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Reality Check: कोलकाता रेप से देश शर्मसार, जानें महिला डॉक्टर्स के लिए कितने सुरक्षित हैं दिल्ली के अस्पताल

आजतक की टीम ने 15 अगस्त की देर रात दिल्ली के कुछ जाने-माने सरकारी अस्पतालों का जायजा लिया. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि राजधानी के नामी सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया जैसे बड़े हॉस्पिटल में बदइंतजामी की डर्टी पिक्चर दिखी.

दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों का रियलिटी चेक दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों का रियलिटी चेक
नलिनी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 16 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:09 PM IST

कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में डॉक्टर से रेप और उसके बाद बेरहमी से हत्या ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. इस कांड ने सरकारी अस्पतालों में महिला डॉक्टरों और कर्मचारियों की सुरक्षा की पोल खोल कर रख दी है. ऐसे में आजतक ने 15 अगस्त की देर रात दिल्ली के कुछ जाने-माने सरकारी अस्पतालों का जायजा लिया. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि राजधानी के नामी सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया जैसे बड़े हॉस्पिटल में बदइंतजामी की डर्टी पिक्चर दिखी. 

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कहीं वॉशरूम इतनी गंदी हालत में मिले कि वहां जाना मुश्किल था. कहीं फ्लश खराब तो कहीं पानी की कमी. महिला डॉक्टरों के लिए कोई रेस्ट रूम तक नहीं है. अक्सर 24 से 36 घंटे तक ड्यूटी करने वाले ट्रेनी डॉक्टर की सुरक्षा राम भरोसे नजर आई. वहीं महिला डॉक्टरों ने अस्पताल की अंधियारी गलियारों में डर लगने तक की समस्या बयां की.

आजतक की टीम का पहला मध्य रात्रि पड़ाव दिल्ली का सफदरजंग अस्पताल था. यहां, ड्यूटी पर मौजूद एक रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि उनके पास महिला डॉक्टरों के लिए अलग से ड्यूटी रूम की कमी है. उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए लंबी शिफ्ट के दौरान आराम करने या आराम करने के लिए उनके पास कोई निजी क्षेत्र नहीं है. और वॉशरूम और शौचालय की हालत दयनीय है. वॉशरूम इस्तेमाल करने लायक नहीं. फ्लश काम नहीं करता. बाथरूम इतने गंदे होते हैं कि जाने का मन भी नहीं करता. 

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अस्पताल के गलियारों में रहता है अंधेरा: रेजिडेंट डॉक्टर

वहीं सफदरजंग अस्पताल की एक और महिला रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि रात में एक विभाग से दूसरे विभाग में जाना डरावना होता है. गलियारों में अंधेरा रहता है. हम डॉक्टरों को इस अंधेरे गलियारे से होकर मरीजों के लिए खून लाने के लिए ब्लड बैंक तक भागना पड़ता है. अगर आप एसएसबी बिल्डिंग की तरफ जाते हैं, तो पूरा रास्ता अंधेरा है. हम मरीजों की भीड़ से घिरे हुए हैं. कभी भी कोई भी अंदर आ सकता है. स्थिति बहुत खराब है. कोई भी आकर हमारे साथ कुछ भी कर सकता है. 

सफदरजंग अस्पताल के ही एक पुरुष रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि व्यावहारिक रूप से सोचें तो दो दिन का विरोध है. यहां भी दो दिन में एचओडी बोल देंगे, “ठीक है हो गया” और वापस फिर वही होगा. सच यही है. और हम फिर से उसी काम में लग जाएंगे. मेरी ड्यूटी 24 घंटे की थी. हमारी तो ड्यूटी रोज लग रही है. हमारे पास एक ड्यूटी रूम है, जिसमें एक बिस्तर है. हमारे पास 2-3 सीनियर रेजिडेंट और 2 जूनियर रेजिडेंट हैं. हम शिफ्ट के हिसाब से आराम करते हैं. कभी-कभी हम 1 घंटे के लिए सो जाते हैं. 

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राम मनोहर लोहिया का ऐसा है हाल

15 अगस्त की रात के करीब 2 बज आजतक की टीम राजधानी के बीचों-बीच प्रसिद्ध राम मनोहर लोहिया यानी आरएमएल अस्पताल पहुंची. यहां अति भीड़भाड़ वाले आपातकालीन वार्ड के बाहर मरीज के अटेंडेंट अंदर और बाहर हर जगह सोते मिले. यहां नए रोगियों के साथ एम्बुलेंस की निरंतर लाइन लगी रहती है. इन मरीजों को देखने वाले सभी डॉक्टरों के लिए आराम करने के लिए केवल 2 बिस्तरों वाला एक कमरा है और पुरुष और महिला डॉक्टरों के लिए कोई अलग शौचालय नहीं है. 

RML में पुरुष-महिला डॉक्टरों के लिए नहीं है अलग वॉशरूम

यहां एक रेजिडेंट डॉक्टर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि आपातकालीन विभाग अपेक्षाकृत सुरक्षित है. मरीज कभी-कभी चिल्लाते हैं और उन पर हमला करते हैं, लेकिन इसका ख्याल रखने के लिए एक गार्ड होता है. महिला रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि मैं आपातकालीन विभाग में तुलनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करती हूं. वहां एक गार्ड है. कभी-कभी मरीज आकर हम पर चिल्लाते हैं या हम पर हमला करते हैं, लेकिन इसके अलावा, आपातकालीन विभाग बेहतर है. रात की शिफ्ट के दौरान हम अस्पताल के अंदर ही रहते हैं. हम बाहर नहीं जाते. हम डॉक्टर के ड्यूटी रूम में आराम करते हैं और खाना खाते हैं. दो बेड वाला सिर्फ एक डीडीआर है. यह एक समस्या है. अंदर कोई अटैच्ड वॉशरूम नहीं है. पुरुष और महिला डॉक्टरों के लिए एक ही कमरा है.

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