
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आज यमुना की सफाई के मामले में अपने आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक 'उच्च स्तरीय समिति' का गठन किया है. साथ ही ट्रिब्यूनल ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना से समिति का नेतृत्व करने का अनुरोध किया.
NGT की बेंच ने कहा, 'ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और इस ट्रिब्यूनल के आदेशों के उल्लंघन में स्थिति काफी हद तक असंतोषजनक बनी हुई है. काम के लिए कठोर समयसीमा तय की जा रही है, जिसकी कि बिना किसी जवाबदेही के मनमाने ढंग से अवहेलना की जा रही है. बेंच का कहना है कि दिल्ली में कई प्राधिकरण हैं, जिस कारण अब तक आवश्यक सफलता हासिल नहीं हो पाई है. इसमें स्वामित्व और जवाबदेही की कमी झलकती है.
हाई लेवल कमेटी का किया गया गठन
एनजीटी ने हाई लेवल कमेटी (HLC) का गठन किया है. यह कमेटी दिल्ली में 75 प्रतिशत तक प्रदूषण के स्तर तक पहुंच चुकी यमुना का अध्ययन करेगी. कमेटी पर अन्य राज्यों के नदी बेसिन से तुलना करके अपनी रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी है. NGT ने दिल्ली उपराज्यपाल से अनुरोध किया है कि वे इस समिति का नेतृत्व करें. बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत उपराज्यपाल ही DDA के अध्यक्ष और दिल्ली के प्रशासक हैं.
NGT ने बोरवेल को सील करने के दिए थे आदेश
बता दें कि इससे पहले नवंबर महीने में NGT ने नोएडा में सभी गैरकानूनी वाणिज्यिक बोरवेल को सील करने के निर्देश दिया था. दरअसल, NGT ने नोएडा प्राधिकरण को हफ्ते भर में बिना लाइसेंस के चल रहे कारखानों, भवन निर्माण कार्य सहित गैरकानूनी वाणिज्यिक सभी बोरवेल सील करने के निर्देश दिए थे. इसके अलावा NGT ने बिल्डरों या परियोजना के प्रस्तावकों को अपनी परियोजना की लागत का कम से कम 0.5 प्रतिशत अंतरिम मुआवजा के रूप में भुगतान करने का भी निर्देश दिया था. अपने आदेश में NGT ने कहा था कि बिल्डरों को एक महीने के भीतर मुआवजा अदा करना होगा. NGT ने कहा था कि मुआवजा नहीं देने पर बिल्डर्स के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के लिए मजिस्ट्रेट आजाद होंगे.
गौरतलब है कि प्राधिकरण नोएडा में 40 से अधिक बिल्डरों द्वारा भूजल के अवैध दोहन की शिकायत के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. NGT ने कहा कि भूजल का अनियंत्रित दोहन पर्यावरण के लिए न केवल बेहद हानिकारक है बल्कि सुप्रीम के निर्देशों का उल्लंघन भी है.