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दिल्लीः मुंडका से पहले उपहार सिनेमा समेत कई हादसे हुए, 25 साल में बढ़ता गया ग्राफ

दिल्ली के मुंडका में हादसा हुआ था. इसमें 27 लोगों की मौत हो गई थी. लेकिन ये पहला हादसा नहीं था. बीते 25 साल में दिल्ली में इस तरह के कई हादसे हुए हैं, जिसमें कई लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन इन हादसों की जड़ों में लापरवाही की परतें बिछी हुई हैं.

मुंडका हादसे में 27 जिंदगियां खत्म हो गई थीं (फाइल फोटो) मुंडका हादसे में 27 जिंदगियां खत्म हो गई थीं (फाइल फोटो)
अभि‍षेक आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST
  • 27 लोगों की मौत हुई थी मुंडका हादसे में
  • कई लोग लापता हो गए थे हादसे के बाद

दिल्ली के मुंडका में एक इमारत में लगी आग ने 27 जिंदगियां खत्म कर दी थीं. कई लोग लापता हो गए. जबकि कई लोग घायल हो गए थे. हादसे के बाद आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी चला. फायर डिपार्टमेंट की ओर से गया गया कि बिल्डिंग को विभाग की ओर से NOC नहीं मिली थी. इसके बाद MCD ने मुंडका इलाके में बिल्डिंगों का सर्वे रिपोर्ट देने के लिए कहा है. इमारत गिरें या आग लगे, उन लोगों के दर्द के निशां कभी नहीं मिटते जो इस तरह के हादसों में अपनों को खोते हैं. लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली में इस तरह की घटनाएं होती क्यों हैं. क्या वजह है कि ऐसा ही कोई हादसा होता है और कई जिंदगियां पलभर में खत्म हो जाती हैं. 

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दिल्ली में कब-कब हुए बड़े हादसे

दिल्ली ने पिछले 25 साल में इस तरह के कई हादसे देखे हैं, जिनमें इमारत ढहने, आग लगने की कई घटनाएं हुईं, इनमें कई लोगों की मौतें भी हुईं, लेकिन इनसे कोई सबक नहीं लिया गया. एजेंसियां ​​कार्रवाई करने के आदेश देती हैं. लेकिन नजीता सिफर ही रहता है. बिना ठोस कार्रवाई के राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी रहता है.

वो दिन 13 जून, 1997 का था, जब उपहार सिनेमा में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद तमाम बयानबाजियां हुईं, जांच पड़ताल का दौर चला, लेकिन कोई सबक नहीं लिया गया. उपहार कांड के बाद 15 नवंबर 2010 की शाम कभी न भूलने वाली रही. 15 नवंबर को पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर की घनी आबादी वाले ललिता पार्क में 5 मंजिला इमारत ढह गई थी, इसमें 67 लोग मारे गए थे, 73 लोग घायल हो गए थे. इसके बाद भी राजधानी में बिल्डिंग ढहने और आग लगने की छोटी-छोटी घटनाएं होती रहीं. लेकिन सुरक्षा कानूनों में कोई सुधार नहीं हुआ. 

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दिल्ली में अनाज मंडी क्षेत्र में 8 दिसंबर 2019 को एक कारखाने में हादसा हुआ, जिसमें 43 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद 12 फरवरी को करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस में आग लगी. इसमें 17 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद सरकार एक्शन में आई और अग्नि सुरक्षा नियमों का पालन न करने वाले कई होटल सील किए गए. साथ ही जुर्माना भी लगाया गया. लेकिन ये कार्रवाई भी खानापूर्ति ही साबित हुई. ये ठोस कदम साबित नहीं हुआ. लिहाजा 13 मई को 2022 को मुंडका में एक 4 मंजिला इमारत में आग लग गई, इसमें 27 लोगों की मौत हो गई. 

हादसों में कई मौतों की एक वजह ये भी 
 

सिटी प्लानर और आर्किटेक्ट अर्चित प्रताप सिंह कहते हैं कि दिल्ली की इमारतों में अक्सर देखा जाता है कि इमरजेंसी एक्जिट नहीं होता है. अगर आग लग जाए तो इस वैकल्पिक रास्ते से जिंदगियां बचाई जा सकती हैं, लेकिन इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता, लोग इसे पूरी तरह से गैर जरूरी समझते हैं. हालांकि दमलक विभाग ने हाल के कुछ वर्षों में इस कवायद को लागू करने की कोशिश की है. लेकिन जो बिल्डिंग पुरानी हैं, उनमें कोई इमरजेंसी एक्जिट नहीं है. जैसे मुंडका में जिस इमारत में ये हादसा हुआ उसमें सिर्फ एक ही एंट्री और एग्जिट गेट था. इतना ही नहीं. इतना ही नहीं, खाज में कोढ़ का काम रास्ते में रखे जनरेटर ने किया, जिसकी वजह से आवागमन का रास्ता ब्लॉक हो रहा था.

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हादसे से बचने के लिए ये उपाय करें
 

अर्चित प्रताप सिंह ने बताया कि बिल्डिंग में सीढ़ियों का निर्माण बाहरी दीवार से सटाकर करें, साथ ही 15 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली बिल्डिंग में अच्छी तरह से सीढ़ियां बनाई जानी चाहिए. साथ ही 15 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली बिल्डिंग में सीढ़ियां एक-दूसरे से जुड़ी हुई हों. लिफ्ट शाफ्ट के चारों ओर सीढ़ी की व्यवस्था नहीं की जानी चाहिए. आंतरिक सीढ़ियों की न्यूनतम चौड़ाई कम से कम एक मीटर होनी चाहिए.

पुरानी बिल्डिंग में वेंटिलेशन की भी व्यवस्था नहीं 


अर्चित कहते हैं कि पुरानी बिल्डिंग में शायद ही इन पैरामीटर्स को पालन किया जाता हो. साथ ही औद्योगिक या वाणिज्यिक इमारतों में भी ऐसी खामियां देखने को मिलती हैं. लेकिन इनका बारीकी से निरीक्षण किया जाए तो इन गंभीर गलतियों से बचा जा सकता है. उन्होंने बताया कि दिल्ली में पुरानी इमारतों में  एक और बड़ी खामी नजर आती है, वो है 10 मीटर से अधिक ऊंची बिल्डिंग में नैचुरल लाइट और वेंटिलेशन की व्यवस्था नहीं होती है. ललिता पार्क जैसी अवैध कॉलोनियों में स्थिति और भी खराब है. साथ ही लोगों ने फायर विभाग की एनओसी के बिना इमारतें और अवैध कारखाने बना लिए हैं. ये इतने संकरे हैं कि हादसा होने पर घटनास्थल पर फायर ब्रिगेड तक नहीं पहुंच पाती.

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नियम लागू तो हुए पर पालन नहीं हुआ


अर्चित सिंह कहते हैं कि अनाज मंडी में आग लगने की घटना के बाद कई जांच एजेंसियां बनाई गईं. जिन्होंने घनी आबादी वाले क्षेत्रों में पानी की टंकियों के साथ फायर हाइड्रेंट सिस्टम लगाए. महत्वपूर्ण चौराहों पर सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के सुझाव दिए गए, ताकि दमकल गाड़ियां आसानी से गुजर सकें. लेकिन इन्हें गंभीरता से लागू नहीं किया गया था. इसके अलावा अर्पित पैलेस में आग की घटना के बाद सरकार ने मई 2019 में कड़े नियम लागू किए लेकिन 4 महीने बाद दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग ने कुछ नियमों को संशोधित करने का आदेश जारी कर दिया.
 

 

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