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नोटबंदी में भी नए नोट बांट कर लोगों की मदद कर रहा ये शख्स

उल्हास पी आर नाम के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता और डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर ने जब 2000 के 13 नोट निकाले और कहा कि मैं ये लोगों को बांटना चाहता हूं, तो मजमा लग गया. खान मार्किट में ही मौजूद अपने एक दोस्त की दुकान में लगी स्वाइप मशीन ले कर उल्हास ने लोगों को 2000 के 13 नोट बांट दिए और लोगों से स्वाइप मशीन के जरिए अपने पैसे वापस लिए. हर एक हज़ार रुपये पर 18 रुपये उन्हें स्वाइप मशीन कंपनी को अपनी जेब से देना पड़ा.

नोटबंदी- एटीएम कतारें नोटबंदी- एटीएम कतारें
अंजलि कर्मकार/अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:15 PM IST

नोटबंदी के इस दौर में बैंकों और एटीएम के बाहर लोग लंबी-लंबी कतारों में अपने ही पैसों को हासिल करने के लिए जूझ रहे हैं. चाह कर भी कोई एक-दुसरे की मदद नहीं कर पा रहा. सगे-संबंधी भी एक-दुसरे की मदद करने में लाचार हैं. ऐसे में अगर कोई 2000 का नया नोट आपको बीच बाजार देने लगे, तो ज़ाहिर है आप चौकेंगे. सोमवार को दिल्ली के पॉश खान मार्किट में कुछ ऐसा ही देखने को मिला.

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उल्हास पी आर नाम के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता और डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर ने जब 2000 के 13 नोट निकाले और कहा कि मैं ये लोगों को बांटना चाहता हूं, तो मजमा लग गया. खान मार्किट में ही मौजूद अपने एक दोस्त की दुकान में लगी स्वाइप मशीन ले कर उल्हास ने लोगों को 2000 के 13 नोट बांट दिए और लोगों से स्वाइप मशीन के जरिए अपने पैसे वापस लिए. हर एक हज़ार रुपये पर 18 रुपये उन्हें स्वाइप मशीन कंपनी को अपनी जेब से देना पड़ा.

पुलिस ने की पूछताछ
जब उल्हास खान मार्किट में लोगों को नोट बांट रहे थे, तो पुलिस भी आ गई और उन्हें पकड़कर ले गई. लेकिन पुलिस ने पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया. उल्हास ने जिन लोगों को नोट दी उनके फोन नंबर लिख लिए, नोट की सीरीज भी नोट कर ली गई है. जिन लोगों ने उल्हास से पैसा लिया, वो बाकायदा उसके पुलिस स्टेशन से बाहर आने का इंतज़ार भी करते रहे.

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लोगों की मदद कर मिलती है खुशी
उल्हास के मुताबिक, लोगों की मदद की नियत से उन्होंने ऐसा किया. बैंक से उन्होंने और उनके पिता ने कैश निकाला था और अब उनके पास सिर्फ साढ़े 4 हज़ार कैश बाकी रह गया है. लेकिन, लोगों की मदद करके उन्हें बेहद ख़ुशी है. उसके मुताबिक, 'लोगों ने मुझसे कोई सवाल-जवाब नहीं किया और नई नोट बिना बैंक की लाइन में लगे हासिल करने पर उनके चेहरों को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था की वो कितना खुश थे.'

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