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Ground Report: 'बकरा काटने वाले चाकू से बेटा काट दिया, कोविड में पति चल बसे, अब CCTV के सहारे हूं...', अंकित सक्सेना की मां का दर्द

बकरा काटने का जो चाकू होता है, उससे मेरे बच्चे को काट दिया. खून भल-भल करके बह रहा था. लहराकर गिरता, उसके पहले मैंने और 'अंकित के पापा' ने उसे थाम लिया. खून से सने हुए ही ई-रिक्शा में अस्पताल पहुंचे. मरे हुए बेटे का इलाज करवाने के लिए. 6 साल बीते. अब भी खून देखते ही बेटे की कटी गर्दन याद आती है.

अंकित सक्सेना हत्याकांड में दोषियों की सजा तय होने जा रही है. अंकित सक्सेना हत्याकांड में दोषियों की सजा तय होने जा रही है.
मृदुलिका झा
  • नई दिल्ली,
  • 12 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST

पश्चिमी दिल्ली का रघुबीर नगर. ठीक 6 बरस पहले यहां एक घर के जवान बेटे की गला काटकर हत्या कर दी गई. हत्यारों को शक था कि अंकित का उनकी बेटी से प्रेम-संबंध है. इसी मामले पर 15 जनवरी को सजा का फैसला आने वाला है. 3 साल के भीतर उसके पिता की भी मौत हो गई. घर में सिर्फ अंकित की मां हैं.

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कुरेदने पर हिचकियां लेकर रोती नहीं, वाकया दोहराती हैं. आंखें कैमरे से अलग भटकती हुईं. हम जिस भाषा में रोते हैं, वे उस भाषा में देखती हैं. 

जनवरी की बेहद सर्द सुबह हम रघुबीर नगर पहुंचे.

एड्रेस पता करना मुश्किल नहीं था. मकान नंबर पूछते ही हर कोई बताने को तैयार. मुस्तैद ड्राइवर गली के मुहाने तक पीछे-पीछे आया. 'ये इलाका सही नहीं. जिनसे मिलना है, उन्हें कॉल करके नीचे बुला लें तो ठीक रहेगा.' उम्रदराज मनुहार. फोन करने पर तारदार संकरी गली से एक हाथ हिलता है.

गली के बीचोबीच यही वो घर है, जहां एक औरत दो तस्वीरों के साथ रहती है. 

संकरी सीढ़ियां चढ़ते ही ड्राइंगरूम खुल आता है.

सामने ही अंकित की मुस्कुराती हुई लाल फूलों से सजी बड़ी-सी तस्वीर. ठीक बगल में पिता की फोटो. टाइलों से मढ़ी ये दीवार घर की अकेली चमचमाती चीज है. पास ही में सीसीटीवी स्क्रीन लगी हुई. वहां पहुंचे अंकित के रिश्तेदार कहते हैं- अकेली रहती हैं. मामला पेचीदा था. पास ही माइनोरिटी की बस्ती है. हर कोई इन्हें जानता है. हमने ही जिद करके कैमरा लगवा दिया. बाकी पड़ोसी तो हैं ही. कोई खटका हुआ तो देख लेंगे. 

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इतने में अंकित की मां आ पहुंचती हैं. गीले हाथ पोंछते हुए बिस्तर के कोने में बैठने का इशारा करते हुए कहती हैं- आज काफी ठंड है. चाय पिएंगी? माथे पर ताजा तिलक. ठीक-ठाक कपड़े. बाल बने हुए. आंखें रोने से गुलाबी या सूजी हुई नहीं. मेरे भाव गड़बड़ा जाते हैं. ये वो मां नहीं, जिसके बारे में सोचते हुए मैं इतनी दूर आई. 

1 फरवरी को क्या हुआ था? गोलमोल किए बगैर इंटरव्यू शुरू हो जाता है. 

