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दिल्ली नगर निगम में चुनाव का रास्ता साफ हो गया है. एमसीडी के वार्डों में परिसीमन का काम पूरा हो चुका है, जिसके बाद केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया. दिल्ली नगर निगम में परिसीमन के बाद वार्डों की संख्या घटकर 250 हो गई है. इससे पहले तीनों नगर निगम में 272 वार्ड थे.
दिल्ली नगर निगम में अब 42 वार्डों को अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित किया गया है. इन वार्डों में परिसीमन का भी काम पूरा हो चुका है, लेकिन अब दिल्ली का राज्य चुनाव आयोग महिलाओं और अनुसूचित जाति के लोगों के लिए सीट चिन्हित और आरक्षित करके नोटिफिकेशन जारी करेगा. केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के बाद अब दिल्ली नगर निगम चुनाव जल्द घोषित होने की संभावना है.
इससे पहले नगर निगम में 250 नए वार्डों की परिसीमन प्रक्रिया में सुझाव और आपत्ति मांगी गई थीं. उसके आधार पर अब डीलिमिटेशन का काम किया जा चुका है. राज्य निर्वाचन आयोग ने हर वार्ड के लिए एक अधिकारी को जिम्मेदारी दे रखी है.
दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों ने चुनाव के लिए पोलिंग, काउंटिंग और चुनाव के अधिकारियों की तैनाती की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. चुनाव आयोग की तैयारियों से लगता है कि साल 2022 के आखिर में या नए साल की शुरुआत में नगर निगम चुनाव हो सकता है.
दिल्ली में इस बार सरकार ने निगमों का एकीकरण कर दिया है. हालांकि निगम और सशक्त हो, जनता को ज्यादा लाभ मिले इसके प्रावधान एमसीडी एकीकरण एक्ट में नहीं हैं. इसके अलावा एक्ट में निगम के दिवालिया होने की वजहों, पार्षदों और मेयर को पावरफुल बनने या मिलने वाले नए अधिकारों का कोई जिक्र नहीं है.
मेयर करेगा सिर्फ सदन की अध्यक्षता
एकीकरण के बाद निगम पर घाटा ना रहे, कर्मचारियों को समय से वेतन, पेंशन, प्रमोशन और जनता को राहत मिल सके इसको देखते हुए आर्थिक रूप से दिवालिया हो चुके निगमों को पैकेज के माध्यम से उबार कर लाने के लिए भी कोई प्रावधान नए कानून में नहीं है. इसके साथ ही अब मेयर सिर्फ सदन की अध्यक्षता करेगा. 'मेयर इन काउंसिल' का प्रावधान नहीं है. मेयर के पास कोई फाइनेंशियल पावर नहीं होगी बल्कि कमिश्नर के हाथ में यह पावर रहेगी. सदन के पास बजट पास करने का अधिकार है जिसकी अध्यक्षता मेयर करेगा. उस बजट में पैसा खर्च करना, बजट आवंटन करना, ये अधिकार कमिश्नर को दिए गए हैं.
खत्म होगा दिल्ली सरकार-MCD के बीच विवाद?
एकीकृत नगर निगम के निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगाई कहते हैं कि दिल्ली नगर निगम पर दिल्ली सरकार के करोड़ों रुपये का कर्ज बकाया है. ऐसे में केंद्र जब हजार करोड़ की अनुदान राशि निगमों को वाया दिल्ली सरकार देता है तो दिल्ली सरकार उस पर लगने वाला ब्याज और किश्त काट लेती है. जो दोनों के बीच विवाद की बड़ी वजह है.
एमसीडी को ग्लोबल शेयर, एक मुश्त पार्किग शुल्क और ट्रांसफर ड्यूटी में दिल्ली सरकार से हिस्सा मिलता है जो दो दशकों पुराना विवाद है. नए वाहनों के पंजीकरण में दिल्ली सरकार को मिलने वाला पार्किंग चार्ज में निगम का भी हिस्सा होता है. जमीन की खरीद-फरोख्त में ट्रांसफर ड्यूटी में भी निगम का हिस्सा होता है.
इन सभी को लेकर निगम दिल्ली सरकार पर पैसे ना देने का आरोप लगाता रहता है. दिल्ली वित्त आयोग की रिपोर्ट ये कहती है कि दिल्ली सरकार की आय का कुछ हिस्सा दिल्ली नगर निगम को भी देना होता है. लेकिन इन विवादों पर इस नए कानून में कुछ भी बात नहीं की गई है.
'डबल इंजन' सरकार में भी हुए विवाद
अगर आप सोच रहे हैं कि इसका हल दिल्ली राज्य और निगम में डबल इंजन यानी एक ही सरकार होगी तो विवाद नहीं होंगे तो ऐसा नहीं है. साल 2002 से 2007 तक केंद्र-दिल्ली में कांग्रेस की सरकार की थी तो एमसीडी में भी कांग्रेस ही थी लेकिन तब के मेयर बाबू राम शर्मा से शीला दीक्षित की कभी नहीं बनी. कहा जाता है कि शीला ने बाबू राम की राजनीतिक जीवन खत्म करने के लिए निगम को 2012 में तीन भागों में बांट दिया था.