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शीला दीक्षित ने कांग्रेस को दी थी संजीवनी, बुलंदी पर पहुंचाया

शीला दीक्षित का निधन ऐसे समय हुआ है, जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव के मुहाने पर है. पार्टी को उम्मीद थी कि शीला 1998 का इतिहास दोहराते हुए कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाएंगी. लेकिन चुनाव से पहले ही शीला सबकी आंखें नम कर चली गईं.

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित (फाइल फोटो) दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 5:48 PM IST

  • दिल्ली में कांग्रेस की कमान ऐसे समय में संभाली थी, जब प्रदेश में पार्टी संघर्ष कर रही थी
  • जब दिल्ली की सत्ता संभाली थी, तब सरकार और कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां थीं
  • सन 2013 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद शीला को कांग्रेस में हाशिए पर धकेल दिया गया

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित का शनिवार को निधन हो गया. शीला दीक्षित का निधन ऐसे समय हुआ है, जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव के मुहाने पर है.

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चंद महीनों बाद ही इस केंद्र शासित राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. पार्टी को उम्मीद थी कि शीला 1998 का इतिहास दोहराते हुए कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाएंगी. लेकिन चुनाव से पहले ही शीला सबकी आंखें नम करा कर चली गईं.

लोकसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस को शीला ने संजीवनी दी. उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते कांग्रेस ने हालिया लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था.

शीला दीक्षित ने स्वयं भी विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के खिलाफ पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. हालांकि वह स्वयं भी चुनाव हार गईं और कांग्रेस खाता खोलने में भी विफल रही. लेकिन पार्टी साउथ दिल्ली संसदीय क्षेत्र को छोड़कर सभी छह सीटों पर दूसरे स्थान पर रही.

कांग्रेस को बुलंदी पर पहुंचाया

शीला दीक्षित ने दिल्ली में कांग्रेस की कमान ऐसे समय में संभाली थी, जब प्रदेश में पार्टी संघर्ष कर रही थी. दिल्ली राज्य की सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी काबिज थी. भाजपा के शासनकाल में दिल्ली के तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले गए.

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ऐसे समय में दिल्ली की कठिन चुनौती स्वीकार की. शीला के नेतृत्व में कांग्रेस विपक्षी भाजपा को चुनावी दंगल में पटखनी देकर सत्ता पर काबिज हुई.

दिल्ली की सत्ता पर 15 वर्ष तक जमाए रखे पांव

शीला दीक्षित ने जब दिल्ली की सत्ता संभाली थी, तब सरकार और कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां थीं. सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल के साथ दिल्ली की विकास यात्रा को रफ्तार दी. उन्हें आधुनिक दिल्ली का शिल्पकार भी कहा जाता है.

जिसका नतीजा यह रहा कि शीला दीक्षित दिल्ली की सत्ता पर अंगद के पैर की तरह जमी रहीं. विपक्षी भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की, लेकिन दिल्ली की गद्दी से महरूम ही रहना पड़ा.

हार के बाद कांग्रेस ने नेपथ्य में धकेला, फिर बुलाना पड़ा

सन 2013 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद शीला को कांग्रेस में हाशिए पर धकेल दिया गया. पार्टी ने उन्हें राज्यपाल बनाकर राजनीति से नेपथ्य में भेज दिया था.

शीला ने पार्टी के इस फैसले को भी सर-माथे पर लिया. शीला राज्यपाल बनकर दिल्ली की राजनीति से दूर हो गईं. लेकिन उनके बाद पार्टी की कमान संभालने वाले अजय माकन और अरविंदर सिंह लवली पार्टी को मजबूत करने में नाकामयाब रहे.

पार्टी के लगातार खराब प्रदर्शन और 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के 2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पूर्व कांग्रेस को शीला दीक्षित की याद आई.

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पार्टी ने उन्हें एक समय मुख्यमंत्री पद का अपना उम्मीदवार तक घोषित कर दिया था. हालांकि सपा से गठबंधन के बाद उनकी उम्मीदवारी पार्टी ने वापस ले ली थी. बाद में उन्हें दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंप दी गई और इसके अच्छे परिणाम भी सामने आए.

शीला के नेतृत्व में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी AAP को पछाड़ते हुए तीसरे से दूसरे नंबर पर आ गई.  81 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाली शीला दीक्षित ने उस उम्र में भी दिल्ली कांग्रेस को कठिन दौर से उबारने की कठिन चुनौती स्वीकार की, जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट के बाद आराम कर रहे होते हैं.

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