
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा है कि जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने वालों के खिलाफ कड़े राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जा रहा था, वहीं हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. जस्टिस नरीमन ने डीएम हरीश स्कूल ऑफ लॉ मुंबई के उद्घाटन के दौरान ये बातें कही.
जस्टिस नरीमन ने संविधान के अनुच्छेद-19 में दी गई 7 स्वतंत्रताओं का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि देश में युवा, छात्र, स्टैंड अप कॉमेडियन और इनके जैसे अन्य जो सरकार की आलोचना करते हैं, उनके खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया जाता है लेकिन जो समाज की भावनाओं को भड़काने वाले हेट स्पीच देते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है.
हेट स्पीच और फ्री स्पीच में अंतर बताते हुए उन्होंने सरकार पर टिप्पणी की और कहा कि देश में हेट स्पीच देने वाले कई व्यक्ति हैं जो वास्तव में लोगों के नरसंहार का आह्वान करते हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस तत्पर नहीं दिखती. उन्होंने कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने हाल ही कहा था कि हेट स्पीच न केवल असंवैधानिक हैं बल्कि एक अपराध है. इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के 153 ए और 505 सी में अपराध घोषित किया गया है.
जस्टिस नरीमन ने दिया सुझाव
जस्टिस नरीमन ने सुझाव दिया कि संसद को हेट स्पीच के लिए न्यूनतम सजा का प्रावधान करना चाहिए. हालांकि एक व्यक्ति को तीन साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है, यह वास्तव में कभी नहीं होता है क्योंकि कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है. यदि हम वास्तव में अपने संविधान में निहित कानून के शासन को मजबूत करना चाहते हैं, तो मैं दृढ़ता से सुझाव दूंगा कि संसद इन प्रावधानों में न्यूनतम सजा प्रदान करने के लिए संशोधन करें.
बता दें कि 7 साल के कार्यकाल के बाद जस्टिस नरीमन 2021 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे. उनके प्रमुख फैसलों में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ का 2015 का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें अदालत ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह प्रावधान मनमाना और असंवैधानिक था. सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के लिए व्यक्तियों पर मामला दर्ज करने के लिए इस प्रावधान का उपयोग किया जाता था.
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