
मथुरा कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद पर हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में दूसरी कैविएट दाखिल की है. इससे पहले राष्ट्रीय हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा मामले में सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की थी.
विष्णु शंकर जैन और विष्णु गुप्ता द्वारा दायर कैविएट में कहा गया है कि अगर शाही ईदगाह कमेटी या कोई और याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के 18 याचिकाओं के सुनवाई योग्य होने और उन पर एक साथ सुनवाई के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में आता है तो अदालत बिना उनका पक्ष सुने कोई आदेश न जारी करे. इन याचिकाओं पर उनका भी पक्ष सुना जाए.
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस संबंध में 18 याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना है, साथ ही उनकी एक साथ सुनवाई की अपील भी मान ली है.
ये हैं मुस्लिम पक्षकारों की दलील
अदालत के समक्ष हिंदू पक्षकारों की दलीलें हैं
आपको बता दें कि साल 2020 में वकील रंजना अग्निहोत्री और सात अन्य पक्षकारों ने मिलकर मथुरा सिविल कोर्ट में यह मुकदमा दायर किया था. शुरुआत में इस याचिका को एक सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में जिला अदालत ने इसे ‘सुनवाई योग्य’ माना और ढाई साल के समय के बाद उसी अदालत में 17 अतिरिक्त याचिकाएं दायर की गईं. चूंकि मथुरा जिला अदालत में ही इन याचिकाओं पर अलग-अलग निचली अदालतें विभिन्न चरणों में सुनवाई कर रही थीं.
वहीं, मामले की संवेदनशीलता और महत्व को देखते हुए हिंदू पक्षकारों की अर्जी पर मई, 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समेकित फैसले के लिए सभी 18 याचिकाएं अपने पास तलब कर ली थीं. मुस्लिम पक्षकारों ने इस पर एतराज जताते हुए इन्हें खारिज करने की गुहार लगाई थी, क्योंकि उनके ख्याल में ये सभी 18 अर्जियां लचर आधार और दलीलों पर दाखिल ली गई हैं. लिहाजा ये याचिकाएं सुनवाई योग्य ही नहीं हैं.
क्या है विवाद
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद के 13.37 एकड़ जमीन को लेकर विवाद है. करीब 11 एकड़ पर मंदिर है और 2.37 एकड़ जमीन पर मस्जिद है. इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने 1669-70 में कराया था.
हिंदू पक्ष का दावा है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था. जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि इसके कोई सबूत मौजूद नहीं हैं कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण एक मंदिर को तोड़कर कराया गया था.
शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 14 दिसंबर के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी है कि ईदगाह मस्जिद की संरचना पर दावा करने वाले हिंदू भक्तों द्वारा दायर याचिकाएं पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत वर्जित हैं.