
रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने के लिए देश में 18 लाख आइसोलेशन बेड हैं. उन्होंने कहा कि 5 लाख ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड हैं और करीब डेढ़ लाख ICU बेड हैं, लेकिन सवाल है कि इन बेड पर मरीजों का इलाज अपने आप तो हो नहीं जाएगा, इलाज करने वाले डॉक्टर कहां हैं?
हमारे देश की राजधानी दिल्ली में ही कई सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर पिछले 12 दिन से दोबारा हड़ताल पर हैं. ये वो डॉक्टर हैं, जिन्होंने डोनेशन देकर नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के दम पर एमबीबीएस की सीट और डिग्री हासिल की. ये वो डॉक्टर हैं जो सरकारी अस्पतालों में गरीब जनता, आम आदमी का इलाज करते हैं. ये वो डॉक्टर हैं जो देश के हेल्थ सिस्टम की रीढ़ की हड्डी हैं. ये खुद को भगवान कहलवाना पसंद नहीं करते, लेकिन कोरोना काल में इन्हीं डॉक्टरों को देवदूत बताया गया. ये डॉक्टर खुद पर फूल बरसवाना नहीं चाहते, लेकिन कोरोना के संकट में इन पर फूल बरसाया गया. अब यही डॉक्टर लाचार होकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
देश की राजधानी में ये सफदरजंग अस्पताल में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों से बातचीत की गई. पूछा गया कि आखिर हुआ क्या है? डॉक्टरों के हाथों में तख्तियां थीं जिसपर लिखा था कि शौक नहीं मजबूरी है, ये हड़ताल जरूरी है. फिर डॉक्टरों ने कहा कि प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस हमें घसीट क ले जाती रही, हमारे साथ बदलूकी की गई. अपने साथियों को बचाने की हमने कोशिश की तो चोटें भी आईं. उन्होंने बताया कि कई डॉक्टरों को हिरासत में ले लिया गया और उनके खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है.
डॉक्टरों की हड़ताल से क्या-क्या बंद
राजधानी दिल्ली में सफदरजंग समेत कई अस्पतालों के डॉक्टरों की हड़ताल के 12 दिन बीत चुके हैं. हिंदू राव अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टरों ने इमरजेंसी सर्विस बंद कर दी है. कस्तूरबा गांधी अस्पताल के डॉक्टरों ने हेल्थ सर्विस पूरी तरह बंद कर दी है. राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोक नायक अस्पताल के डॉक्टर भी प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के साथ आ गए हैं. जीबी पंत और डीडीयू अस्पातल के डॉक्टर भी उनके समर्थन में हैं. 12 दिन तो चाचा नेहरू चिल्ड्रन हॉस्पिटल के दरवाजे भी बंद करने पड़े. यहां के भी डॉक्टर हड़ताल में साथ आ गए.
दरअसल, डॉक्टरों का आरोप है कि हड़ताल के 11वें दिन वे सुप्रीम कोर्ट की तरफ मार्च करने जा रहे थे. आरोप है कि आईटीओ के पास डॉक्टरों पर पुलिस ने कार्रवाई की. फिर शाम को स्वास्थ्य मंत्री के घर की तरफ जाते डॉक्टरों को रोका गया. इसके बाद डॉक्टर सरोजिनी नगर पुलिस स्टेशन के बाहर रात में धरना देकर बैठ गए.
27 नवंबर को हुई थी आंदोलन की शुरुआत
प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि वे सभी सरकारी अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टर हैं. जिनके पास MBBS डिग्री पहले से है. ये अस्पताल में काम करते हुए एमडी, एमएस जैसे पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल करने में जुटे रहते हैं. किसी भी अस्पताल में रेजीडेंट डॉक्टर के तीन बैच होते हैं. अभी प्रदर्शन करने वाले ज्यादातर डॉक्टर सेकंड ईयर बैच के हैं. दरअसल, डॉक्टर कोई पहली बार हड़ताल नहीं कर रहे हैं. रेजीडेंट डॉक्टर्स ने अपनी मांग के आंदोलन की शुरुआत 27 नवंबर को ही कर दी थी. बीच में स्वास्थ्य विभाग से आश्वासन मिलने पर 16 दिसंबर तक डॉक्टर शांत हो गए थे. फिर 17 दिसंबर से आंदोलन करने के लिए लाचार हो गए.
डॉक्टरों ने बताया कि अभी मरीजों को लंबी लाइन लगाकर इंतजार करना पड़ता है. डॉक्टर पूरा समय लगाकर भी मरीजों को नहीं देख पाते हैं. सरकार अगर जल्दी काउंसलिंग करा देगी तो सरकारी अस्पतालों में 42 हजार नए डॉक्टर तुरंत पहुंच जाएंगे जिससे हर मरीज को ज्यादा समय डॉक्टर दे पाएंगे. इसे आसान भाषा में समझाएं तो फर्स्ट ईयर, सेकंड ईयर और थर्ड ईयर, तीन साल के रेजिडेंट डॉक्टर अस्पताल में मरीजों का प्रमुखता से इलाज करते हैं, नीट पीजी काउंसलिंग लटकने से साल भर से फर्स्ट ईयर का नया बैच नहीं आया है. थर्ड ईयर वाले रेजीडेंट डॉक्टर अपने अगले परीक्षा की तैयारी में जुट चुके हैं. ऐसे में अभी सरकारी अस्पतालों में इलाज का बोझ सेकंड ईयर के रेजीडेंट डॉक्टर पर आ गया है. यानी जहां 100 डॉक्टर इलाज के लिए होते थे. दावा है कि वहां अभी घटकर 30 से 40 ही रह जा रहे हैं, इसीलिए डॉक्टरों ने आंदोलन का सहारा लिया. उधर, मंगलवार को प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों ने स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया से मुलाकात की. स्वास्थ्य मंत्री ने पुलिस की कार्रवाई पर खेद जताया और जल्द ही नीट पीजी काउंसिलिंग कराने का भरोसा दिया.
डॉक्टरों ने बताया कि मई में डॉक्टरों की नीट पीजी 2021 की परीक्षा होनी थी. कोविड की दूसरी लहर के कारण सितंबर तक परीक्षा नीट पीजी की स्थगित रही. दो बार टालने के बाद सितंबर में नीट पीजी की परीक्षा हो गई. सितंबर में रिजल्ट भी आ चुका है, लेकिन नीट पीजी काउंसलिंग ना होने से डॉक्टरों का नया बैच ही अस्पताल में नहीं आया. काउंसलिंग लटकने का कारण अदालत में मामला फंस जाना है. दरअसल जुलाई में केंद्र सरकार ने नीट पीजी सीट में कमजोर आर्थिक वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने का एलान किया. इस बीच आरक्षण नीति को चुनौती देने के लिए मामला अदालत में पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 6 जनवरी को होनी है.
आजतक ब्यूरो