
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में हर दिन दर्ज होने वाले कोरोना केसों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. दिल्ली के अनुभव ने एक बार फिर ये साबित किया है कि किसी शहर या राज्य को इस महामारी से मुक्त घोषित करना मूर्खतापूर्ण साबित हो सकता है.
दो हफ्ते से भी कम समय हुआ है जब राज्य के स्वास्थ्य विभाग का कहना था: “आंकड़े न केवल कोरोना वायरस को हराने में दिल्ली मॉडल को सफल बना रहे हैं, बल्कि दिल्लीवासियों को राहत भी दे रहे हैं.”
बाद में दिल्ली सरकार की ओर से दावा किया गया कि दुनिया भर के देश न सिर्फ दिल्ली “मॉडल” की तारीफ कर रहे हैं, बल्कि इसे अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ ही दिन बाद ही ये साबित हो गया कि ऐसा दावा करना जल्दबाजी थी.
कुछ ही दिन बाद दिल्ली में हर दिन 2,000 से ज्यादा केस सामने आ रहे हैं. केस और तेजी से दोगुना हो रहे हैं. इसके साथ ही दिल्ली फिर भारत और दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक हो गया है. 2 सितंबर को दिल्ली में कोरोना के 2500 नए केस दर्ज हुए. इस दिन 3,400 नए केस के साथ सिर्फ बेंगलुरु दिल्ली से आगे था.
हालांकि, दिल्ली में हर दिन दर्ज होने केसों में एक निश्चित गिरावट आई थी. यह दिखा भी, क्योंकि अस्पतालों पर दबाव कम हो गया था, लेकिन इसे दिल्ली का सफल "मॉडल" घोषित करना जल्दबाजी थी. 11 जुलाई तक हर दिन नए केस की संख्या 2,000 से नीचे आ गई थी, लेकिन तीन हफ्तों तक लगातार ये संख्या 1,000 से ज्यादा बनी रही.
इस लिहाज से देखें तो दिल्ली का हाल चेन्नई और मुंबई जैसे शहरों के जैसा ही था. इन दोनों शहरों में पहले तो नए केस में उछाल आया, लेकिन जब केस की संख्या 2,000 से नीचे आई, तब भी यहां 1,000 से ज्यादा केस दर्ज किए जा रहे थे. दिल्ली मॉडल या इसकी सफलता का अलग से कोई विशेष प्रमाण सामने नहीं आया.
जून के अंत से राजधानी में एक्टिव केसों की संख्या में लगातार गिरावट शुरू हुई थी और 4 अगस्त तक यह अपने न्यूनतम स्तर तक गिर गई. उस वक्त एक्टिव केस की कुल संख्या 10,000 थी. लेकिन इसके तुरंत बाद एक्टिव केस तेजी से बढ़ने लगे और केस कम होने का रुझान उलट गया.
बढ़ते केस को देखते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने टेस्ट संख्या बढ़ाने की घोषणा की है. लेकिन असल मुद्दा ये है कि किस तरह का परीक्षण किया जाएगा.
पिछले हफ्ते के दौरान टेस्टिंग में वृद्धि हुई और पॉजिटिविटी में गिरावट आई है. दिल्ली फिलहाल हर दिन 82,000 टेस्ट कर रही है. ये पिछले हफ्ते के 76,000 से ज्यादा है. इस दौरान पॉजिटिविटी रेट 11.15 से घटकर 11 फीसदी पर आ गई है.
लेकिन बढ़ते केस के साथ पॉजिटिविटी में गिरावट क्या ज्यादा टेस्टिंग का नतीजा है या कम प्रभावशाली टेस्टिंग का संकेत है? दिल्ली में टेस्टिंग का रुझान लगातार एंटीजन टेस्ट की तरफ है जो कि कम संवेदनशील है. राज्य में आरटी-पीसीआर टेस्ट के मुकाबले दोगुना एंटीजन टेस्ट किए जा रहे हैं, जबकि एंटीजन टेस्ट के रिजल्ट इतने उतने विश्वसनीय नहीं हैं. जब तक एंटीजन और आरटी-पीसीआर टेस्ट के अलग-अलग आंकड़े जारी नहीं होते, तब तक ये बता पाना मुश्किल होगा कि बढ़े हुए टेस्ट का क्या प्रभाव पड़ रहा है.