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जानिए, MCD क्यों है गाजीपुर हादसे की जिम्मेदार

गाजीपुर लैंडफिल साइट 1984 में शुरू की गई थी. अनुमान के मुताबिक इसे साल 2002 तक के लिए ही बनाया गया था. 2002 में इस लैंडफिल साइट को बंद हो जाना चाहिए था लेकिन मियाद खत्म हो जाने के 15 साल बाद तक इस लैंडफिल साइट पर कूड़ा डाला जाता रहा.

गाजीपुर लैंडफिल साइट गाजीपुर लैंडफिल साइट
रवीश पाल सिंह/मणिदीप शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST

पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में शुक्रवार शाम हुए हादसे ने कई सवाल खड़े किए हैं. लेकिन हादसे के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार अगर कोई है तो वो है दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी. क्योंकि वही हुआ जिसका डर लम्बे वक्त से था. सालों से एक टाइम बम की तरह खड़ी गाजीपुर लैडफिल साइट शुक्रवार को फट पड़ी और लैंडफिल साइट का एक हिस्सा शुक्रवार को एक झटके के साथ नीचे आ गिरा.

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लैंडफिल साइट से ठीक लगी हुई सड़क पर यातायात था और वहां से गुजर रही गाड़ियां और लोग इसकी चपेट में आ गए. हादसे में दो लोगों की मौत हुई और 4 घायल हो गए. इस हादसे की अगली सुबह 'आज तक' की टीम ने ये पता लगाने की कोशिश की कि इस हादसे का असल जिम्मेदार कौन है और जो वजहें सामने आईं उसमें सभी उंगलियां एमसीडी की तरफ उठती दिखीं. जब हादसे पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि इस हादसे को रोका जा सकता था लेकिन एमसीडी के ढीले ढाले रवैये ने एक ऐसी दुर्घटना कर दी जिसने सारी दिल्ली को हिलाकर रख दिया.

आपको बता दें कि गाजीपुर लैंडफिल साइट 1984 में शुरू की गई थी. अनुमान के मुताबिक इसे साल 2002 तक के लिए ही बनाया गया था. 2002 में इस लैंडफिल साइट को बंद हो जाना चाहिए था लेकिन मियाद खत्म हो जाने के 15 साल बाद तक इस लैंडफिल साइट पर कूड़ा डाला जाता रहा जिससे सिर्फ 20 मीटर उंचाई की मंजूरी वाली ये लैंडफिल साइट आज 50 मीटर की उंचाई तक पहुंच चुकी है. ऐसा नहीं है कि इसके लिए निगम को चेताया नहीं गया था. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति यानि डीपीसीसी ने कई बार ईस्ट एमसीडी को पत्र लिख चेतावनी दी थी कि गाजीपुर में अब और कूड़ा नहीं डाले लेकिन एमसीडी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

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लापरवाही की एक और कहानी आपको बताएंगे तो आपको भी यकीन हो जाएगा कि क्यों इसे एमसीडी की बड़ी लापरवाही माना जाएगा. दरअसल दिल्ली में लैंड डीडीए उपलब्ध कराता है और गाजीपुर लैंडफिल साइट के विकल्प के तौर पर ईस्ट एमसीडी को पूर्वी दिल्ली के घोंडा गुर्जान में डीडीएम की खाली पड़ी लगभग 150 एकड़ जमीन की सहमति भी दी जा चुकी है और 4 सितंबर को इसे लेकर ईस्ट एमसीडी अधिकारियों और मेयर की डीडीए अफसरों के साथ बैठक भी तय है लेकिन विडंबना देखिए वक्त पर यहां लैंडफिल साइट ना बन पाने का खामियाजा दो लोगों की जान देकर चुकाना पड़ा.

तीसरी बड़ी लापरवाही भी आपको बताते हैं... पिछले साल नवंबर में ईस्ट एमसीडी ने नेशनल हाइवे अथॉरिटी के साथ करार किया था जिसके तहत गाजीपुर लैंडफिल साइट से कूड़ा निकाल कर एनएच-24 के चौड़ाकरण में उसका इस्तेमाल होना था. लेकिन योजना करार से आगे ना बढ़ सकी. आखिरकार दो लोगों की मौत के बाद प्रशासन की नींद टूटी है. हादसे के अगले दिन यानि शनिवार को उपराज्यपाल ने पूर्वी दिल्ली के कमिश्नर और अधिकारियों के साथ-साथ एनएचएआई अफसरों के साथ बैठक की और तय किया कि नवंबर 2017 से कूड़े को लैंडफिल साइट से उठाकर एनएच-24 के लिए इस्तेमाल में लाया जाएगा और अगले दो सालों में गाजीपुर से कूड़े के ढेर को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा.

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अब बड़ा सवाल ये है कि जब ये हादसा रोका जा सकता था तो फिर इसमें देरी क्यों हुई और अब जब दो लोगों की जान जा चुकी है तो उस पर मुआवजे का मरहम लगाने की असफल कोशिश की जा रही है.

 

 

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