
''जो देश अपनी विरासत को भूलकर आगे बढ़ते हैं उनकी पहचान खत्म होना तय है. योग और भारत दुनिया को भारत की देन है. भारत ने अपनी प्रतिभा के दम पर दुनिया में सूचना क्रांति की अगुआई की है. अब अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के दम पर भारत दुनिया में स्वास्थ्य क्रांति की अगुआई कर सकता है. जरूरत इस बात की है कि हम अपनी परंपरा और विरासत पर न सिर्फ भरोसा करें बल्कि उसको लेकर गर्व करें."
यह विचार हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के, जो उन्होंने मंगलवार को दिल्ली के सरिता विहार में एक आयुर्विज्ञान संस्थान का उद्घाटन करने के दौरान व्यक्त किए.
इस मौके पर मौजूद आयुर्वेद के तमाम जानकार यह देखकर हैरान रह गए कि प्रधानमंत्री मोदी को आयुर्वेद की बारीक समझ है और इससे जुड़ी दिक्कतों से भी वह वाकिफ हैं. PM मोदी के संबोधन के दौरान उस वक्त खूब तालियां बजीं जब उन्होंने कहा कि बाहर तो आयुर्वेद का बोर्ड लगा होता है, लेकिन भीतर बैठा डॉक्टर जल्दी से असर होने के लालच में लोगों को एलोपैथी की दवा देता रहता है.
PM मोदी ने कहा, "लोगों का भरोसा आयुर्वेद में इसलिए कम हो रहा है क्योंकि खुद आयुर्वेद के डॉक्टरों में इस चिकित्सा पद्धति को लेकर पूरा समर्पण नहीं है, जबकि पूरी दुनिया में अब इसका प्रचलन बढ़ गया है. लोग बैक टू नेचर यानी प्रकृति की ओर लौटना चाहते हैं. आयुर्वेद के डॉक्टरों को आज के जमाने के हिसाब से दवा बनानी चाहिए, जिसे आपाधापी के बीच भी आसानी से लिया जा सके."मोदी ने कहा कि दादी के जिन नुस्खों से लोग बीमारियों से झटपट छुटकारा पा जाते थे, उसे भूलते जाने का नतीजा अब यह हुआ है कि उसे दूसरे देशों के लोग पेटेंट करा रहे हैं, क्योंकि गुलामी के कालखंड में हमारी परंपरा और ज्ञान को खत्म करने की कोशिश की गई.
प्रधानमंत्री ने कहा "कई लोग आयुर्वेद की दवाएं चाहकर भी नहीं ले पाते, क्योंकि उसे लेने की प्रकिया बेहद मुश्किल और समय लेने वाली होती है. इसलिए डॉक्टरों को आज के जीवन के हिसाब से दवाओं की पैकेजिंग करनी चाहिए."
मोदी ने आर्युवेदिक दवा के मानकीकरण पर भी जोर दिया और कहा कि पूरी दुनिया में सिक्का जमाने के लिए यह जरूरी है. प्रधानमंत्री ने साथ ही देश के हर जिले में एक आयुर्वेदिक अस्पताल स्थापित करने की इच्छा भी जाहिर की.