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खुराना, शीला दीक्षित और केजरीवाल... अब तक 7 चुनावों में कब कौन जीता? जानिए पूरी चुनावी हिस्ट्री

दिल्ली में 1993 में विधानसभा का गठन हुआ था और पहली बार चुनाव हुए थे. 1993 में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था और 49 सीटें जीती थीं. कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें मिली थीं. दिल्ली में कुल 70 सीटों पर चुनाव होते हैं. हालांकि, बीजेपी को पांच कार्यकाल के कार्यकाल में अपने तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे.

चौधरी ब्रह्मप्रकाश, गुरमुख निहाल सिंह, मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित, रेखा गुप्ता चौधरी ब्रह्मप्रकाश, गुरमुख निहाल सिंह, मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित, रेखा गुप्ता
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:04 PM IST

दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. ये आठवां चुनाव है. बीजेपी सिर्फ एक बार ही दिल्ली की गद्दी संभाल सकी. उसके बाद लगातार तीन बार कांग्रेस की सत्ता रही और अब पिछले तीन बार से आम आदमी पार्टी की सरकार है. बीजेपी की कोशिश है कि 31 साल बाद फिर जीत का स्वाद चखा जाए तो कांग्रेस का प्रयास है कि आम आदमी पार्टी से 11 साल पुराना बदला लिया जाए और ठीक वैसे ही सत्ता छीनी जाए. 11 साल अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में AAP ने कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बेदखल किया था.

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दिल्ली में 1993 में विधानसभा का गठन हुआ था और पहली बार चुनाव हुए थे. 1993 में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था और 49 सीटें जीती थीं. कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें मिली थीं. दिल्ली में कुल 70 सीटों पर चुनाव होते हैं. हालांकि, बीजेपी को पांच कार्यकाल के कार्यकाल में अपने तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे. उसके बाद से बीजेपी एक अदद जीत की तलाश में है. 

37 साल बाद चुनाव हुए तो बीजेपी के खुराना बने सीएम

बीजेपी से सबसे पहले मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने थे. वे करीब 27 महीने ही पद संभाल सके और इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद साहिब सिंह वर्मा सीएम बनाए गए. वे 31 महीने से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे. आखिरी में सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की सीएम बनीं और नतीजे आए तो कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता छीन ली.

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15 साल शीला दीक्षित रहीं मुख्यमंत्री

1998 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार बनाई. उसके बाद कांग्रेस ने लगातार दो और चुनाव 2003 और 2008 में भी जीत हासिल की. शीला लगातार तीन बार दिल्ली की सीएम बनीं. लेकिन 2013 में चुनाव हुए तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP ने हर किसी को चौंका दिया. AAP ने दिल्ली की सत्ता में 15 साल से काबिज कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका. पहली बार चुनाव में उतरी AAP को 28 सीटें मिलीं. जबकि कांग्रेस सिर्फ 8 सीटों पर सिमटकर रह गई. बीजेपी ने सबसे ज्यादा 32 सीटें जीतीं. जेडीयू और शिअद को 1-1 सीटें मिली. 

बीजेपी सत्ता के करीब पहुंची, लेकिन हाथ से चली गई थी कुर्सी

यह वो साल था, जब बीजेपी एक बार फिर सत्ता के बेहद करीब पहुंच गई थी, लेकिन कांग्रेस ने BJP को रोकने के लिए अपने नए-नवेले प्रतिद्वंदी यानी AAP से हाथ मिला लिया और बाहर से समर्थन देकर केजरीवाल के नेतृत्व में सरकार बनवा दी. बीजेपी बेबस नजर आई. हालांकि, ये सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चली और 49 दिन में ही कांग्रेस समर्थित AAP सरकार गिर गई.

कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर AAP ने चौंकाया

दिल्ली में AAP ने 2013 में 29.70 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था और कांग्रेस के बड़े वोट बैंक में सेंध लगाई थी. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि केजरीवाल का पहला कार्यकाल भले कम दिन का रहा, लेकिन उन्होंने बिजली, पानी और अस्पताल से जुड़े बड़े फैसले लिए और दिल्ली के भविष्य को लेकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे.

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दो चुनावों में कांग्रेस का नहीं खुला खाता

केजरीवाल ने सब्सिडी देकर 400 यूनिट तक बिजली के दाम आधे कर दिए थे. हर घर में 20 हजार लीटर पानी हर महीने मुफ्त देने का ऐलान कर दिया और सीवर चार्ज भी खत्म कर दिया था. ज्यादा फीस लेने के लिए 200 प्राइवेट स्कूलों को नोटिस भेजा तो लोगों का जुड़ाव गहरा गया. 2015 के चुनावी नतीजे आए तो AAP ने 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. बीजेपी ने तीन सीटें जीतीं और कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका. केजरीवाल ने एक बार फिर कांग्रेस के ही वोट बैंक को अपने पाले में किया और 54.5 फीसदी वोट शेयर हासिल किया. यह दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब तक की सबसे बड़ी जीत थी. फ्री बिजली और पानी के वादे आज भी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में चर्चा का विषय बने रहते हैं. 

आतिशी दो महीने से दिल्ली की सीएम

2020 के चुनाव में भी कांग्रेस का खाता नहीं खुला और AAP ने एकतरफा मुकाबले में बीजेपी को हरा दिया. AAP ने 62 सीटें जीतीं और 55 फीसदी वोट शेयर हासिल किया. बीजेपी ने 8 सीटें जीतीं और 38.70 फीसदी वोट शेयर रहा. कांग्रेस को 4.30 प्रतिशत वोट मिले. केजरीवाल ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस साल मार्च में दिल्ली शराब घोटाले में केजरीवाल को ईडी ने गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया. केजरीवाल करीब पांच महीने तक जेल में रहे. जब वो जमानत पर बाहर आए और उन्होंने 15 सितंबर को सीएम पद छोड़ने का ऐलान कर दिया. दिल्ली में 21 सितंबर से आतिशी मुख्यमंत्री हैं. दिल्ली में  फरवरी 2025 तक आगामी चुनाव हो सकते हैं.

