
दिल्ली नगर निगम को आखिरकार मेयर मिल ही गया. चुनाव नतीजे आने के 84 दिन बाद आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय दिल्ली नगर निगम की महापौर चुन लीं गईं. उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार रेखा गुप्ता को 34 वोटों से हरा दिया.
बुधवार को हुई वोटिंग में शैली ओबेरॉय को 150 वोट मिले. बीजेपी की रेखा गुप्ता को 116 वोट मिले. एमसीडी के 250 वार्डों में से आम आदमी पार्टी ने 134 और बीजेपी ने 104 में जीत हासिल की थी. कांग्रेस सिर्फ 9 वार्डों में ही जीत सकी थी.
हालांकि, आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय महापौर बन तो गईं हैं, लेकिन वो इस पद पर महज 38 दिन ही रहेंगी. दरअसल, एमसीडी का कार्यकाल 1 अप्रैल से शुरू होता है. इसलिए 1 अप्रैल को फिर से मेयर का चुनाव होगा. लिहाजा शैली ओबेरॉय 1 अप्रैल तक ही मेयर रहेंगी.
एमसीडी एक्ट 1957 के तहत, मेयर प्रथम नागरिक होता है. यानी, शैली ओबेरॉय दिल्ली की प्रथम नागरिक होंगी. उनके पास एमसीडी से जुड़े सारे रिकॉर्ड होंगे. कुल मिलाकर दिल्लीवाले कैसे जियेंगे? अब ये सब कुछ शैली ओबेरॉय ही तय करेंगी.
ऐसे में जानना जरूरी है कि दिल्ली में शैली ओबेरॉय कितनी पावरफुल होंगी? एमसीडी के पास कौन-कौन से अधिकार होते हैं? बीजेपी कहां रुकावट बन सकती है? पर उससे पहले जानते हैं एमसीडी कितनी बड़ी है?
कितनी बड़ी है दिल्ली नगर निगम?
- दिल्ली का 97 फीसदी इलाका एमसीडी के अंडर में आता है. जबकि, बाकी का तीन फीसदी इलाका नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) और दिल्ली कंटेन्मेंट बोर्ड (DCB) के पास है.
- पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम हुआ करती थी. लेकिन 2012 में तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नगर निगम को तीन हिस्सों में बांट दिया था.
- दिल्ली में पहले 272 वार्ड थे. 104-104 वार्ड साउथ और नॉर्थ दिल्ली में थे, जबकि 64 वार्ड ईस्ट दिल्ली में थे. पर पिछले साल केंद्र सरकार ने तीनों नगर निगमों को फिर से एक कर दिया और वार्डों की संख्या घटाकर 250 कर दी.
- एमसीडी की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, दिल्ली नगर निगम के दायरे में दो करोड़ लोग आते हैं और ये इसे दुनिया की सबसे बड़ी नगर निगम बनाती है.
कितनी पावरफुल होंगी शैली ओबेरॉय?
- आम लोगों की जरूरत से जुड़े सारे मुद्दे दिल्ली नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. दिल्लीवाले कैसे जियेंगे? ये सब नगर निगम ही तय करती है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि एमसीडी पर जिसका कब्जा, वही दिल्ली का 'राजा' होगा.
- एमसीडी की कमाई में लगभग 25 फीसदी हिस्सेदारी प्रॉपर्टी टैक्स की होती है. 2019-20 में तीनों नगर निगमों में करीब साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये का प्रॉपर्टी टैक्स हासिल किया था.
- वहीं, अगर दिल्ली में प्रचार करना है तो उसके लिए भी एमसीडी से परमिशन लेनी होगी. दिल्ली में कहीं भी पोस्टर लगाना हो या फिर होर्डिंग लगाना हो, उसके लिए एमसीडी की मंजूरी लगेगी.
- इसके अलावा दिल्ली से आना हो या जाना हो, इसके लिए टोल टैक्स भी चुकाना है जो एमसीडी के पास जाता है. 2019-20 में एमसीडी ने 1,200 करोड़ रुपये का टोल टैक्स वसूला था.
दिल्ली नगर निगम के पास कौन-कौन से अधिकार?
- सफाईः दिल्ली की कॉलोनियों और सड़कों पर साफ-सफाई करने, कूड़ा इकट्ठा करने और उसका निपटारा करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है. घरों से कूड़ा इकट्ठा करना और उसको निपटाना.
- स्कूल, अस्पताल, डिस्पेंसरीः प्राइमरी शिक्षा के लिए स्कूल, डिस्पेंसरी और कुछ अस्पतालों का जिम्मा भी नगर निगम के पास होता है.
- टैक्स कलेक्शनः दिल्ली में लगभग 50 लाख संपत्तियां हैं. इन पर लगने वाला प्रॉपर्टी टैक्स नगर निगम ही वसूलती है. इसके अलावा टोल टैक्स भी नगर निगम ही लेती है.
- नक्शों को मंजूरीः दिल्ली में अगर कोई घर बनाना है या बिल्डिंग बनानी है तो उसका नक्शा एमसीडी ही पास करती है. बिल्डिंग अवैध बनी है और उसे तोड़ना है तो उसका काम भी नगर निगम ही करती है.
- सड़कों का रखरखावः नगर निगम सड़कों की साफ-सफाई तो करती ही है, साथ ही स्ट्रीट लाइट का जिम्मा भी इसी के पास होता है. दिल्ली के पार्कों का रखरखाव का काम भी नगर निगम ही संभालती है.
