
दिल्ली स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) एक बार फ़िर पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है. विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स ने कैंपस में प्रोटेस्ट किया, जिसके बाद यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने कुछ छात्रों को नोटिस भेजा. इसके बाद भी प्रोटेस्ट नहीं बंद हुआ, तो एक्शन लेते हुए 17 स्टूडेंट्स को सस्पेंड कर दिया गया. कई छात्र-छात्राओं को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में भी लिया, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया.
इसके साथ ही यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन पर स्टूडेंट्स का आरोप है, "प्रोटेस्ट करने वाले कुछ छात्रों की फोटो, डिपार्टमेंट, मोबाइल नंबर जैसी पर्सनल जानकारी के साथ गेट पर लिस्ट लगा दी गई." यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जिन स्टूडेंट्स के नाम की लिस्ट गेट पर लगाया और सस्पेंड किया, उसमें सोनाक्षी गुप्ता, सखी, ज्योति, सौरभ, हज़रत परवाना और फ़ुज़ैल सहित कुल 17 स्टूडेंट्स के नाम शामिल हैं.
समाजशात्र विभाग की फाइनल ईयर की स्टूडेंट सखी, aajtak.in से बात करते हुए कहती हैं, "हम 10 फ़रवरी से जामिया सेंट्रल कैंटीन पर प्रोटेस्ट कर रहे थे. तीसरे दिन की रात में नोटिस आता है कि हम लोगों को सस्पेंड कर दिया गया है. इसके बाद हमें हिरासत में लिया गया. हमारे पैरेंट्स को कॉल किया गया, जिससे वे भी डर गए."
सखी आगे कहती हैं कि हमारा मन नहीं होता है कि हम प्रोटेस्ट करें लेकिन हम अपनी बात सुने जाने के लिए प्रोटेस्ट करने के लिए मजबूर होते हैं और प्रोटेस्ट करना हमारा संवैधानिक अधिकार है लेकिन प्रोटेस्ट को रोककर हमारी आवाज़ को दबाया जा रहा है."
दिल्ली पुलिस ने जिन छात्रों को हिरासत में लिया था, उन पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कैंपस के अंदर तोड़-फोड़ और हंगामा करने के आरोप लगाए थे. इनमें से दो छात्रों को पिछले साल एक विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के आरोप में शो-कॉज नोटिस जारी किए गए थे.
प्रशासन के मुताबिक, प्रदर्शनकारी छात्रों ने सेंट्रल कैंटीन सहित विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और सुरक्षा सलाहकार के दफ़्तर का गेट तोड़ दिया, जिससे प्रशासन को कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
JMI एडमिनिस्ट्रेशन ने 13 फ़रवरी को ऑफिशियल स्टेटमेंट में कहा, "मुट्ठी भर छात्रों ने पिछले दो दिनों में सेंट्रल कैंटीन सहित विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है और सुरक्षा सलाहकार के गेट को भी तोड़ दिया है, जिससे जामिया प्रशासन को कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. आज सुबह (13 फरवरी) विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रॉक्टोरियल टीम ने छात्रों को विरोध स्थल से हटा दिया और उन्हें कैंपस से बाहर निकाल दिया गया है. पुलिस से कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने की गुजारिश की गई है."
यूनिवर्सिटी की छात्रा सोनाक्षी गुप्ता कहती हैं, "हम पर आरोप लगाए गए कि हमने हिंसा की है लेकिन हिंसा वाली जगह पर हम थे ही नहीं. अगर प्रशासन का कहना है कि हमने हिंसा की है, तो हमें CCTV प्रूफ़ दिखाया जाए."
जामिया के छात्र प्रियाशूं कहते हैं, "प्रशासन छात्रों के मुद्दों को उलझा रहा है. जामिया में सैकड़ों CCTV कैमरे लगे हैं, उसमें सब देखा जा सकता है. हमें यूनिवर्सिटी के अंदर बोलने और अपनी बात रखने की आज़ादी मिलनी चाहिए. हम चाहते हैं कि जामिया के वीसी हमारी बात सुनें और हमसे संवाद करें, जिससे एक रास्ता निकल सके."
सोनाक्षी गुप्ता कहती हैं कि प्रोटेस्ट से पहले हमने प्रॉक्टर से बात करने की कोशिश की थी लेकिन हमारी बातें नहीं सुनी गईं. हमारे घर वालों को पुलिस स्टेशन से कॉल करके हमारी शिकायत की गई, जिससे हम प्रोटेस्ट बंद कर दें. इसके बाद भी हम नहीं हटे, तो हमें कैंपस बैन कर दिया गया.
वो आगे कहती हैं, "पुलिस स्टेशन में ले जाने के बाद छात्रों से साथ बदतमीज़ी की गई और पेपर पर साइन करवाया गया लेकिन ये नहीं बताया गया कि यह किसलिए किया जा रहा है."
समाजशास्त्र विभाग की छात्रा उत्तरा कहती हैं, "प्रोटेस्ट के दौरान हम आराम कर रहे थे, मैं सो गई थी. मेरी आंख खुली तो मुझे गार्ड्स के द्वारा बदतमीज़ी से खींचा जा रहा था. खींचने के बाद चारों तरफ़ से मुझे पकड़कर पुलिस बस में डाल दिया जाता है."
