
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जारी घमासान के बीच केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का पुतला फूंका गया है. दिल्ली के आरके पुरम सेक्टर-2 के अय्यप्पा टेंपल में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया. इस प्रदर्शन में छोटी बच्चियां भी शामिल हुईं. उनके हाथों में तख्तियों पर लिखा था कि वो 50 साल तक इंतजार कर सकती हैं.
प्रदर्शन में शामिल श्रद्धालुओं ने कहा कि विरोध के पीछे वर्षों की परंपरा और मान्यता है, जिसके तहत वही महिलाएं सबरीमाला मंदिर में अय्यप्पा के दर्शन करने जा सकती हैं, जिनकी उम्र 10 साल से कम और 50 साल से ज्यादा है. 10 से 50 साल के बीच की उम्र वाली महिलाएं, जो शारीरिक तौर पर मां बन सकती हैं, वो अय्यप्पा के दर्शन के योग्य नहीं मानी जाती हैं.
ऐसी महिलाओं को मंदिर में दर्शन के अयोग्य मानने के पीछे पुराना विश्वास और परंपरा है, जो प्राचीन है. दरअसल, सबरीमाला के श्रद्धालुओं की मान्यता है कि अय्यप्पा भगवान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जंगलों में जाकर बस गए थे. यही वजह है कि युवा लड़कियों का सबरीमाला में प्रवेश वर्जित था.
श्रद्धालु विनोद का कहना है कि 41 दिन के व्रतम को करने वाला ही अय्यप्पा का सच्चा उपासक माना जाता है और परंपरा के मुताबिक वही अय्यप्पा के दर्शन के योग्य भी माना जाता है. सबरीमाला मंदिर में किसी भी धर्म-जाति या फिर वर्ग से ताल्लुक रखने वाले लोग जा सकते हैं, पर शर्त ये है कि वो प्राचीन मान्यताओं पर खरे उतर रहे हों. 16 नवंबर से 14 जनवरी के दौरान जब मंदिर खुलता है, उस वक्त दर्शन करने और व्रतम रखने की केरल में विशेष मान्यता है.
बच्चे का जन्म भी अशुभ
अय्यप्पा ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले संत थे. लिहाजा व्रतम करने वाला नॉनवेज से दूर रहता है और शेव नहीं करता. अगर साधक के घर में बच्चे का जन्म हो जाए, तो 16 दिनों तक घर को अशुद्ध मानते हुए उसमें प्रवेश नहीं करता. किसी की मौत होने पर भी साधक घर में प्रवेश नहीं करता. सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध प्रदर्शन में शामिल श्रद्धालु विजय का कहना है कि हम आदेश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि प्राचीन विश्वास और परंपरा की रक्षा के लिए फैसले के रिव्यू की मांग कर रहे हैं.