
कोर्ट को लेकर हिंदी फिल्मों में डायलॉग अक्सर सुनाई देता है "तारीख पर तारीख". लेकिन अब सूरत-ए-हाल बदलता हुआ नजर आ रहा है. खासतौर से उन कोर्ट में जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सांसद और विधायकों के मामले सुनने के लिए गठित की गई हैं. दिल्ली में पटियाला हाउस कोर्ट में ऐसी 2 स्पेशल कोर्ट है. यहां ज्यादातर मामले आम आदमी पार्टी के विधायकों से जुड़े हुए हैं और 22 में से 19 मामलों में कोर्ट ने अपना फैसला 6 महीने से भी कम समय में सुना दिया है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ मामलों में पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष रूप से गठित स्पेशल कोर्ट 1 मार्च से मामलों की सुनवाई कर रही है. मानहानि के कुछ मामलों में तो मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कोर्ट के बाहर जाकर समझौता कर केस खत्म कर लिए हैं, वहीं कुछ मामलों में उनके विधायकों को कोर्ट ने बरी कर दिया है और कुछ में विधायकों को दोषी भी ठहराया गया है.
आम आदमी पार्टी के विधायकों के खिलाफ चल रहे 22 मामलों में से 19 मामलों में कोर्ट अपना फैसला सुना चुकी है. इसमें से कुछ मामले चुनावों के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन करने, कुछ मारपीट से जुड़े हुए और कुछ भ्रष्टाचार से जुड़े हुए हैं. कानूनी विशेषज्ञ मानते है कि कोर्ट का फैसला जल्दी आता है तो जनता को भी यह पता चलता है कि उनके नेताओं पर लगे आरोप सही है या गलत.
1 मार्च से 31 जुलाई के बीच में स्पेशल कोर्ट ने नेताओं से जुड़े हुए तकरीबन 144 मामले में सुनवाई की. जिसमें से कुछ मामलों में पुलिस के चार्जशीट देर से फाइल करने पर केस खत्म कर दिया गया. कुछ में पुलिस सबूत ही नहीं जुटा पाई. और कुछ मामलों में गवाह कोर्ट में पेश हुए ही नहीं. आम आदमी पार्टी के नेताओं में अरविंद केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया, कैलाश गहलोत और आसिम अहमद खान जैसे मंत्री भी शामिल है जिनको कोर्ट ने बरी करके राहत दी है.
हालांकि देवेंद्र सहरावत और सहीराम पहलवान जैसे आप के विधायकों को कोर्ट ने दोषी भी करार दिया है. नए कानून के मुताबिक इन लोगों को अगर 2 साल से ऊपर की सजा होती है तो फिर यह आगे चुनाव नहीं लड़ सकते और साथ ही इनके विधायकी भी जाएगी.कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि 1 साल की समय सीमा में केस खत्म करने को लेकर कई अड़चनें भी हैं.
कानून विशेषज्ञ अनिल सोनी कहते है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने जो कि 1 साल के भीतर ही सुनवाई पूरी करके अपना फैसला सुनाने का आदेश दिया है. तो नेताओं की हड़बड़ाहट बढ़ गई है और वह किसी भी तरह बरी होने के लिए गवाहों के साथ आउट ऑफ द कोर्ट जाकर सेटलमेंट कर रहे हैं. क्योंकि कोर्ट में अगर उन्हें दोषी ठहरा दिया तो वह आगे चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे.
भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को मनी ट्रेल को साबित करने में काफी वक्त लगता है. लेकिन ऐजेंसी से जुड़े वकील कहते है कि अब 1 साल की समय सीमा की वजह से जांच हड़बड़ी में पूरी होगी, जिससे केस की जांच और अहम पहलू कोर्ट में साबित करने के दौरान केस कमजोर भी हो सकता है. जिसका फायदा आरोपी ले सकते हैं. लेकिन इतना तय है कि स्पेशल कोर्ट के गठन के बाद नेताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई में तेजी आई है. और अब इस तरह के मामलों में अगली तारीख के लिए छह छह महीने का इंतजार नहीं करना पड़ता.