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अब दिल्ली विधानसभा में CM रेखा बनाम आतिशी, दोनों के सामने होंगी ये चुनौतियां

आम आदमी पार्टी ​हाल में संपन्न दिल्ली विधानसभा चुनाव में 62 सीटों से नीचे गिरकर 22 सीटों पर आ गई. पार्टी के बड़े-बड़े धुरंधर जिनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज, सत्येंद्र जैन, सोमनाथ भारती शामिल हैं, चुनाव हार गए. लेकिन कालकाजी में काफी कड़े मुकाबले में आतिशी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को हराने में सफलता पाई.

 दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और विपक्ष की नेता आतिशी. (PTI Photo) दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और विपक्ष की नेता आतिशी. (PTI Photo)
कुमार कुणाल
  • नई दिल्ली,
  • 23 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:19 PM IST

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली असेंबली में पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को अपने विधायक दल का नेता चुना है. इस तरह दिल्ली की 8वीं विधानसभा में दो महिलाएं अपनी-अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगी. रेखा गुप्ता को भाजपा ने दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश दिया की महिला सशक्तिकरण के लिए उसकी बातों में काफी दम है.

रेखा गुप्ता भारतीय जनता पार्टी में लगभग तीन दशकों से सक्रिय रही हैं और दिल्ली की सियासत को भली-भांति समझती हैं. आतिशी यूं तो दूसरी बार कालकाजी सीट से चुनकर विधानसभा में आई हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल की अनुपस्थिति में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना उनके राजनीतिक करियर कि अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है.

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आतिशी को AAP ने क्यों चुना नेता प्रतिपक्ष?

आम आदमी पार्टी ​हाल में संपन्न दिल्ली विधानसभा चुनाव में 62 सीटों से नीचे गिरकर 22 सीटों पर आ गई. पार्टी के बड़े-बड़े धुरंधर जिनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज, सत्येंद्र जैन, सोमनाथ भारती शामिल हैं, चुनाव हार गए. लेकिन कालकाजी में काफी कड़े मुकाबले में आतिशी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को हराने में सफलता पाई. वरिष्ठता के मुताबिक आम आदमी पार्टी के पास गोपाल राय, संजीव झा, जरनैल सिंह और सोम दत्त जैसे विकल्प मौजूद थे.

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लेकिन आम आदमी पार्टी ने उन सब पर पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को तरजीह दी. भले यह कहा जा रहा हो कि मुख्यमंत्री महिला हैं, ऐसे में विपक्ष का नेता भी एक महिला नेता हो तो उसे विधानसभा के अंदर चुनौती देना आसान होगा. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. आतिशी, अरविंद केजरीवाल की विश्वासपात्र भी हैं. आम आदमी पार्टी को करीब से जानने वाले यह बताते भी हैं कि अरविंद केजरीवाल पार्टी के अंदर बहुत कम लोगों पर ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के लिए भरोसा करते हैं.

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कैसा होगा रेखा और आतिशी का मुकाबला?

यह एक ऐसा मुकाबला है जो दिल्ली की सियासत को काफी रोचक बनाएगा. रेखा गुप्ता पहली बार विधायक बनी हैं, इसलिए उन्हें सरकारी कामकाज सीखने और संभालने में थोड़ा वक्त लग सकता है. आम आदमी पार्टी को लगता है कि यही मौका है, जब नई सरकार पर थोड़ा दबाव बनाया जाए. आतिशी लगातार अपनी आक्रामकता के लिए जानी जाती रही हैं. इसलिए केजरीवाल की पार्टी उन्हें सत्ताधारी बीजेपी को घेरने के लिए सबसे अच्छा विकल्प मान रही है. 

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रेखा गुप्ता दिल्ली विधानसभा के लिए नई जरूर हैं, लेकिन उन्हें विधायी कामकाज का अच्छा खासा अनुभव है. वह तीन बार पार्षद रह चुकी हैं, जिसमें दो बार तो उन्हें सत्ता चलाने का अनुभव भी है. रेखा गुप्ता को करीब से जानने वाले बताते हैं कि आक्रामकता में वह आतिशी से कहीं से कमतर नहीं हैं. इसलिए जब साथ में संख्या बल होगा तो उनके लिए काम और भी आसान होगा. दिल्ली विधानसभा के भीतर दो आक्रामक महिला व्यक्तित्वों के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिल सकती है.

रेखा vs आतिशी में कौन पड़ सकता है भारी?

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विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के पास आम आदमी पार्टी की तुलना में संख्या बल दोगुने से भी ज्यादा है. अनुभव के लिहाज से भी दोनों पार्टियों के पास कई सदस्य ऐसे हैं, जिन्होंने पहले भी विधानसभा के भीतर मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया है. अनुभवी नेता विजेंद्र गुप्ता को विधानसभा अध्यक्ष बनना गेम चेंजर साबित हो सकता है. रेखा गुप्ता पर निश्चित तौर पर चुनाव में किए वादों को पूरा करने का दबाव होगा. लेकिन आतिशी पर भी आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोपों पर जवाब देने की भी जिम्मेदारी होगी.

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जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के विधायकों का मनोबल काफी बढ़ा हुआ होगा. इसका फायदा सीधे-सीधे मनोवैज्ञानिक तौर पर रेखा गुप्ता को मिलने वाला है. वहीं आतिशी पर अपनी पार्टी की हार पीछे रखकर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे अनुभवी नेताओं की अनुपस्थिति में पार्टी के नेतृत्व की बड़ी जिम्मेदारी होगी. इन दोनों में जिस नेता ने भी अपना लोहा मनवा दिया, उसके लिए भविष्य में संभावनाएं काफी ज्यादा खुलने वाली हैं. इसलिए विधानसभा के अंदर दोनों नेताओं पर सबकी नजर होगी कि वह अपनी-अपनी पार्टियों को कैसा नेतृत्व दे पाती हैं.

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