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फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को सुप्रीम कोर्ट से सीतापुर केस में बेल लेकिन नहीं आ सकेंगे जेल से बाहर

फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की थी. याचिका में जुबैर की ओर से कहा गया था कि उन्हें इंटरनेट पर जान से मारने की धमकी दी जा रही है. याचिका में जुबैर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उन्होंने एक ट्वीट के लिए दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था.

फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर. -फाइल फोटो फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर. -फाइल फोटो
नलिनी शर्मा/संजय शर्मा/अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 08 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 8:12 PM IST
  • गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी याचिका
  • 27 जून को जुबैर को दिल्ली पुलिस ने किया था गिरफ्तार

फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सीतापुर में दर्ज मामले में मोहम्मद जुबैर को पांच दिन की जमानत दे दी. बता दें कि मोहम्मद जुबैर फिलहाल जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे. जुबैर दिल्ली पुलिस के न्यायिक हिरासत में रहेंगे.

शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने यूपी सरकार और पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा कि जुबैर को शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी जा रही है. जुबैर न्यायिक क्षेत्र से बाहर नहीं जा पाएंगे. साथ ही मामले में फैसला होने तक जुबैर कोई ट्वीट नहीं करेंगे. उधर, तुषार मेहता ने गुजारिश की कि अंतरिम आदेश को सोमवार तक टाल दिया जाए, लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया.

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फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ने अपनी जान को खतरा बताते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिका में जुबैर ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13 जून को जुबैर की एक रिट याचिका खारिज कर दी थी.

जुबैर की ओर से सीनियर वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि यूपी पुलिस की ओर से उनके मुवक्किल के खिलाफ दर्ज FIR से पता चलता है कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. गोंजाल्विस ने कहा कि उनका काम समाचारों को सत्यापित करना है, और वह नफरत फैलाने वाले भाषणों की तथ्य-जांच करने की भूमिका निभा रहे थे. हम इलाहाबाद हाईकोर्ट गए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली. 

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बता दें कि जुबैर के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप है. जुबैर को 27 जून को दिल्ली पुलिस ने एक हिंदू भगवान के खिलाफ 2018 में पोस्ट किए गए एक भड़काऊ ट्वीट से संबंधित एक मामले में गिरफ्तार किया था. 1 जून को उत्तर प्रदेश पुलिस ने जुबैर के खिलाफ हिंदू संतों के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने के लिए एक और प्राथमिकी दर्ज की थी.

सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने की सुनवाई

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान सॉलिसिटर जनरल एसजी तुषार मेहता ने याचिका के आधार पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि जुबैर पुलिस कस्टडी में है. उसकी जमानत याचिका निचली अदालत से खारिज होने से पहले ही यहां याचिका लगाई है. इस पर जुबैर की ओर से कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि ये आरोप गलत है.

तुषार मेहता ने कहा कि जुबैर के वकील गोंजाल्विस ने कोर्ट को ये नहीं बताया कि एफआईआर 1 जून की है. उनकी जमानत याचिका कल खारिज कर दी गई और वह पुलिस हिरासत में हैं. कोर्ट के आदेश के बाद जुबैर पुलिस रिमांड पर है. यह याचिका दायर करने से पहले ही गुरुवार सुबह जुबैर की जमानत खारिज कर दी गई थी. 

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इसके बाद सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि निचली अदालत ने जो आदेश गुरुवार को दिया था, उसकी कॉपी देर रात आई थी. मैं कोर्ट में मौजूद हूं और इस बारे में अभी सुप्रीम कोर्ट को सूचना दे रहा हूं. इसके बाद तुषार मेहता ने कहा कि आप एक हलफनामा दाखिल करें.

सॉलिसिटर जनरल ने जानकारी छिपाने का लगाया आरोप

तुषार मेहता ने अदालत के सामने आरोप लगाया कि जुबैर की ओर से जानबूझकर इस जानकारी को छिपा लिया गया कि सीतापुर कोर्ट ने जमानत से इनकार कर दिया था और उन्हें पुलिस हिरासत में भेज दिया था. 

इस पर जुबैर के वकील गोंजाल्विस ने कहा कि यहां मैंने इलाहाबाद HC के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें जुबैर की अग्रिम जमानत की याचिका को खारिज कर दिया गया था. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट में मेरा तर्क है कि FIR के लिए कोई आधार नहीं है. 

