसी की तरह काम करना है ,वो अपनी सिफारिशें तो सरकार या किसी विभाग को भेज सकती है, लेकिन किसी संस्थान या सरकार को कोई आदेश नहीं दे सकती.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि महिला आयोग के पास लेजिस्लेटिव पावर नहीं है, बल्कि वो अपने पास आने वाली शिकायतों के निपटारे और महिलाओं की मदद के लिए सुमोटो लेकर नोटिस जारी कर सकती है.
दरअसल महिला आयोग ने एक वैवाहिक विवाद मे सिंगापुर में भारतीय हाई कमीशन को पति को तब तक नौकरी से हटाने के आदेश देते हुए पत्र लिखा, जब तक की वैवाहिक विवाद ख़त्म न हो जाए. इस पत्र पर उस व्यक्ति को टर्मिनेट कर भी दिया गया, जिसके ख़िलाफ़ उसने हाईकोर्ट मे याचिका लगाई. हाईकोर्ट ने पति के पक्ष मे फ़ैसला दिया, जिसे उसकी पत्नी और महिला आयोग ने हाईकोर्ट मे चुनौती दी थी.
हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि न सिर्फ महिला आयोग का दिया आदेश ग़लत था, बल्कि कानूनी तौर पर भी वैध नहीं था. इसके अलावा महिला की शिकायत का कोई भी ठोस आधार नहीं है, बल्कि उसने महिला और बाल विकास मंत्रालय की सलाहकार होने का ग़लत फ़ायदा उठाया.