
दिन सोमवार 15 फरवरी, दोपहर 12 बजे. जब मेरा ऑटो बेर सराय की तरफ पड़ने वाले जेएनयू ईस्ट गेट पर रुका. तो वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने मुझसे पूछा मैं कहां जा रहा हूं. मेरे ये कहने पर कि मुझे कैंपस में जाना है उन्होंने आई-कार्ड मांगा. जब मैंने कहा कि मैं यहां का स्टू़डेंट नहीं हूं तो उन्होंने मेरा ऑटो वहीं से वापस लौटा दिया. मजबूरी में वहां से आगे बढ़कर मैंने आईआईएमसी गेट पर ऑटो छोड़ा. फिर पूर्वांचल हॉस्टल के रास्ते मैं पैदल ही जेएनयू में दाखिल हुआ.
पहले प्रत्यक्षदर्शी से मुलाकात
पूर्वांचल पर मेरी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो जेएनयू विवाद को लेकर पूरे घटनाक्रम का प्रत्यक्षदर्शी है. उन्होंने मुझे 9 फरवरी का आंखों देखा हाल बताया जो कुछ यूं था, 'DSU के कुछ लोगों की अगुवाई में साबरमती हॉस्टल से जब जुलूस निकला तो उसमें जेएनयू के लगभग सभी वामपंथी छात्र संगठन (DSU, DSF, AISF, AISA, SFI) शामिल थे. छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया इस जुलूस के आगे-आगे चल रहे थे और दूसरी तरफ से ABVP के कुछ छात्र, छात्रसंघ के ज्वाइंट सेक्रेटरी सौरभ कुमार की अगुवाई में आ रहे थे. दोनों जुलूसों के आमने-सामने आने पर मामला काफी बढ़ गया. बात मार-पीट तक पहुंच गई. वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स और पुलिस ने किसी तरह से मामले को सुलझाया जिसके बाद कन्हैया ने वहां स्पीच दी. हालांकि कन्हैया की स्पीच में देशद्रोह जैसा कुछ नहीं था. उन्होंने बस ABVP और RSS के विरोध में अपनी बात रखी थी.'
रैली समझकर आई थी भीड़
प्रत्यक्षदर्शी ने आगे बताया, 'रैली में शामिल कम ही लोगों को पता था कि आगे नारेबाजी जैसा कुछ होने वाला है. जब इधर से नारेबाजी शुरू हुई तो ABVP ने भी जवाब में नारेबाजी की. अफजल गुरु से संबंधित नारे DSU वाले ही लगा रहे थे, भीड़ में शामिल ज्यादातर लोग दोनों पक्षों में टकराव रोकने की कोशिश कर रहे थे.'
एडमिन ब्लॉक है JNU का ताजा 'रणक्षेत्र'
इन्होंने अपनी बात खत्म की तो हम आगे बढ़े जेएनयू के हृदय स्थल गंगा ढाबे की तरफ. रास्ते में पड़ने वाले एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक पर कुछ गहमागहमी दिखी. हम उधर ही चल पड़े और वहां देखा तो बड़े-बड़े शब्दों में रोहित वेमुला को न्याय दिलाने के लिए आमरण अनशन की बात लिखी थी. बगल में ही सैकड़ों की संख्या में छात्र एक सभा की शक्ल में वहां मौजूद थे. छात्र अपने यूनियन लीडर कन्हैया कुमार की रिहाई के लिए नारे लगा रहे थे. उनके नारों में कन्हैया की रिहाई के साथ ही कैंपस में आरएसएस की 'गुंडागर्दी' के विरोध का भी शोर था.
छात्रों को हर तरफ फैले एजेंटों का अंदेशा
वहां मौजूद कुछ लोगों से मैंने बात करने की कोशिश की. लेकिन कैंपस का माहौल ऐसा बन गया है कि हर अंजान व्यक्ति को वहां संदेह की निगाह से देखा जा रहा है. कई छात्रों ने काफी समझाने, बार-बार अपना मीडिया आई दिखाने के बाद हमसे बात की. उनका कहना था कि यहां पता नहीं कौन आईबी, सीबीआई और रॉ का आदमी घूम रहा हो इसलिए हम हर किसी से बात नहीं कर सकते.
