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दिल्ली नगर निगम (Municipal Corporation of Delhi) चुनाव बेहद नजदीक आ गए हैं. जल्द ही राजधानी की नई शहर सरकार के लिए मतदान होगा. इस बीच दिल्ली के आम नागरिकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं, कि जब कई फैसलों में उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी है, कुछ फैसले नगर-निगम लेता, कई मामलों में राज्य सरकार के पास शक्तियां हैं, जबकि पुलिस समेत कई शक्तियां केंद्र सरकार के पास हैं तो आखिर दिल्ली का असली बॉस कौन है?
दरअसल, दिल्ली में अगर किसी पार्क के पेड़ों की छटाई भी करवानी है तो इसकी अनुमति पहले दिल्ली सरकार के वन विभाग से मिलती है, फिर जाकर एमसीडी वाले पेड़ की छंटाई कर सकते हैं. दिल्ली के पूर्ण राज्य नहीं होने से दिल्ली वालों को प्रशासनिक समस्या से जूझना पड़ता है. दिल्ली में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के साथ-साथ दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का शासन चलता है.
पूर्ण राज्य का दर्जा ना होने की वजह से दिल्ली नगर निगम को केंद्र सरकार, उपराज्यपाल के माध्यम से चलाती है. यही वजह है, चुनी हुई दिल्ली की सरकारें असहज महसूस करती हैं और नियंत्रण पाने के लिए केंद्र पर दबाव बनाती हैं. इसका खामियाजा दिल्ली के लोगों को भुगतना पड़ता है. दिल्ली नगर निगम भारत का सबसे बड़ा निगम है. इसलिए केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार इस पर नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं, हालांकि दिल्ली नगर निगम अधिनियम संसद के जरिए पारित होता है. इसलिए केंद्र सरकार नियंत्रण के लिए जो शक्ति चाहती है, वह अधिनियम में शामिल कर लेती है.
दिल्ली नगर निगम आर्थिक रूप से स्वावलंबी नहीं है, इसलिए अनुदान आर्थिक सहायता और लोन के लिए उसे केंद्र और दिल्ली सरकार की तरफ देखना पड़ता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सरकार के पास दिल्ली पुलिस नहीं है, लेकिन नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली छावनी को छोड़कर प्रशासनिक रूप से पूरी दिल्ली, दिल्ली सरकार का कार्यक्षेत्र मानी जाती है.
दिल्ली में जब विधानसभा नहीं थी, तब समितियों का कार्यकाल ज्यादा रहा. समितियों का फोकस दिल्ली सरकार को अधिकार दिलाना था. इसलिए समितियों ने दिल्ली को विधानसभा देने की पेशकश की. कई समितियों ने दिल्ली के अधिकारों को लेकर अपना-अपना मत दिया. लैंड, सर्विसेज और लॉ एंड आर्डर अभी केंद्र सरकार के पास ही है. वित्त आयोग ने वक्त-वक्त पर खस्ताहाल निगम को उबारने के लिए कई पेशकश कीं.
क्षेत्रफल की दृष्टि से दिल्ली नगर निगम विश्व में सबसे बड़ा निगम है. लेकिन जनसंख्या की दृष्टि से इसकी गिनती टोक्यो के बाद होती है. करीब डेढ़ लाख कर्मचारियों वाले निगम का वार्षिक बजट हजारों करोड़ में है. ज्यादा निगम का मतलब है, ज्यादा खर्चा, ज्यादा नौकरशाह और ज्यादा जटिललता. इसलिए इस साल 22 मई को तीनों निगमों को एक कर दिया गया.
एमसीडी का हाउस यानि सदन यानी सदन उपराज्यपाल से ज्यादा पावरफुल है. किसी भी प्रस्ताव को सदन अप्रूव करके पारित करता है. हाउस को एमसीडी कमिश्नर तक को हटाने का अधिकार है. यानी सदन सबसे पावरफुल है. एलजी, कमिश्नर, मेयर से ज्यादा ताकतवर हाउस को केंद्र सरकार भी कोई डायरेक्शन सीधे नहीं दे सकती. केंद्र भले ही अपने अफसर एमसीडी में लगने को भेज दे फिर भी डीएमसी एक्ट के तहत निगम की अप्वाइंटमेंट कमिटी जब तक अप्रूव नहीं करती, तब तक वो फैसला अधर में ही रहता है.
निगम मामलों के जानकार जगदीश ममगाई बताते हैं कि 2002 से 2007 तक निगम में कांग्रेस की सरकार थी 2004 में केंद्र में वाजपेई सरकार आ गई थी. तब दिल्ली के तत्कालीन एलजी विजय कपूर और दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित में तकरार चलती थी, लेकिन एमसीडी में उस वक्त दोनों कोई खास दखल नहीं दे पाए. एमसीडी ने अपने तरीके से काम किया. साफ है कि दिल्ली सरकार से उलट किसी भी फाइल को एमसीडी को एलजी को भेजना जरूरी नहीं है.
