
सेंट्रल गवर्नमेंट इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल (CGIT) के एक मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला काफी देर तक पढ़ने के बाद भी कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर कोर्ट क्या कहना चाहता है? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिंदी में कहा कि ये क्या जजमेंट लिखा है! मैं इसे दस बजकर दस मिनट पर पढ़ने बैठा और 10.55 तक पढ़ता रहा. हे भगवान! वो हालत अकल्पनीय है.
इस पर जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया. इसमें इतने लंबे-लंबे वाक्य हैं, कि कुछ पता ही नहीं चल रहा कि आखिर शुरू में क्या कहा गया और अंत में क्या? एक कॉमा दिखा भी तो अटपटे तौर पर लगा रखा था. ये फैसला पढ़ते समय कई बार तो मुझे अपने ज्ञान और अपनी समझ पर भी शक होने लगा. मुझे फैसले का आखिरी पैरा पढ़ने के बाद अपने सिर पर टाइगर बाम लगाना पड़ा.
फिर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फैसला ऐसा सरल लिखा होना चाहिए जो किसी भी आम आदमी की समझ में आ जाए. जस्टिस कृष्ण अय्यर के फैसले ऐसे ही होते थे जैसे वो कुछ कह रहे हैं और पढ़ने वाला सब कुछ उतनी ही सरलता से समझ रहा है. शब्दों की कारीगरी. दरअसल हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के नवंबर 2020 में आए, इस 18 पेज के फैसले का कोई निर्णायक पहलू नहीं दिखता.
दरअसल ये मामला केंद्र सरकार के एक कर्मचारी की याचिका पर आधारित था, जिसमें हाईकोर्ट ने CGIT के आदेश पर अपनी मुहर लगाई थी. CGIT ने एक कर्मचारी को कदाचार का दोषी मानते हुए दंडित किया था. दंडित कर्मचारी हाईकोर्ट गया. हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट आया.