उमर ही था 'देशद्रोह' का अगुवा
वहां मौजूद DSF के पदाधिकारी ईशान से हमारी बातचीत हुई. ईशान ने हमें बताया, '9 फरवरी के कार्यक्रम के लिए पहले तो प्रशासन ने अनुमति दे दी थी. बाद में ABVP के बहुत दबाव बनाने पर कार्यक्रम से ऐन पहले ये अनुमति वापस ले ली गई. छात्रों ने अनुमति ना होने के बाद भी साबरमती ढाबे से जुलूस निकाला जिसकी अगुवाई DSU के उमर कर रहे थे. इस जुलूस में सारे लेफ्टिस्ट छात्र संगठन मौजूद थे लेकिन नारेबाजी DSU वाले ही कर रहे थे. दूसरी तरफ ABVP जुलूस था जो इस जुलूस के विरोध में नारेबाजी कर रहा था. जुलूस खत्म होने के बाद JNUSU प्रेसीडेंट कन्हैया कुमार और रामा नागा ने वहां भाषण दिया. इन भाषणों में ABVP और RSS की खिलाफत की गई थी. इसमें देश विरोधी कोई बात नहीं थी. वहां दोनों गुट आमने-सामने आ गए और सिक्योरिटी गार्ड्स ने पुलिसवालों के साथ मिलकर बड़ी मुश्किल से बीच बचाव किया.'
'DSU हर साल मनाता है अफजल जयंती'
ईशान ने हमें यह भी बताया की DSU हर साल अफजल की बरसी पर कार्यक्रम करता है. इसके बाद हमारी बात एडमिन ब्लॉक में हो रहे प्रोटेस्ट में शामिल होने आ रही हिमांशी से हुई. उन्होंने बस इतना ही कहा, 'कन्हैया उस प्रोटेस्ट में नहीं थे. वो वहां लोगों को रोकने आए थे.'
मामले को इतना तूल देना गलत है
पॉलिटिकल साइंस में एम ए कर रही एक छात्रा ने अपना नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, 'हम नारे लगाने वालों का समर्थन नहीं करते लेकिन, इस पूरे मामले को जिस तरह तूल दिया जा रहा है वो गलत है. नारे किसने लगाए थे ये अभी साफ नहीं है इसलिए कन्हैया की गिरफ्तारी गलत है. हम इसके विरोध में उनकी रिहाई तक प्रोटेस्ट करेंगे.'
कभी-कभी एक्सट्रीम डेमोक्रेटिक हो जाता है JNU
कैंपस के अंदर ही मुझे एक डीयू के प्रोफेसर मिल गए जो इस पूरे मामले को शुरू से ही फॉलो करते आए हैं. उन्होंने मुझे जो बताया वो कुछ यूं है, 'जेएनयू की सबसे बड़ी खासियत है इसका डेमोक्रेटिक होना. हालांकि कभी-कभी ये परिसर एक्सट्रीम डेमोक्रेटिक हो जाता है जो कि गलत है. कन्हैया भले की उस घटना में सीधे तौर पर शामिल ना रहे हों, लेकिन जिस तरह के लोगों को वो प्लेटफॉर्म मुहैया करा रहे हैं वो गलत है. उन्हें सोचना चाहिए कि किसे प्लेटफॉर्म देना है किसे नहीं. अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ ये नहीं है कि आप कुछ भी बोल दें.'
अघोषित कर्फ्यू जैसा है कैंपस का माहौल
इस सबसे इतर कैंपस के अंदर पुलिस तो नहीं है लेकिन माहौल अघोषित कर्फ्यू जैसा है. सड़कों पर इक्का-दुक्का लोग ही दिख रहे हैं. जेएनयू का मशहूर गंगा ढाबा बंद है. मेन गेट पर भारी संख्या में पुलिस जमा है, चारों तरफ ओबी वैन खड़ी हैं. जहां कभी मेले जैसा माहौल होता था वहां अब बचा है सिर्फ सन्नाटा.