
कोविड की दूसरी लहर में गंभीर रूप से बीमार और आइसोलेशन में रह रहे लोग सोशल मीडिया, व्हाट्सअप के जरिए ऑक्सीजन मांग रहे हैं. इसकी खपत भी ज्यादा बढ़ गई है. लेकिन सिलेंडर नहीं मिल रहे हैं. हालात इतने चिंताजनक हो गए हैं कि अब सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक, सभी को मामले पर सुनवाई करनी पड़ रही है. लेकिन इस संकट के बीच कहा जा रहा है कि PSA प्लांट लगाने से देश की काफी हद तक ऑक्सीजन की किल्लत दूर हो सकती है.
PSA प्लांट ऑक्सीजन किल्लत खत्म कर देंगे?
एसोचैम के प्रेसिडेंट विनीत अग्रवाल ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में 5 प्रतिशत में भी ये प्लांट नहीं हैं. अगर ये सभी के पास होता और लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन बैक अप के लिए रखते तो आज ऑक्सीजन के अभाव में लोगों की मौत नहीं होती. PSA प्लांट 4 हफ्ते में तैयार होता है, एक हफ्ते में लग जाता है. इसकी कॉस्ट है 40 से 50 लाख रुपए. सरकार की तरफ से हर अस्पताल में ये प्लांट होना जरूरी होना चाहिए.
दरअसल PSA PLANT (Pressure Swing Adsorption Oxygen plants) अधिकतर अस्पतालों में नहीं है. प्लांट की खासियत है कि ये गैस को गैस में ही कन्वर्ट करता है और हवा से ऑक्सीजन को लेकर सीधा अस्पतालों में पंप कर देता है. जबकि लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) बड़े प्लांट में कूलिंग मेथड से बनते हैं जिसे गैस से लिक्विड में बदला जाता है. उसके बाद क्रायो टैंकर के जरिए अस्पतालों के टैंक में डाला जाता है.
162 पीएसए प्लांट को मिली मंजूरी
लेकिन देश में ऑक्सीजन को प्लांट से अस्पतालों तक ले जाने वाले क्रायो टैंकर बहुत कम हैं, इस वजह से ट्रांसपोर्टेशन भी एक बड़ी समस्या बन गया है. आपको बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने 162 पीएसए प्लांट की मंजूरी राज्यों में लगने को दे दी है, जिससे 154 मीट्रिक टन ऑक्सीजन क्षमता बढ़ाई जा सकेगी. अब कितनी जल्दी ऐसे प्लांट हर अस्पताल में लग पाते हैं, ये अपने आप में बड़ा सवाल है. वैसे इस सिलसिले में लाइफ लाइन अस्पताल के डॉ. पीयूष यादव ने बड़ी बात कही है.
लाइसेंस के लिए वन विंडो सिस्टम लागू हो
वे कहते हैं कि क्लिनिकल इसटैब्लिशमेंट एक्ट 2010 में अस्पतालों से जुड़ा कानून भारत सरकार ने 2010 में बनाया जिसमें 2019 तक संशोधन होते रहे. 1A,1B,L2,L3 और 4 कैटिगरी के अस्पताल बनाए गए. L3 कैटिगरी में 200-500 बेड की क्षमता वाले मल्टीस्पेशिलिटी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल आते हैं लेकिन ब्लड बैंक के लिए अलग विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है और फार्मेसी के लिए अलग. हमारी मांग है कि हर तरह के लाइसेंस के लिए सरकार को वन विंडो सिस्टम कर देना चाहिए और अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाना कंपल्सरी हो जाना चाहिए.