रात के 8 बजे होंगे. अंकित काम से लौटा और बैग रखकर बाहर चला गया. मैं खाने की तैयारी में जुटी थी, तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और कहा कि अंकित से गली में कुछ लोग लड़ रहे हैं. इसके पापा ऊपर काम कर रहे थे. उन्हें बताया तो कहा कि हाथ का काम निपटाकर आता हूं. 

मैं भागती हुई नीचे गई तो देखा कि हमारे पुराने पड़ोसी गाली-गलौज कर रहे थे. चिल्ला रहे थे कि बता, हमारी बेटी को कहां छिपा रखा है वरना मार देंगे. इधर मेरा बेटा लगातार बोले जा रहा था- ‘आंटी मुझे शहजादी का नहीं पता. आप पुलिस को बुलवा लीजिए. मैं यहीं खड़ा रहूंगा’. 

मैं बीच-बचाव करने लगी तो लड़की की मां मुझपर टूट पड़ी. वो गाली देते हुए मारपीट कर रही थी. अंकित बचाने आया तो लड़की के भाई और मामा ने उसके हाथ पकड़ लिए. पीछे से उसके पापा आए. मेरे बेटे का बाल खींचकर उसकी गर्दन अपनी ओर झुकाई, और चाकू से काट दिया. खच्च. एक ही झटके में. जैसे पूरी प्लानिंग करके आए हों. 

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इतना-बड़ा चाकू था, बकरा काटने वाला चाकू. कमलेश हाथ से इशारा करते हुए बता रही हैं. 

आप लोग तो सामने थे. इतना कुछ हो रहा था तो रोक क्यों नहीं सके?

सोचा ही नहीं था कि हमारे बच्चे को हमारे ही पुराने पड़ोसी मार देंगे. वो तो सबसे हुलसकर मिलता था. जिस लड़की की वे बात कर रहे थे, उसके साथ बचपन में खेलता-कूदता था. 8-10 साल के रहे होंगे. गली के सब बच्चे संग-साथ ही रहते. कैसे समझ आता कि वे ऐसा कर देंगे. 

आपको शहजादी और अंकित के रिश्ते का कुछ पता था?

पता होता तो क्या इतना कुछ होने देते! अगर इकलौते बेटे का मन किसी से जुड़ गया हो तो हम क्यों नहीं मानते. खुद लड़की के घर जाकर मान-मनौवल कर आते. 

कमलेश बार-बार शहजादी को ‘उस लड़की’ कहती हैं, जैसे नाम लेंगी तो कुछ दरक जाएगा. मैं जानते हुए पूछती हूं- हादसे के बाद शहजादी से आपकी कभी मुलाकात नहीं हुई?

वे हवा में टुकुर-टुकुर देख रही हैं. सवाल दोहराने पर कहती हैं- कोर्ट में देखा था. लेकिन न हमने बात की, न उसने कोशिश. वैसे भी उस लड़की ने कोर्ट में अपने मां-बाप की तरफ से गवाही दी थी. 

लेकिन कहा तो ये जाता है कि शहजादी ने अंकित और आपके सपोर्ट में बयान दिए थे!

नहीं. वो कोर्ट में मुकर गई थी. अपने माता-पिता को बचाने के लिए गलत-सलत बात करने लगी. 

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कमलेश की वाट्सएप पिक्चर में यही लगा हुआ है. 

यही बात कमलेश के वकील विशाल गुसाई भी कहते हैं. वे बताते हैं- शहजादी ने अपने परिवार के पक्ष में गवाही दी थी. लेकिन सड़क पर खड़े चश्मदीदों ने मामला संभाल लिया. 

वो कहां है, कुछ पता है आपको?

नहीं. और उससे हमें क्या करना! कुछ मिनटों में अंकित चला गया. कुछ सालों में उसके पापा. मेरे पास पूरी जिंदगी पड़ी है! 

दिनभर क्या करती हैं? 

