Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा मध्य प्रदेश HC का फैसला, महिलाओं के खिलाफ अपराध पर गाइडलाइंस जारी

हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ के एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त रखी थी. जिसके बाद कोर्ट के इस फैसले को 9 महिला वकीलों ने चुनौती दी थी.

supreme court of India supreme court of India
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 8:34 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट ने बदला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला
  • कोर्ट अपनी तरफ से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव ना दे

देश भर में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और निचली अदालतों की टिप्पणियों के आधार पर एक गाइडलाइन तैयार की है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में महिलाओं के खिलाफ अपराध पर गाइडलाइन तय करते हुए मध्य प्रदेश के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दी गई थी. 

Advertisement

बता दें कि हाल ही में मध्य प्रदेश की हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ के मामले में आरोपी को जमानत देते हुए पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त रखी थी. जिसके बाद कोर्ट के इस फैसले को नौ महिला वकीलों ने चुनौती दी. महिला वकीलों ने कहा कि यह फैसला कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है. वहीं अटॉर्नी जनरल ने भी इस फैसले को निंदनीय बताया था. 

 

महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन- 

  • आरोपी को जमानत देने के पहले कोर्ट पीड़ित को पूरा संरक्षण सुनिश्चित करें. कोई जरूरी नहीं कि पीड़ित और आरोपी के बीच मेल मिलाप की शर्त रखी जाए. 
  • अगर आरोपी की ओर से दबाव बनाने की रिपोर्ट पुलिस की ओर से मिले तो कोर्ट को साफ तौर पर आरोपी को आगाह कर देना चाहिए कि वो किसी भी सूरत में पीड़ित से कोई संपर्क नहीं करेगा.
  • सभी मामलों में जमानत देने के साथ ही शिकायतकर्ता को सूचित किया जाए कि आरोपी को जमानत दे दी गई है. साथ ही जमानत की शर्तों की प्रति भी दो दिनों के भीतर मुहैया करा दी जाए. 
  • हर एक मामले में जमानत मंजूर करने की शर्तें तय करने लिए एक ही स्टीरियो टाइप एप्रोच न अपनाई जाए. 
  • कोर्ट अपनी तरफ से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव ना दे. अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा पता होनी चाहिए. उस लक्ष्मण रेखा से बाहर ना जाएं. 
  • संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए. जिरह बहस, आदेश और फैसले में हर जगह पीड़ा का अहसास कोर्ट को भी रहना चाहिए. खास कर जज अपनी बात रखते समय ज्यादा सावधान, संवेदनशील रहें ताकि पीड़ित का आत्मविश्वास न डगमगाए और ना ही कोर्ट की निष्पक्षता पर कोई असर पड़े.


 

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement