
दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और आप नेता सत्येंद्र जैन को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. कोर्ट ने सत्येंद्र जैन को मिली अंतरिम राहत बरकरार रखी है. अगले आदेश तक अंतरिम जमानत पर बाहर ही रहेंगे जैन. मामले की अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी. मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में घिरे सत्येंद्र जैन को मई 2022 में गिरफ्तार किया गया था. इससे पहले उनसे 2017 से लेकर 2022 तक कई बार पूछताछ भी की गई थी. कोर्ट ने मेडिकल ग्राउंड पर उन्हें अंतरिम जमानत दी थी. हालांकि कोर्ट ने उन पर कई तरह की पाबंदियां भी लगाई थीं. इनमें मीडिया से बातचीत भी शामिल है.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में AAP नेता सत्येन्द्र जैन को मिली राहत सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है. कोर्ट ने जैन को मिली अंतरिम जमानत आगे बढ़ाते हुए सुनवाई की अगली तारीख 17 जनवरी तय कर दी है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच मे ED की ओर से ASG एस वी राजू ने कोर्ट को बताया कि जेपी मोहता उनके CA थे. उन्होंने ही कंपनियों का प्रबंधन किया था. हमारा मामला यह है कि वो नकदी को सफेद धन में बदलना चाहते थे.
ASG राजू ने कहा कि मोहता ने जैन को बताया था कि उनका कलकत्ता में कुछ कनेक्शन है. वहां से निवेश किया जाएगा. कुछ ब्याज दिया जाएगा. यह सभी शेल कंपनियां हैं. यही केस का मुख्य बिंदु है.
जस्टिस त्रिवेदी ने ED से पूछा कि तो आप यह कहना चाहते हैं कि शेयर बढ़ाने से उनको लाभ मिला. वहीं जस्टिस पंकज मित्थल ने पूछा - लेकिन जैन कभी भी कंपनी के निदेशक नहीं रहे. ASG ने अपने जवाब मे कहा कि सत्येन्द्र जैन ही वास्तव मे कम्पनी के प्रभारी थे. अंकुश और वैभव जैन केवल डमी ही थे. उन्हें बैक-डेटेड दस्तावेजों के माध्यम से नियुक्त किया गया था. कोर्ट ने पूछा कि हमें बताएं कि वह कैसे काम करते थे?
ASG एसवी राजू ने कोर्ट को बताया कि वह हवाला के जरिए काम करते थे. उन्होंने कहा कि अगर आप कोलकाता से धन दिल्ली भेजना चाहते हैं तो वाहक को पता नहीं चलेगा. बस एक करेंसी नोट दिखाना होगा. असल में अंकुश और वैभव जैन ने सत्येन्द्र जैन के बकाए पर कर का भुगतान किया है. उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसा क्यों होगा जब तक कि पैसा सत्येन्द्र जैन का न हो? यह एक आपस में जुड़ा हुआ परिवार है.
बता दें कि 24 अगस्त 2017 को CBI ने सत्येंद्र जैन और अन्य लोगों के खिलाफ IPC की धारा 109 और प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया था. ये मामला आय से अधिक संपत्ति का था. दिसंबर 2018 में CBI ने चार्जशीट दाखिल की थी. इसमें बताया गया कि 2015 से 2017 के बीच पद पर रहते हुए सत्येंद्र जैन की संपत्ति में इजाफा हुआ है.
CBI ने बताया था कि सत्येंद्र जैन के पास उनके ज्ञात स्रोत से हुई कमाई से 200 फीसदी से ज्यादा संपत्ति है. CBI की FIR के आधार पर ED ने भी सत्येंद्र जैन के खिलाफ केस दर्ज किया. ED ने अपनी जांच में कथित तौर पर पाया था कि सत्येंद्र जैन और उनके परिवार के मालिकाना हक और नियंत्रण वाली कंपनियों को हवाला के जरिए पैसा मिला. इसका इस्तेमाल जमीन खरीदने के लिए किया गया.
सत्येंद्र जैन पर मनी लॉन्ड्रिंग के क्या आरोप?
ED ने चार कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की थी. ये कंपनियां पर्यास इन्फोसॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड, इंडो मेटल इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड, अकिंचन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड और मंगलायतन प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड हैं. इन कंपनियों में सत्येंद्र जैन और उनके परिवार के सदस्य शेयरहोल्डर्स हैं. ED के मुताबिक, विधायक बनने से पहले सत्येंद्र जैन इनमें से तीन कंपनियों में डायरेक्टर थे, जबकि सभी चारों कंपनियों में उनके परिवार की हिस्सेदारी थी. इन कंपनियों ने 2010 से 2012 के बीच 11.71 करोड़ रुपये की रकम की हेराफेरी की. इसके अलावा 2015-16 में जब सत्येंद्र जैन विधायक थे, तब 4.63 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई.
आरोप है कि सत्येंद्र जैन ने अपने कर्मचारियों और एसोसिएट्स के जरिए ये पूरा पैसा नकद में कोलकाता स्थित शेल कंपनियों के एंट्री ऑपरेटर्स को दिया. इसके बाद इन ऑपरेटर्स ने इन्वेस्टमेंट के रूप में इस पैसे को इन चारों कंपनियों में लगाया. इन चारों कंपनियों पर कथित तौर पर सत्येंद्र जैन का कंट्रोल था. हालांकि, 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने इन कंपनियों के डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया था. बाद में यही पैसा शेल कंपनियों के जरिए शेयर खरीदने के लिए इन्वेस्टमेंट के रूप में आया. इस पैसे से 2010-11 और 2013-14 में 27.69 करोड़ रुपये की खेती की जमीन खरीदी गई थी.