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बदनाम होता जा रहा JNU, हिंसा से विश्वविद्यालय की गरिमा को पहुंची ठेस

नकाबपोश लोगों का जेएनयू के हॉस्टल में जाकर छात्रों पर हमला करने की चर्चा पूरी दुनिया में है और न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट और वॉल स्ट्रीट जर्नल जैसे दुनिया के प्रतिष्ठित अखबारों ने इसकी खबर भी छापी. इस हिंसा से जेएनयू की गरिमा को ठेस पहुंच रही है.

JNU में हुई हिंसा के बाद का नजारा (फाइल-IANS) JNU में हुई हिंसा के बाद का नजारा (फाइल-IANS)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST

  • मुझ पर नकाबपोश गुंडों ने हमला कियाः आइशा घोष
  • नकाबपोश लोगों के हमले की चर्चा दुनियाभर में
  • 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में लगे थे देश विरोधी नारे

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) हिंसा के कारण एक बार फिर से चर्चा में है और चर्चा की वजह है नकाबपोश लोगों का कैंपस के अंदर जमकर हिंसा और उत्पात मचाना. नकाबपोश लोगों की वजह से न सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है. हिंसा से जुड़ी खबरों के कारण जेएनयू लगातार बदनाम होता जा रहा है.

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नकाबपोश लोगों का हॉस्टल में जाकर छात्रों पर हमला करने की चर्चा पूरी दुनिया में है और न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट और वॉल स्ट्रीट जर्नल जैसे दुनिया की प्रतिष्ठित अखबारों ने इसकी खबर भी छापी.

मुझे बुरी तरह से पीटा गयाः घोष

नकाबपोश लोगों ने हॉस्टल में घुसकर अचानक छात्रों पर हमला कर दिया. इस हमले में कई छात्र घायल भी हुए. हमले में घायल जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष आइशा घोष कहती हैं कि मेरे ऊपर नकाबपोश गुंडों ने बर्बर हमला किया. मैं अभी बात कर पाने की स्थिति में नहीं हूं. मुझे बुरी तरह से पीटा गया.

2 दिन पहले साबरमती हॉस्टल में जमकर हिंसा हुई. साबरमती हॉस्टल का नाम आते ही महात्मा गांधी का नाम जेहन में आ जाता है लेकिन यहां पर गांधी का सत्य, गांधी का संघर्ष, गांधी के मूल्य महज 10 से 15 मिनट में रौंद डाले गए. 40-50 नकाबपोश गुंडे आए, लाठी डंडे लेकर आए और वो किया जो कभी भी शिक्षा के इस पवित्र मंदिर में नहीं हुआ था.

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कौन हैं नकाबपोश लोग?

लेकिन कैंपस में लाठी डंडों से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने वाले नकाबपोश कौन हैं, वो कहां से आ गए, कैसे आ गए, किनके संरक्षण और शह पर आ गए, इसका पता पुलिस लगा नहीं पाई. हालांकि एफआईआर दर्ज जरूर हो गई है.

हिंदुस्तान की तीन टॉप के यूनिवर्सिटी में जेएनयू की गिनती हमेशा से होती रही है. लेकिन आज यह छात्रों के जख्म और हिंसा की वजह से चर्चा में है.

अब सवाल यही है कि लाठी और रॉड लेकर हिंसा करने वाले कौन हैं. दिल्ली पुलिस ने क्राइम ब्रांच को जांच सौंप दी है और इसकी जांच भी शुरू हो गई है. हालांकि रविवार की शाम जब कैंपस में खूनी हिंसा के समय पुलिस वहां मौजूद नहीं थी.

हॉस्टल फीस बढ़ाने से बढ़ा विवाद

छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने कैंपस में पहुंचने में देरी लगा दी. छात्रों ने रजिस्ट्रार से गुहार लगाई. 100 नंबर पर 90 से ज्यादा कॉल किया लेकिन पुलिस देर से पहुंची.

नेता जहां एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं लेकिन जेएनयू में छात्रों के संगठन भी एक-दूसरे पर हमला बोल रहे हैं.

2016 में लगे देश विरोधी नारे

जेएनयू में सारा विवाद तब बढ़ा जब यहां हॉस्टल की फीस बढ़ा दी गई. 10 और 20 रुपये की जगह 300 और 600 रुपये हॉस्टल चार्ज हो गया. 1700 रुपये सर्विज चार्ज अलग से. इसके विरोध में छात्र सड़कों पर उतर आए.

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इससे पहले 9 फरवरी 2016 को जेएनयू कैंपस विवादों में तब आया जब वहां लोग देश के गद्दारों को सजा मिले और देश विरोधी नारे लगाने लगे. कैंपस में भारी संख्या में पुलिसबल तैनात कर दिया गया था. बाद में छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया. कन्हैया पर आरोप लगाया गया कि हिंदुस्तान की बर्बादी के नारे वाली उस रात कैंपस की उस सभा में कन्हैया भी था बल्कि वही उसकी अगुवाई कर रहा था.

कहां चला गया नजीब अहमद?

कन्हैया कुमार को पहले पुलिस हिरासत में भेजा गया, फिर तिहाड़ जेल. आरोप देशद्रोह का लगा लेकिन निकला कुछ नहीं. हालांकि छात्रसंघ ने इस मामलों को असंवैधानिक कहते हुए दूरी बना ली. लेकिन कन्हैया की गिरफ्तारी के बाद जेएनयू का मामला गरमाता गया.

उसके बाद राष्ट्रवाद का जुनून खुद कुलपति के सिर पर इस कदर चढ़ा था कि छात्रों में इस जज्बे को पैदा करने के लिए उन्होंने तोप रखने की बात की.

इस बीच 15 मार्च 2016 को जेएनयू का एक छात्र नजीब अहमद अचानक गायब हो गया. उसकी मां गुहार लगाती रही. विश्वविद्यालय के बच्चे आवाज उठाते रहे, लेकिन पता नहीं नजीब को किस आसमान ने निगल लिया. पुलिस प्रशासन सबने हाथ खड़े कर दिए. सवा तीन साल से एक मां उसका बाट जोह रही है. 51 साल के इतिहास में जेएनयू हिंसा की वजह लगातार चर्चा में है और इस वजह से इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की गरिमा को ठेस पहुंची है.

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