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उम्र 29 साल, हिंदू लड़की से की शादी, जानिए कौन हैं जामा मस्जिद के नए इमाम सैयद शाबान बुखारी

एमेटी यूनिवर्सिटी के छात्र रहे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी होने के साथ ही वे जामा मस्जिद के 14 वें इमाम बन गए हैं. जामा मस्जिद से जुड़े लोगों के मुताबिक शाबान को 2014 में नायब इमाम की जिम्मेदारी मिली थी. जिसके बाद से ही वो देश में ही नही बल्कि और विदेशों में धर्म से जुड़ी ट्रेनिंग ले रहे थे.

जामा मस्जिद के नए नायब इमाम सैयद शाबान बुखारी जामा मस्जिद के नए नायब इमाम सैयद शाबान बुखारी
सुशांत मेहरा
  • नई दिल्ली,
  • 26 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:11 PM IST

शब-ए-बारात के दिन दिल्ली की जामा मस्जिद को नया शाही इमाम मिल गया है. शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने एक 'दस्तारबंदी' (पगड़ी पहनाने की रस्म) समारोह में अपने बेटे सैयद शाबान बुखारी को अपना जामा मस्जिद का नया इमाम घोषित कर दिया. इस दौरान जामा मस्जिद में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कई शख्सियत मौजूद रही. इससे पहले वे नायब इमाम थे. इस समय उनकी उम्र 29 साल है. उनके परिवार ने अपनी पिछली 13 पीढ़ियों से जामा मस्जिद की अध्यक्षता की है. जामा मस्जिद का निर्माण 1650 में किया गया था.

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कहा तक पढ़े है शाबान बुखारी

सैयद शाबान बुखारी का जन्म 11 मार्च 1995 को दिल्ली में हुआ था. एमिटी यूनिवर्सिटी से सोशल वर्क में मास्टर डिग्री की है. इसके अलावा इस्लामी धर्मशास्त्र में आलमियत और फजीलत की है. सैयद शाबान बुखारी ने इस्लाम की बुनियाद तालीम के साथ व्यापक अध्यन मदरसा जामिया अरबिया शम्सुल उलूम दिल्ली से की है.

कब और किससे हुई शादी

13 नवंबर 2015 को शाबान बुखारी ने गाजियाबाद की एक हिंदू लड़की से शादी की. शुरुआत में उनका परिवार भी शादी को लेकर के राजी नहीं था लेकिन बाद में पूरा परिवार शादी के लिए राजी हो गया है और धूमधाम से उनकी शादी हुई. शादी के बाद 15 नवंबर को महिपालपुर के एक फार्महाउस में ग्रैंड रिसेप्शन दिया गया.शाबान के फिलहाल 2 बच्चे है उनकी पत्नी शबानी है.

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सैयद शाबान बुखारी जामा मस्जिद के14वे शाही इमाम बने है. जामा मस्जिद से जुड़े लोगों के मुताबिक शाबान को 2014 में नायब इमाम की जिम्मेदारी मिली थी. जिसके बाद से ही वो देश में ही नही बल्कि और विदेशों में धर्म से जुड़ी ट्रेनिंग ले रहे थे. शाही इमाम के पद पर होने के लिए इस्लाम से जुड़ी तमाम तरह की जानकारी होना जरूरी होता है.

शाही इमाम को कितनी मिलती है सैलरी

वैसे तो शाही इमाम की सैलरी ज्यादा नहीं होती. मस्जिदों के इमाम को सैलानी सरकार की तरफ से नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड की तरफ से दी जाती है..वक्फ बोर्ड अपनी संपत्तियों से मिलने वाली आए अपने कर्मचारियों और मस्जिद के इमाम को देते हैं. वर्तमान में शाही इमाम की सैलरी 16 से 18 हजरारुपए होती है जिसको वक्फ बोर्ड की तरफ से दिया जाता है..

मुगल बादशाह शाहजहां ने 1650 में जमा मस्जिद का निर्माण कराया था. तब उन्होंने बुखारा के शासकों को इमाम की जरूरत बताई थी. इसके बाद अब्दुल गुफार बुखारी को भारत भेजा गया. उनको शाही इमाम का खिताब दिया गया.शाही का मतलब होता है राजा और इमाम वह होते हैं जो मस्जिद में नमाज अदा करते हैं. ऐसे में शाही इमाम का अर्थ होता है राजा की ओर से नियुक्त किया गया इमाम.

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