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'हमें दुनिया से सीखना चाहिए...', लोकसभा चुनाव के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय ने टिकटों में मांगी बड़ी हिस्सेदारी

आगामी लोकसभा चुनाव में हिस्सा लेने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों ने राजनीतिक पार्टियों से टिकटों में हिस्सेदारी मांगी है. समुदाय का कहना है कि हमारा मतदान अनुपात बहुत कम है और अब ट्रांस आबादी के लिए राजनीतिक ढांचे की जरूरत है.

ट्रांसजेंडर समुदाय ने लोकसभा चुनाव के लिए टिकटों में मांगी हिस्सेदारी (प्रतीकात्मक तस्वीर) ट्रांसजेंडर समुदाय ने लोकसभा चुनाव के लिए टिकटों में मांगी हिस्सेदारी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST

भारत में आगामी महीनों में लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2024) होने वाले हैं. इसमें हिस्सा लेने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य टिकटों में बड़ी हिस्सेदारी और 'ट्रांस शक्ति' की मान्यता की मांग कर रहे हैं. देश के अंदर हाशिए पर रहने वाले ट्रांसजेंडर्स ने कहा कि केवल वे ही समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं, जिनके सदस्यों को दिन में अलग रखा जाता है और रात में उनका शोषण किया जाता है.

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न्यूज एजेंसी के मुताबिक ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य ने राजनीतिक दलों से आम चुनावों में टिकट मिलने की उम्मीद करते हुए कहा कि 'नारी शक्ति' (महिला सशक्तिकरण) की कथा को आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि 'ट्रांस शक्ति' को भी उचित मान्यता और प्रतिनिधित्व मिल सके.

'आजादी के 75 साल बाद भी...'
बीजू महिला जनता दल की उपाध्यक्ष मीरा परिदा (पैदाइशी नाम- मायाधर परिदा) ने अफसोस जताया कि कैसे आजादी के 75 साल बाद भी, ट्रांस समुदाय के सदस्यों को दिन में दूर रखा जाता है और रात में उनका शोषण किया जाता है. अपने परिवार के सदस्यों से कई सालों का उपहास झेलने के बाद 12 साल की उम्र में घर छोड़ने वाली परिदा ने कहा कि अगर पार्टी मुझे जिम्मेदारी सौंपने का फैसला करती है, तो मैं विधानसभा या लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं.

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उन्होंने याद किया कि कैसे उनके शुरुआती वर्षों में अलग पहचान की गहरी भावना थी, एक ऐसी भावना जिसने उन्हें अपने साथियों से अलग कर दिया था. परिदा ने कहा कि उन्होंने चुप ने रहने का फैसाल किया है और यथास्थिति को चुनौती देने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. इसलिए, उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों में व्यस्त कर लिया और अब सियासत में अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश कर रही हैं. 

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पहली ट्रांसजेंडर पार्षद का छलका दर्द
आम आदमी पार्टी लीडर और दिल्ली नगर निगम की पहली ट्रांसजेंडर पार्षद बॉबी किन्नर ने देश की राजनीति में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रतिनिधित्व और समावेश की तत्काल जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले लोग सोचते थे कि ट्रांसजेंडर कुछ नहीं कर सकते लेकिन यह सच नहीं है. जो पुरुष और महिलाएं कर सकते हैं, हम भी कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि देश के राजनेता अपने संघर्षों को सम्मान के तमगे के रूप में पहनना पसंद करते हैं, लेकिन ट्रांसजेंडर्स द्वारा झेले गए पीड़ादायक अनुभवों की तुलना में वे कमतर हैं.

'हमारे दर्द को वो नहीं समझ सकते...'
2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाली चंद्रमुखी मुव्वला ने ट्रांसजेंडर्स के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि देश की राजनीति में समुदाय के समावेश को बढ़ाने की तत्काल जरूरत है. 
गोशामहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाली मुवल्ला ने कहा कि ट्रांस समुदाय को उन समस्याओं के बारे में ज्यादा बात करने की जरूरत है, जिनका हम सामना करते हैं. हम जानते हैं कि हमारी पीड़ाएं कैसी हैं. मैं सड़क पर एक भिखारी हूं, एक यौनकर्मी हूं, मुझे मेरे परिवार ने बाहर निकाल दिया है, मुझसे जबरन वसूली की जा रही है, मेरे साथ छेड़छाड़ की जाती है और मेरे साथ सहपाठियों द्वारा बलात्कार किया गया...हमारे साथ बहुत सी चीजें होती हैं. जो लोग संसद में हमारा प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं, वे उस दर्द को नहीं जानते जो हम जानते हैं.

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उन्होंने आगे कहा कि अगर हम जैसी महिलाओं के लिए आरक्षण होगा, ट्रांसवुमेन के लिए नामांकित पद होंगे, तो यह बेहतर होगा क्योंकि आर्थिक रूप से हम फिट नहीं हैं और हमारे पास कोई सपोर्ट नहीं है. मौजूदा स्थिति ऐसी है कि ज्यादातर बड़ी पार्टियां ट्रांसजेंडर उम्मीदवार चुनने के बारे में सोचती भी नहीं हैं और केवल छोटी पार्टियां ही उन पर विचार करती हैं.

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'हमें दुनिया से सीखना चाहिए...'
कर्नाटक में ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और कांग्रेस सदस्य अक्कई पद्मशाली ने सिस्टम के तहत बदलाव की जरूरत पर जोर दिया. पद्मशाली ने संसद और राज्य विधान परिषदों में प्रतिनिधित्व बढ़ाने की वकालत करते हुए सुझाव दिया कि हमें दुनिया से सीखना चाहिए कि यौन अल्पसंख्यकों का उत्थान कैसे किया जाए.

उन्होंने कहा कि हमारा मतदान अनुपात बहुत कम है और अब ट्रांस आबादी के लिए राजनीतिक ढांचे की जरूरत है. संसद में महिला आरक्षण बिल पर ट्रांसजेंडर का जिक्र तक नहीं किया गया है, इसलिए 33 फीसदी के अंदर अपनी आवाज उठाना बहुत मुश्किल है.

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बता दें कि 2024 में भारत के चुनाव आयोग के साथ 48,044 तृतीय-लिंग मतदाता रजिस्टर्ड हैं. साल 2019 में यह संख्या 39,683 थी.
2019 में 17वें आम चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या 91.2 करोड़ थी. इनमें से 47.34 करोड़ पुरुष, 43.85 करोड़ महिलाएं और 39,075 तीसरे लिंग के थे. कुल प्रतियोगी 8,054 थे, जिनमें से 7,322 पुरुष और 726 महिलाएं थीं जबकि छह लोग ट्रांसजेंडर समुदाय से थे. 

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