Advertisement

सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर 'प्रार्थना' की गुहार

वहीं जब कोर्ट की चौखट पर यह प्रार्थना आ गई तो कोर्ट ने भी बड़ी संजीदगी से कहा कि मामला गंभीर है. अब प्रार्थना संस्कृत में है तो सुनवाई भी करनी होगी. इस पर तुरंत जवाब तलबी भी हुई और नोटिस भी जारी कर दी गई.

फाइल फोटो फाइल फोटो
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 12:12 AM IST

वेदों में कहा गया है कि विद्यालयों में मिलने वाला ज्ञान ही ज्योति है क्योंकि अज्ञान अंधकार है, असत्य अंधकार है. असतो मा सदगमय मतलब अगर सत्य की ज्योति ज्ञान के प्रकाश से जगमगाए तो अमृत यानी अक्षय ब्रह्म की ओर आगे बढ़ा जा सकता है. तभी वेद के ऋषियों ने गाया.

तमसो मा ज्योतिर्गमय !

असतो मा सदगमय !

मृत्योर्मामृतं गमय !  

Advertisement

अब वेद की ये ऋचाएं सवालों के कटघेरे में है. 50 सालों से देश के केंद्रीय विद्यालयों में यह प्रार्थना हर सुबह होती आई है. शिक्षक और छात्र मिलकर एक सुर से सुर मिलाकर प्रार्थना गाते  रहें हैं. लेकिन बुधवार को ये प्रार्थना सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर ला खड़ी कर दी गई. प्रार्थना का कसूर इतना है कि नैतिकता की शिक्षा देने के बावजूद उसकी भाषा संस्कृत है. और संस्कृत में लिखी चीजें हिंदू धर्म को बढ़ावा देती हैं ऐसा कैसे हो सकता है ? स्कूल तो सरकार चलाती है और अगर सरकार सेक्यूलर है तो प्रार्थना संस्कृत में क्यों ?

वहीं जब कोर्ट की चौखट पर यह प्रार्थना आ गई तो कोर्ट ने भी बड़ी संजीदगी से कहा कि मामला गंभीर है. अब प्रार्थना संस्कृत में है तो सुनवाई भी करनी होगी. इस पर तुरंत जवाब तलबी भी हुई और नोटिस भी जारी कर दी गई.

Advertisement

अब इस पर याचिकार्ता का कहना है कि वो तो तर्कवादी और नास्तिक है. कोई ईश्वर नहीं तो प्रार्थना किसकी और क्यों ? जब मैं ऐसा हुं तो हमारे बच्चे क्यों प्रार्थना करें. लेकिन शायद वो ये भूल गए कि आप भले ही नास्तिक या तर्कवादी हो लेकिन आप अपने बच्चों पर अपनी मान्यता और आस्था थोप नहीं सकते. देश का संविधान आपको ऐसा करने का अख्तियार नहीं देता.   

वही जब प्रार्थना से इतना परहेज है तो फिर नाम विनायक क्यों ? यह तो और भी धार्मिक है. खैर मामला तो नोटिस भेज कर एक बार ठिठक गया है क्योंकि अब सरकार और केंद्रीय विद्यालय इसका जवाब देंगे. फिलहाल विद्यालयों में यह प्रार्थना एक और ऋचा के साथ अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है.

ऊं सहना ववतु सहनौ !

भुनक्तु सहवीर्यं करवाव है !

तेजस्विना वधीतमस्तु माविद्विषाव है !

ऊं शांति शांति शांति ! लेकिन इससे बढ़ गई अशांति. दरअसल वेद की इस ऋचा का मतलब है हम सब साथ रहें, साथ खायें और हमारी शक्ति बढ़े. हम ज्ञान के तेज से जगें और इससे हमारे बीच विद्वेष ना हो. लेकिन अब हैरानी है कि बात यह है कि इसी पर द्वेष बढ़ गया है. क्योंकि बात भाव पर नहीं भाषा पर अटक गई है.

Advertisement

वैसे प्रार्थना तो दरअसल आत्मा और परमात्मा के बीच का संवाद है. और इसमें विवाद हो ही नहीं सकता क्योंकि किसी तीसरे की गुंजाइश है ही नहीं. और विवाद जिन शब्दों को लेकर हो रहा है वो तो एक मशहूर फिल्मी प्रार्थना भी है, ' ऐ मालिक तेरे बंदे हम,  ऐसे हों हमारे करम,  नेकी पर चलें और बदी से डरें ताकि हंसते हुए निकले दम.'

वहीं मशहूर शायर इकबाल ने भी लिखा है ' लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी,  ज़िंदगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी, मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको, नेक जो राह हो उसी रह पर चलाना मुझको.'

बरसों से स्कूलों और मदरसों में गाई जाती हैं लेकिन आजतक किसी को उस पर आपत्ति नहीं हुई, और आपत्ति होनी भी नहीं चाहिए. प्रार्थना परमात्मा के साथ संवाद का मामला है विवाद का नहीं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement