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दिल्ली भी जीत ली... अब पीएम मोदी के लिए क्या बाकी रह गया है?

कहा जाता है कि बीजेपी उस राज्य में तब तक लगी रहती है कि जब तक की उसे जीत न मिल जाए. कई राज्यों में उसका उदाहरण देखने को मिला है. हार की समीक्षा, फिर नई ताकत के साथ चुनाव में जुट जाना, ये बीजेपी की कामयाबी का मंत्र है.

PM Narendra Modi PM Narendra Modi
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 08 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST

अब तो दिल्ली भी जीत ली, वो दिल्ली जो बीजेपी को पिछले करीब ढ़ाई दशक से चिढ़ा रही थी. साल 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की लहर उठी, राज्य-दर-राज्य कमल खिलता गया. इस बीच 2015 में दिल्ली का विधानसभा चुनाव हुआ और अरविंद केजरीवाल की आंधी के आगे BJP कहीं ट‍िक नहीं पाई. 70 में से 67 सीटों पर झाड़ू चल गई, बीजेपी के लिए ये बड़ी हार थी. क्योंकि ठीक एक साल पहले यानी 2015 में पार्टी को इसी दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. 

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2015 में आम आदमी पार्टी (AAP) को दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिली थी. इस जीत से केजरीवाल का कद इतना बढ़ गया था कि वो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विस्तार करने लगे. वहीं, केजरीवाल की ये कामयाबी सीधे-सीधे पीएम मोदी के लिए एक चुनौती थी, क्योंकि बीजपी का विजय रथ दिल्ली में आकर थम गया था. साल 2015 में देश के कई राज्यों में चुनाव हुए और बीजेपी को शानदार जीत मिली. साल 2018 में बीजेपी की देश के 15 राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी. लेकिन दिल्ली में बीजेपी जमीन पर पकड़ नहीं बना सकी थी. 

पीएम मोदी की अगुवाई में 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर बीजेपी को बंपर जीत मिली, 303 सीटों पर कमल खिला. पीएम मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी. क्योंकि 2014 के मुकाबले 2019 में BJP को ज्यादा सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में भी दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत हुई. लगा कि अब बीजेपी के लिए दिल्ली की राह थोड़ी आसान होगी, क्योंकि पीएम मोदी बंपर जीत के साथ दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे.एक कसक थी कि दिल्ली में आखिर जिस बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलते हैं, वो विधानसभा चुनाव में कोई करिश्मा क्यों नहीं कर पाती है. 

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मजबूत रणनीति के साथ 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उतरी, सामने फिर अरविंद केजरीवाल थे. बीजेपी ने कोई CM का चेहरा नहीं दिया, क्योंकि पीएम मोदी के चेहरे पर राज्य-दर-राज्य कमल खिल रहा था. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कुछ नहीं बदला, पीएम मोदी का विजय रथ एक बार फिर दिल्ली में रुक गया. अरविंद केजरीवाल के आगे बीजेपी की रणनीति पूरी तरह से फेल हो गई. एक मोर्चे पर केजरीवाल थे, तो दूसरा मोर्चा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभाले हुए थे. इस चुनाव में बीजेपी बुरी तरह से हारी. AAP को 70 में से 62 सीटों पर बंपर जीत मिली. केजरीवाल के लिए ये जितनी बड़ी जीत थी, बीजेपी के लिए उतनी बड़ी हार. खुद पीएम मोदी के लिए एक झटका था कि आखिर कब जाकर दिल्ली में बीजेपी का सूखा खत्म होगा. क्योंकि आखिरी बार दिल्ली में साल 1993-1998 में बीजेपी की सरकार थी.

2020 में प्रचंड जीत के साथ केजरीवाल पीएम मोदी को सीधी चुनौती देने तैयारी में जुटे. गुजरात, गोवा, हिमाचल, उत्तराखंड और पंजाब में अरविंद केजरीवाल चुनावी ताल ठोकने लगे, सामने फिर बीजेपी थी. इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब रही. केजरीवाल का कद लगातार बढ़ता जा रहा था, राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी और अरविंद केजरीवाल आमने-सामने नजर आने लगे. क्योंकि लगातार तीसरी बाद दिल्ली की कुर्सी पर केजरीवाल काबिज हो चुके थे. साल 2015 और 2020 में दिल्ली में AAP की जीत ने बीजेपी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया था क‍ि आखिर पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी दिल्ली फतह क्यों नहीं कर पा रही है.      
 
कहा जाता है कि बीजेपी उस राज्य में तब तक लगी रहती है कि जब तक की उसे जीत न मिल जाए. कई राज्यों में उसका उदाहरण देखने को मिला है. हार की समीक्षा, फिर नई ताकत के साथ चुनाव में जुट जाना, ये बीजेपी की कामयाबी का मंत्र है. ओडिशा में इसी तरह से बीजेपी को जीत मिली. पश्चिम बंगाल में भी लगातार बढ़ता जनाधार एक उदाहरण है, इसके अलावा दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी बीजेपी अपनी मौजूदगी चुनाव-दर-चुनाव बढ़ा रही है. हालांकि, दक्षिण भारत के कई राज्यों में बीजेपी ने शून्य से सफर की शुरुआत की है, और धीरे-धीरे कामयाबी की सीढ़ी चढ़ रही है. इस कामयाबी का सबसे बड़ा श्रेय पीएम मोदी को जाता है, क्योंकि वो देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा हैं. 

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लेकिन कहा जाता था, कि जिस पीएम मोदी ने पूरे देश में भगवा लहरा दिया. वो दिल्ली में केजरीवाल की तोड़ क्यों नहीं निकाल पाते. खुद पीएम मोदी को भी ये अहसास होता होगा कि आखिर कहां कसर रह जाती है. क्योंकि विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता केजरीवाल को गले लगा लेती थी और बीजेपी का ठुकरा देती. लेकिन उदाहरण ये भी दिया जाता है कि दिलवालों की दिल्ली है, और जब दिल्लीवाले जिसे जिताते हैं तो दिल खोलकर जिताते हैं. साल 2015 और 2020 में दिल खोलकर झाड़ू का साथ दिया, और अब दिल खोलकर बीजेपी की झोली भर दी है. करीब 27 साल के बाद दिल्ली की सत्ता पर बीजेपी की वापसी हुई है, लेकिन इस जीत का सेहरा पीएम मोदी के सिर सजने वाला है. इंतजार लंबा था. लेकिन अब तो दिल्ली भी जीत ली है.. अब पीएम मोदी के लिए क्या बाकी रह गया है?

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