चाय-पानी, पूजा-पाठ. पड़ोसियों से बोल-बतिया लेती हूं. कभी टीवी देखती हूं. कभी मायकेवालों के पास देहरादून चली जाती हूं. या बिछावन पर पड़ी रहती हूं. अकेला जन काम भी क्या करे! 

ये कहते हुए वे घुटनों पर हाथ देते हुए उठ खड़ी हुईं. ‘आपके लिए चाय बना लाऊं. सर्दी है.’ चेहरे पर कोई भाव नहीं. 

कमलेश से बात हो ही रही थी कि अपनी बच्ची को लिए एक पड़ोसन आ पहुंची. मीडिया जानने पर कहती हैं- उस वक्त इतने वादे किए थे. अब इनकी ये हालत है लेकिन कोई झांकने भी नहीं आता. अंकल के जाने के बाद से आंटी बीमार चल रही हैं. बीपी, शुगर सब. उसपर दुख की बीमारी. अभी ही बीमार पड़ीं तो हम लेकर गए. मगर कितना कर पाएंगे. कोई इंश्योरेंस ही मिल जाता!

हत्याकांड के तुरंत बाद मामला इतना उछला कि बहुत सी धार्मिक-राजनैतिक पार्टियों ने मदद का भरोसा दिया था. हालांकि कुल 15 लाख रुपये दिल्ली सरकार की तरफ से मिले. इसके अलावा एक स्थानीय एनजीओ मदद करता आ रहा है.

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इस बीच कमलेश चाय की प्यालियां ले आईं. बदरंग ट्रे पर स्टील के छोटे-छोटे गिलास. साथ में नमकीन. इस बार बिना सवाल वे कहने लगती हैं- विधवा पेंशन मिल जाती है. और एक एनजीओ से थोड़ी मदद. इसी में राशन-पानी, दवा-दारू सब करना है. थोड़ी तकलीफ तो होती है. 

मैं गौर से देखती हूं. अंकित को मॉडलनुमा चेहरा इन्हीं से मिला होगा. 50 पार के चेहरे पर मौसम से ज्यादा अकेलेपन की ठंड जमी हुई. तिसपर एक दुख ये कि बेटे के लिए रोने की बजाए बीमारियों को रोना पड़ रहा है.

बात बदलते हुए पूछती हूं- बेटे का जन्मदिन कब आता है?

मार्च में. आने को है. मीठा बनाकर भोग लगाती हूं. मंदिर चली जाती हूं. अब और क्या ही करूं. 

उनका कोई सामान है आपके पास?

नहीं. कपड़े, हैट, गिटार सब भाई-बहन ले गए. कहते थे- अंकित की निशानी चाहिए. एक सूटकेस में कुछ सामान है तो, लेकिन ऊपर रखा है. अभी निकाल नहीं सकूंगी. 

कहते-कहते एकदम से उठकर जातीं, और कुछ लेकर लौटती हैं. आईफोन का पुराना मॉडल. 

‘अंकित का फोन था. लॉक है. खुल नहीं सका. इसमें बहुत कुछ होगा. संभालकर रख लिया है, क्या पता, कभी खुल जाए.’ कहते हुए वे फोन को पन्नी से निकालकर सहला रही हैं. काफी देर बाद जतन से उसे पन्नी और फिर डिब्बे में रख देती हैं. आंखें अब भी डिब्बे को दुलराती हुई. 

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ये दुख के बाद का दौर है. जब दुख की याद रह जाती है.  

पूछने पर कमलेश सबकुछ बताती हैं. बेटे की लहुलुहान देह से लेकर मरते हुए पति के छूट रही पत्नी के लिए रोने तक. लेकिन कुछ है जो अलग है. उनकी आवाज तो सूखी है. लेकिन जख्म अब भी हरा है. 

न चाहते हुए भी एक समझाइश-नुमा सवाल कर जाती हूं- अकेली रहती हैं. घर किराए पर क्यों नहीं दे देतीं? साथ भी मिल जाएगा

'नहीं. अंकित और उसके पापा, दोनों को ये पसंद नहीं आता.' वे ऐसे कह जाती हैं, जैसे जिंदा लोगों का जिक्र कर रही हों. 