जुबैर के वकील के इस तर्क के बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि अगर जमानत खारिज हो गई है तो आपके पास दूसरा उपाय है. आपको इसका लाभ उठाना चाहिए. इस पर गोंजाल्विस ने कहा कि मैं एफआईआर रद्द करने की मांग कर रहा हूं. कृपया मेरे ट्वीट देखें. इस मामले की बुनियाद एक ट्वीट है. हम कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हैं और पुलिस या न्यायिक हिरासत का कोई सवाल ही नहीं है. 

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तुषार मेहता बोले- विदेश से फंडिंग के आरोप में कई तथ्य मिले हैं

UP सरकार की तरफ से तुषार मेहता ने कहा कि जुबैर के ट्वीट के जरिये समाज में अस्थिरता फैलाने का मकसद साफ समझ में आता है. इसी वजह से दिल्ली पुलिस ने जुबैर को गिरफ्तार भी किया है. विदेश से फंडिंग के आरोप में भी कई तथ्य मिले हैं. इसी वजह से कोर्ट ने इनकी जमानत याचिका खारिज की है. ये सभी तथ्य कोर्ट से छुपाए गए थे जो जांच एजेंसी ने सामने लाकर रखे.

तुषार मेहता ने कहा कि आरोपी के ट्वीट्स की वजह से कानून व्यवस्था गंभीर हो सकती थी. दिल्ली की कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था और फिर रिमांड की मंजूरी दी थी और पुलिस रिमांड में आरोपी को उचित वजह से रखा गया. मेहता ने कहा कि पिछले 2 साल मे 5 केस जुबैर के खिलाफ हुए हैं, ये आदतन अपराधी है.

कोर्ट में जस्टिस माहेश्वरी ने सॉलिसिटर जनरल से जांच से संबंधित तथ्य जानने चाहे तो मेहता ने कहा कि आईओ इस बारे में बेहतर बता सकेंगे. फिर आईओ की तरफ से एएसजी एसवी राजू ने बताया कि हमने जांच में जुबैर के लार्जर सिंडिकेट का सुराग मिला. इसने बड़े फॉलोवर्स वाले धर्म गुरुओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट डाल रखी थी. अलग-अलग धर्म के लोगों को नफरत फैलाने वाला बताया गया था. आपस में हिंसक संघर्ष हो सकता था. राजू ने बताया कि जुबैर के मोबाइल से कई आपत्तिजनक चीजें बरामद होने के बाद लैपटॉप बरामदगी के लिए जुबैर को बंगलुरु ले गए. वहां से कई महत्वपूर्ण जानकारियां और सबूत मिले.

गोंजाल्विस बोले- जबैर धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दे रहे थे

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जुबैर के वकील गोंजाल्विस ने कहा कि उनके मुवक्किल वास्तव में धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दे रहे थे. उनके खिलाफ सेक्शन 153ए बिल्कुल लागू नहीं होता है. मैं नफरत फैलाने वालों से सिर्फ इतना कह रहा था कि नफरत को बढ़ावा देना बंद करो. 

पुलिस के जांच अधिकारी की ओर से ASG एसवी राजू ने कहा कि अदालत को इस बारे में मैं विस्तार से जानकारी दूंगा. उन्होंने कहा कि जुबैर के खिलाफ सेक्शन 295 लागू होता है. कई संतों के खिलाफ जुबैर ने भड़काऊ और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए ट्वीट किए हैं. 

एसवी राजू ने कहा कि कई मौकों पर धार्मिक भावनाओं को आरोपी ने भड़काया. यही वजह थी कि उनसकी जमानत निचली अदालत ने खारिज की. दिल्ली कोर्ट ने ही जुबैर की जमानत अर्जी रद्द की और कस्टडी में भेजा था. जुबैर ने कोर्ट को ट्रांजिट ऑर्डर का जिक्र नहीं किया. ये भी नहीं बताया कि इसने वहां यूपी में भी जमानत अर्जी लगा रखी है.

जुबैर की रिहाई पर संशय
इस बीच मोहम्मद जुबैर की रिहाई पर संशय बरकरार है. सीतापुर के बाद अब लखीमपुर के एक मामले में जुबैर के खिलाफ वारंट 'B' जारी किया गया है. लखीमपुर में एक स्थानीय पत्रकार ने वर्ष 2021 में धार्मिक भावनाओं को लेकर मोहम्मदी थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी. थाने में अपराध संख्या 511/21 धारा 295A के तहत मामला दर्ज किया गया था.

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