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बंदरों को पकड़ने में नगर निगम फेल, HC में खड़े किए हाथ

एसडीएमसी ने कहा हमने बंदरों को पकड़ने के लिए कई कोशिशें की हैं. इतना ही नहीं आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान के वन्यजीव विभाग से भी बंदरों को पकड़ने वाले देने की गुजारिश की है. लेकिन इन राज्यों से भी कोई जवाब नहीं मिला.

बंदर बंदर
पूनम शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 4:14 AM IST

दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने इलाके में बंदरों को पकड़ने के मामले मे हाथ खड़े कर दिए हैं. एसडीएमसी ने हाई कोर्ट मे गुहार लगाई है कि बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के वन विभाग को सौंप दी जाए. हाई कोर्ट ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 27 फरवरी की तारीख तय की है.

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नहीं मिल रहे बंदर पकड़ने वाले
एसडीएमसी ने अपनी याचिका में कहा है कि वन विभाग के पास बंदर पकड़ने का अधिकार है, ऐसे में उसे ही यह जिम्मेदारी सौंप दी जाए. इसके पीछे एसडीएमसी का तर्क है कि बंदरों को पकड़ने के लिए प्रशिक्षितों के लिए कई बार समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए गए, लेकिन कई विज्ञापन देने के बाद भी किसी ने संपर्क नहीं किया. पहले बंदर पकड़ने के लिए 800 रुपये तय थे और यह राशि भी बढ़ाकर 1200 रुपये कर दी, लेकिन कोई भी बंदर पकड़ने के लिए तैयार नहीं है.

एसडीएमसी ने कहा हमने बंदरों को पकड़ने के लिए कई कोशिशें की हैं. इतना ही नहीं आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान के वन्यजीव विभाग से भी बंदरों को पकड़ने वाले देने की गुजारिश की है. लेकिन इन राज्यों से भी कोई जवाब नहीं मिला.

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बंदर बने परेशानी का कारण
गौरतलब है कि वर्ष 2007 में हाई कोर्ट ने तीनों नगर निगम को बंदरों को पकड़ने और उन्हें असोला फॉरेस्ट एरिया में छोड़ने के निर्देश दिए थे. एसडीएमसी ने हाई कोर्ट से 14 मार्च 2007 को दिए फैसले में संशोधन कर अब ये काम वन विभाग को देने का अनुरोध किया है. एसडीएमसी ने कोर्ट को कहा है कि बंदर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के दायरे में आते है ऐसे में वही इसे पकड़ सकते है. याचिका मे ये भी कहा गया है कि जिन बंदरों को असोला भाटी फॉरेस्ट एरिया में छोड़ा गया वो बंदर आसपास की आवासीय इलाकों के लोगों के लिए परेशानी खड़ा कर रहे हैं.

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