जाते हुए अंकित के चचेरे भाई अमित से मुलाकात हुई. वे काफी दूर से आए थे ताकि 'इंटरव्यू' देते हुए चाची अकेली न पड़ें. 

कहते हैं- सिंगल चाइल्ड था लड़का. बहुत प्रॉमिसिंग. एकाध साल में ही फोटोग्राफी और मॉडलिंग में बढ़िया चल निकला था. यूट्यूब चैनल भी चलाता था. सोचा नहीं था, इतना बड़ा हादसा हो जाएगा. 

उसके जाने के बाद आप लोगों को कितना सपोर्ट मिला?

सपोर्ट कहां, अकेले छूट गए थे हम. हर तरफ से प्रेशर था कि आप लोग आराम से बैठिए, वरना बात और बिगड़ जाएगी. पोस्टमार्टम के बाद उसकी बॉडी भी घर लाने नहीं दे रहे थे. पुलिस का कहना था कि घर ले जाएंगे तो फसाद हो सकता है. बहुत मुश्किल से पांचेक मिनट के लिए ला सके. जैसे-तैसे अंतिम रस्में कीं. चाचा-चाची तो सुध में ही नहीं थे. 

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अब क्या लगता है,15 जनवरी को इंसाफ मिल जाएगा!

अपराधियों के लिए फांसी का इंतजार करते हुए चाचा चले गए. चाची बीमार हैं. एक झटके में पूरा घर खत्म हो गया. अब जो भी मिले, इंसाफ क्या ही होगा! 

घर से निकलते हुए देखती हूं- कमलेश पड़ोसिन के घर से आए हीटर में हाथ ताप रही हैं. चेहरा, ठंड से नंगे पड़े ठूंठ की तरह. ये वो ठूंठ है, जो कभी नहीं हरियाएगा. 

निकलते हुए वहां पहुंचते हैं, जहां अंकित की हत्या हुई थी. चलती हुई सड़क के एक कोने में तुलसी चौरा बना हुआ. साथ में अंकित की कई तस्वीरों का बड़ा-सा कोलाज. नीचे ब्लैक मार्बल पर उसका नाम और जन्मतारीख भी लिखी हुई. 

ये तुलसी अंकित की मां ने उसकी मौत के बाद लगाई थी ताकि रास्ते का भी जख्म हरा रहे. अब तुलसी समेत अंकित के पोस्टर पर भी धूल की गहरी परत है. बीते सालों ने रास्ते का जख्म कब का सुखा दिया. पास में जूस की दुकान भी चल रही है, जहां आने -जाने वालों को 24 साल के किसी लड़के की मौत का कोई अंदाजा नहीं.

अंकित हत्याकांड में अबतक क्या हुआ

फरवरी 2018 में हुए अंकित सक्सेना हत्याकांड मामले में कोर्ट ने अंकित की कथित प्रेमिका के माता-पिता और मामा को हत्या का दोषी करार दिया. पेशे से फोटोग्राफर अंकित की हत्या की वजह उसका दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम संबंध था. वारदात वाले दिन कथित प्रेमिका घर से गायब थी.

इसे लेकर शक से भरे उसके पिता अकबर अली, मां शहनाज बेगम और मामा मोहम्मद सलीम ने रघुबीर नगर में बीच सड़क अंकित की गला काटकर हत्या कर दी. 121 पन्नों के जजमेंट में कोर्ट ने यह भी माना कि शहनाज ने अंकित की मां कमलेश पर हमला किया था, जब वे अपने बेटे को बचाने की कोशिश कर रही थीं. लड़की का नाबालिग (तब) भाई भी मामले में दोषी पाया गया. उसके खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में मामला चल रहा है, जबकि 15 जनवरी को तीस हजारी कोर्ट बाकियों को सजा सुना सकती है.

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