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क्या है दिल्ली विधानसभा का इतिहास

विधानसभा का रिकॉर्ड बताता है कि दिल्ली में पहला चुनाव 27 मार्च 1952 को हुआ था. उसी साल फरवरी में देश में आम चुनाव हुए थे. कुल 48 सीटों पर चुनाव हुए थे. 17 मार्च 1952 को कांग्रेस के चौधरी ब्रह्मप्रकाश सीएम बने. उसके बाद 12 फरवरी 1955 में गुरमुख निहाल सिंह मुख्यमंत्री बने और वो एक नवंबर 1956 तक कुर्सी पर रहे. उसके बाद दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बन गया और यहां चंडीगढ़ की तरह विधानसभा चुनाव नहीं हुए. 

जब महानगर परिषद ने चलाया दिल्ली का प्रशासन

इस बीच, एक विशेष अधिनियम दिल्ली प्रशासन अधिनियम, 1966 को लागू किया गया, ताकि दिल्ली को महानगर परिषद के जरिए संचालित किया जा सके. 1956 से 1990 के बीच 61 सदस्यों वाली महानगर परिषद ने दिल्ली का प्रशासन संचालित किया, जिसके मुखिया उपराज्यपाल होते थे. परिषद सार्वजनिक महत्व के मामलों से संबंधित सिफारिशें करती थी और उपराज्यपाल अंतिम निर्णय लेते थे.

1956 समाप्त हो गया था दिल्ली का सदन

यानी दिल्ली में करीब 37 साल तक कभी विधानसभा चुनाव नहीं हुए. 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश में बदलकर सदन समाप्त कर दिया गया था. शहर के प्रशासन में जनता की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होने के कारण लोगों ने बार-बार विधानसभा की बहाली की मांग उठाई. जिसके बाद केंद्र सरकार ने दिसंबर 1987 में सरकारिया कमेटी (जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया) का गठन किया. दो साल बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बने रहना चाहिए, लेकिन आम आदमी से जुड़े मामलों से निपटने के लिए उसे एक विधानसभा दी जानी चाहिए. लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित मामलों को विधानसभा की शक्तियों से दूर रखा जाना चाहिए.

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केंद्र सरकार ने इन सिफारिशों को लागू करने के लिए संविधान (72वां) संशोधन विधेयक पेश किया. तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने विधेयक के उद्देश्यों का विवरण दिया था और बताया था कि दिल्ली की जनता की आम मांग रही है कि उन्हें अपना प्रशासन चलाने में प्रभावी आवाज दी जानी चाहिए. वर्तमान में कुछ लोगों के अनुसार प्रशासन का लोगों के प्रति जवाबदेही का अभाव है. हालांकि, ये बिल निरस्त हो गया.

और दिल्ली को मिल गई 70 सदस्यीय विधानसभा

अंततः, दिल्ली को संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 के तहत विधानसभा की मंजूरी दी गई. इस अधिनियम ने दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा और सात सदस्यीय मंत्रि परिषद के गठन का प्रावधान करके केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया.

फिर 1993 में हुए पहली बार चुनाव

केंद्र ने 1992 में एक परिसीमन कमेटी गठित की जिसने दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें निर्धारित कीं, जिसके बाद विधानसभा चुनावों का रास्ता साफ हो गया. आखिरकार नवंबर 1993 में विधानसभा चुनाव के साथ दिल्ली में लोकतांत्रिक माहौल फिर से बहाल हुआ. मदन लाल खुराना के नेतृत्व में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की और पीके दवे को उपराज्यपाल नियुक्त किया गया.

पहले चुनाव में सिर्फ तीन महिलाएं सदन में पहुंचीं. इनमें बलजीत नगर से कृष्णा तीरथ, मिंटो रोड से ताजदार बाबर (दोनों कांग्रेस) और कालकाजी से बीजेपी की पूर्णिमा सेठी का नाम शामिल था.

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15 दिसंबर 1993 को एलजी दवे ने सदन को संबोधित किया और इस दिन के संवैधानिक और राजनीतिक महत्व को रेखांकित किया था. इसी दिन दिल्ली को लगभग चार दशकों के बाद अपनी विधानसभा मिली थी.

LG की सिफारिश पर होती है सीएम की नियुक्ति

दिल्ली देश के 9 केंद्र शासित प्रदेशों में से एक है. यहां मुख्यमंत्री राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते हैं. यहां मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उपराज्यपाल की सलाह पर की जाती है. चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने और सुषमा स्वराज के नाम दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड दर्ज है.

दिल्ली के प्रशासक हैं उपराज्यपाल

संविधान का 69वां संशोधन एक्ट, 1991 दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा देता है. इस एक्ट के अनुसार दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया है और उपराज्यपाल को दिल्ली के प्रशासक के रूप में नामित किया गया है. दिल्ली देश का एकमात्र तीसरा केंद्र शासित प्रदेश है जिसके मुख्य कार्यकारी मुख्यमंत्री हैं. 1952 से लेकर अब तक 7 मुख्यमंत्री रह चुके हैं. आतिशी 8वीं सीएम हैं. सबसे ज्यादा (15 साल) समय तक शीला दीक्षित सीएम रही हैं. जबकि केजरीवाल 10 साल 9 महीने तक मुख्यमंत्री रहे.

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