- अन्य कामः रहवासी इमारतों का रिकॉर्ड रखना, जन्म और मौत का रिकॉर्ड रखना, श्मशान और कब्रिस्तान को मैनेज करना और रेस्टोरेंट वगैरह के लिए लाइसेंस देना नगर निगम का काम है.
मेयर के पास कौन-कौन सी पावर?
- दिल्ली में तीनों नगर निगमों के एक होने के बाद मेयर की ताकत मुख्यमंत्री के बराबर हो गई है. पहले तीन मेयर होते थे, जिस वजह से मुख्यमंत्री ज्यादा ताकतवर होता था.
- माना जाता है कि शीला दीक्षित की सरकार ने नगर निगमों को तीन हिस्सों में बांटा ही इसलिए था, ताकि मुख्यमंत्री की ताकत को बढ़ाया जा सके.
- अब मेयर की ताकत मुख्यमंत्री से भी ज्यादा है. वो इसलिए क्योंकि मेयर जो भी फैसला लेता है, उसकी फाइल को एलजी या केंद्र के पास भेजने की जरूरत नहीं होती. जबकि, मुख्यमंत्री जो फैसला लेता है उसकी फाइल आगे भेजी जाती है.
- नगर निगम का अपना अच्छा-खासा बजट होता है. इस बजट के पैसे को खर्च करने की आजादी होती है. नगर निगम में जो प्रस्ताव पास होता है, वो सीधे लागू हो जाता है. प्रॉपर्टी-हाउस टैक्स, साफ-सफाई, सड़कें, प्राइमरी स्कूल, अस्पताल-डिस्पेंसरी से जुड़े फैसले सीधे लागू होते हैं.
- इतना ही नहीं, कई मामलों में मेयर की ताकत मुख्यमंत्री से ज्यादा होती है. मेयर नगर निगम के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा फैसला भी ले सकता है.
- इतना ही नहीं, एमसीडी एक्ट के तहत सारे चुने हुए पार्षदों को 30 दिन के भीतर मेयर के सामने अपनी और अपने परिवार की संपत्ति की जानकारी देनी होगी. अगर कोई पार्षद ऐसा नहीं करता है तो उसे मेयर अयोग्य घोषित कर सकता है.
तो क्या अब मेयर ही 'सर्वशक्तिमान' होगा?
- हां भी और नहीं भी. हां इसलिए क्योंकि नगर निगम से जुड़ा कोई भी फैसला मेयर ले सकता है. और नहीं इसलिए क्योंकि एमसीडी की एक्जीक्यूटिव पावर स्टैंडिंग कमेटी के पास होती है.
- किसी भी प्रोजेक्ट को फाइनेंशियल मंजूरी देना, लागू होने वाली नीतियों को आखिरी रूप देना, शिक्षा-पर्यावरण-पार्किंग जैसे मुद्दों पर सब-समितियां बनाना, ये सारे काम स्टैंडिंग कमेटी यानी स्थायी समिति ही करती है.
- स्टैंडिंग कमेटी में 18 सदस्य होते हैं. 6 सदस्यों का चुनाव सदन की बैठक में होता है. बाकी के 12 सदस्यों का चुनाव 12 अलग-अलग जोन से होता है. जोन की मीटिंग में एल्डरमैन यानी मनोनीत पार्षदों को भी वोटिंग का अधिकार होता है.
- बिना एल्डरमैन के आम आदमी पार्टी को 12 में से 8 जोन आसानी से मिलने चाहिए थे, जबकि बीजेपी को 4 जोन में जीत मिलनी थी. पर उपराज्यपाल की ओर से जारी नए नोटिफिकेशन में एल्डरमैन को सिर्फ 3 जोन में नियुक्त किया गया है, ताकि बीजेपी 4 की बजाय 7 जोन से अपने सदस्यों को स्टैंडिंग कमेटी में भेज सके.
- अगर बीजेपी सदन की स्टैंडिंग कमेटी से 3 सीटें जीत लेती है और 7 सदस्य अलग-अलग जोन से चुने जाते हैं तो स्टैंडिंग कमेटी में उसका बहुमत हो जाएगा. क्योंकि 18 में से 10 सदस्य बीजेपी के होंगे. ऐसे में आम आदमी पार्टी अपना मेयर बनवाकर भी स्टैंडिंग कमेटी पर कब्जा नहीं कर पाएगी. अगर मेयर कोई प्रोजेक्ट स्टैंडिंग कमेटी को भेजतीं हैं और वो वहां से पास नहीं होता तो फिर उसे सदन में भी पेश नहीं किया जाएगा.
एमसीडी बनाम बीएमसी
- तीनों के एक होने के बाद जहां दिल्ली दुनिया की सबसे बड़ी नगर निगम बन गई है तो वहीं मुंबई नगर निगम यानी बीएमसी देश की सबसे धनी नगर निगम है.
- बीएमसी का इस साल का बजट लगभग 46 हजार करोड़ रुपये है. जबकि, तीनों नगर निगम एक होने के बाद एमसीडी ने 2022-23 के लिए 15,276 करोड़ रुपये का बजट जारी किया था.
- दिल्ली नगर निगम जहां लगभग 1,400 वर्ग किलोमीटर का इलाका कवर करती है तो वहीं बीएमसी में 437 वर्ग किलोमीटर का इलाका ही आता है. दिल्ली नगर निगम 2 करोड़ लोगों को हैंडल करती है और बीएमसी लगभग सवा करोड़.
- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019-20 में दिल्ली की तीनों नगर निगमों ने मिलाकर 21,802 करोड़ रुपये की कमाई की थी. जबकि, उस साल बीएमसी ने 24,984 करोड़ रुपये कमाए थे.