हाउस की प्रोसिडिंग के दौरान ये पाया गया कि मेयर के हाउस में आते ही कमिश्नर खड़ा हो जाता है. मेयर या महापौर, कमिश्नर को अपने पास तलब कर सकता है. हालांकि प्रशासनिक और आर्थिक शक्ति कमिश्नर के पास है. निगम के अधिकारियों की पोस्टिंग ट्रांसफर और अपॉइंटमेंट कमिश्नर करता है. यानी सदन की बनाई नीतियों को पालन कराने का काम कमिश्नर करता है. सदन प्रस्ताव करता है और निर्देश देता है क्रियान्वयन का काम कमिश्नर ही करेगा.
बता दें कि हाउस कमिश्नर की हर बात को बदल सकता है, हाउस कमिश्नर को हटा सकता है, लेकिन व्यावहार में किसी वॉर्ड में कमिश्नर अगर वार्ड कर्मचारी ना दे तो सदन में पार्षद सिर्फ इसके लिए हंगामा भर कर सकते हैं. दिल्ली सरकार एमसीडी कमिश्नर को समन कर सकती है. सेंट्रल गवर्नमेंट के अंतर्गत होते हुए भी जो फाइल केंद्र को जानी है वो दिल्ली सरकार से होकर जायेगी.
समिति के सुझाव पर पूरी दिल्ली को 12 जोन में बांटा गया है और निगम में पड़ने वाले 67 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्येक में दो के हिसाब से पार्षदों की संख्या 100 से बढ़ाकर 134 हुई. समिति ने मुख्य सड़कें भवन उप नियमों को लागू करने के काम केंद्र सरकार के दिशा निर्देश में करने का सुझाव दिया.
दिल्ली नगर निगम को बांटने तथा दिल्ली सरकार का नियंत्रण बढ़ाने के पक्ष में नजर आई. 74 वें संविधान संशोधन की शक्ति एवं भावना के विपरीत शिक्षा स्वास्थ्य और स्लम जैसे महत्वपूर्ण विभागों को निगम से छीन कर दिल्ली सरकार की झोली में डालने की पैरवी करती नजर आई.
राष्ट्रीय राजधानी की दिल्ली सरकार ने भी दिल्ली नगर निगम पर नियंत्रण और पुनर्गठन के लिए कई समितियां गठित की वीरेंद्र प्रकाश समिति दिल्ली नगर निगम को तोड़कर छोटी इकाइयों में बदलने के लिए बनाई गई. दीपचंद बंधु और जगदीश सागर समिति भी दिल्ली नगर निगम पर दिल्ली सरकार के प्रभावी नियंत्रण के लिए गठित की गई. बालकृष्ण कमेटी वीरेंद्र प्रकाश कमेटी द्वितीय वित्त आयोग ने छोटी-छोटी निगम इकाई बनाने की वकालत की उनकी राय में दिल्ली जैसे बड़े शहर में एक निगम का प्रबंधन टेढ़ी खीर है.
दिल्ली नगर निगम का चुनाव राज्य आयोग कराता है. और चुनाव करवाने वाले अधिकारी और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नगर-निगम के प्रशासक दिल्ली के एलजी करते हैं. महापौर को दिल्ली का प्रथम नागरिक कहते हैं, निगम की अप्रैल महीने की पहली बैठक में महापौर का चुनाव होता है. महापौर का पद पहले साल महिला और तीसरे साल अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. महापौर का चुनाव 250 निगम पार्षद 10 सांसद एवं विधानसभा अध्यक्ष द्वारा मनोनीत 14 विधायक यानी कुल 274 मतदाता करते हैं.
चुनाव कराने के लिए उपराज्यपाल एक पार्षद को पीठासीन अधिकारी नियुक्त करते हैं. उप महापौर स्थाई समिति शिक्षा समिति दिल्ली विकास प्राधिकरण दिल्ली जल बोर्ड दिल्ली आश्रय सुधार बोर्ड विशेष व तदर्थ समितियों के सदस्यों का चुनाव महापौर कराते हैं. सदन की बैठक की अध्यक्षता महापौर करते हैं. स्लम अनुदान और नामकरण समिति के पदेन अध्यक्ष होते हैं.
निगम सदन की बैठक की तारीख महापौर के जरिए निश्चित की जाती है. हालांकि एक तिहाई पार्षद लिखित में देकर बैठक की मांग कर सकते हैं. सदन में महापौर का फैसला निर्णायक होता है, उसका आदेश अनसुना करने पर महापौर किसी भी पार्षद को सदन से बाहर निकाल सकता है या निलंबित कर सकता है. सदन की बैठक में प्रस्तुत होने वाले विषयों का निर्धारण वर्ष का समय महापौर निश्चित करते हैं. पद की दृष्टि से निगम में महापौर सर्वोपरि होता है. आयुक्त समेत सभी अधिकारियों को महापौर बुला सकता है निगम संबंधी किसी भी दस्तावेज को महा सकता है अगर इस्तीफा देना चाहे तो वह इसे महापौर के जरिए निगम सचिव कार्यालय में भेजेगा.