यूनिवर्सिटी के छात्र जीशान ने बताया, "14 फ़रवरी को हमें पता चला कि सस्पेंड किए गए स्टूडेंट्स (इनमें छात्राएं भी शामिल थीं) के मोबाइल नंबर सहित पर्सनल इन्फॉर्मेशन्स के साथ यूनिवर्सिटी के गेट्स पर लिस्ट लगा दी गईं." छात्रों ने इसे प्राइवेसी ब्रीच और फंडामेंटल राइट्स का हनन बताया है. स्टूडेंट्स का कहना है कि जिन लोगों की पर्सनल जानकारी पब्लिक की गई, अगर किसी छात्रा के साथ कुछ गलत होता है, तो क्या इसकी विश्वविद्यालय प्रशासन इसकी ज़िम्मेदारी लेगा?
प्रियांशू बताते हैं कि जिन छात्राओं की तस्वीरें और मोबाइल नंबर गेट पर लगाए गए, उनके फोन पर कॉल्स जा रही हैं और तरह-तरह की धमकियां मिल रही हैं.
हालांकि, यूनिवर्सिटी ने नया बयान जारी करते हुए कहा है कि विश्वविद्यालय की दीवारों और गेट पर निलंबित छात्रों की तस्वीरें और विवरण यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ़ से नहीं सार्वजनिक किया गया था. विश्वविद्यालय ने ऐसी जानकारी मिलने के बाद तुरंत ही इन तस्वीरों को दीवारों से हटा दिया. विश्वविद्यालय ऐसे गैर-जिम्मेदाराना कृत्यों की कड़ी निंदा करता है और 104 साल पुराने संस्थान की गौरवमय छवि को धूमिल करने के स्पष्ट इरादे से झूठी और अपमानजनक जानकारी फैलाने वाले लोगों के खिलाफ सभी जरूरी वैधानिक और कानून सम्मत कार्रवाई करेगा.
पिछले दिनों कैंपस के अंदर स्टूडेंट्स के द्वारा किए गए प्रोटेस्ट की कड़ी साल 2019 में हुई घटना से जुड़ी है. दरअसल, CAA-NRC प्रोटेस्ट के दौरान 15 दिसंबर 2019 को JMI की लाइब्रेरी में दिल्ली पुलिस के द्वारा बर्बरता का मामला सामने आया था. स्टूडेंट्स ने दावा किया था कि स्टडी के दौरान अचानक पुलिस आई और उन पर लाठीचार्ज करने लगी.इसी घटना की बरसी पर पिछले दिनों छात्रों ने कैंपस में प्रोटेस्ट किया, जो घटना के बाद से हर साल किया जाता है.
यूनिवर्सिटी के छात्र ज़ीशान अहमद कहते हैं, "इस बार 15 दिसंबर को रविवार और कैंपस मेंटेनेंस का हवाला देते हुए एडमिन की तरफ़ से नोटिस आया कि लाइब्रेरी बंद रहेगी. इस वजह से ये प्रोटेस्ट 16 दिसंबर को किया गया, जिसके बाद 4 स्टूडेंट्स को कारण बताओ नोटिस दिया गया और 2 पीएचडी स्टूडेंट्स सौरभ और ज्योति पर अनुशासनात्मक समिति (Disciplinary Committee) की जांच बैठा दी जाती है.
प्रशासन ने 9 फरवरी को एक और नोटिस निकाला, जिसमें कहा गया कि कैंपस में बिना परमिशन प्रोटेस्ट नहीं किया जा सकता है."
छात्रों ने बताया कि 9 फ़रवरी वाले नोटिस के विरोध में स्टूडेंट्स फिर से प्रोटेस्ट पर बैठ जाते हैं और मांग करते हैं कि ये नोटिस और कमेटी की जांच वापस ली जाए क्योंकि कैंपस में शांतिपूर्वक प्रोटेस्ट करना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है. छात्रों का कहना है कि अगर हम कैंपस में अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो कहां जाएंगे.
छात्र ज़ीशान अहमद अहमद बताते हैं, "प्रोटेस्ट के दौरान वॉशरूम लॉक कर दिए गए, बिजली बंद कर दी गई. प्रोटेस्ट के दौरान छात्राएं भी थीं लेकिन वहां पर कोई फीमेल गार्ड नहीं मौजूद थीं. एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ़ से एक और नोटिस आई, जिसमें कहा गया कि ग़ैर-कानूनी तरीक़े से प्रोटेस्ट चल रहा है. 13 फ़रवरी को सुबह करीब साढ़े पांच बजे प्रोटेस्ट कर रहे स्टूडेंट्स को पुलिस के हवाले कर दिया जाता है."
छात्रों ने बताया कि 13 फ़रवरी की शाम प्रशासन एक और नोटिस भेजा.
दिल्ली पुलिस के सीनियर अधिकारी ने बताया कि जामिया प्रशासन ने स्टेटमेंट जारी किया था कि कैंपस में कुछ स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने स्टूडेंट्स को दिल्ली पुलिस को हैंडओवर कर दिया था, पुलिस कैंपस के अंदर नहीं गई थी. छात्रों को हिरासत में लिया गया था और बाद में छोड़ दिया गया. पुलिस पर बदतमीज़ी के आरोप ग़लत हैं, पुलिस की तरफ़ से किसी तरह की कोई अभद्रता नहीं की गई.