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किन्नर समाज पर नोटबंदी की मार

दिल्ली के मित्र ट्रस्ट की रुद्रानी छेतरी चौहान कहती हैं, 'दिल्ली और देश के किन्नर समाज को बड़ा झटका है. हमारे डेरों में लगभग अधिकतर किन्नर अनपढ़ ही होते हैं जिनका बैंकों से कोई लेना देना नही होता जिस कारण उन्हें मिली भिक्षा उनके डेरों में ही रहती है, जिसे लेकर अब यह एक बड़ी मुसीबत में है.'

नोटबंदी का पड़ रहा नोटबंदी पर असर नोटबंदी का पड़ रहा नोटबंदी पर असर
नरेंद्र सैनी
  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 4:34 PM IST

आज जब नोटबंदी के फैसले से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है, और हर कोई अपनी बात मजबूती से रखने की जुगत में है. सरकार अगर अपनी वाहवाही में लगी है तो आम आदमी इस फैसले से त्रस्त नजर आ रहा है. लेकिन समाज का एक तबका ऐसा भी है जो सदियों से उपेक्षित है, और उसकी कोई आवाज भी नहीं है. यह है थर्ड जेंडर. इस समुदाय के अधिकतर सदस्य भीख मांग या खास मौकों पर नाच-गाकर जीविका चलाते हैं और वे सरकार के इस फैसले से सबसे ज्यादा ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

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दिल्ली के मित्र ट्रस्ट की रुद्रानी छेतरी चौहान कहती हैं, 'दिल्ली और देश के किन्नर समाज को बड़ा झटका है. हमारे डेरों में लगभग अधिकतर किन्नर अनपढ़ ही होते हैं जिनका बैंकों से कोई लेना देना नही होता जिस कारण उन्हें मिली भिक्षा उनके डेरों में ही रहती है, जिसे लेकर अब यह एक बड़ी मुसीबत में है.'

हम अपने समाज को कैसे बचाएं ?
इनके पास भिक्षा का पैसा है. जो दर-दर भीख मांगकर इकट्टा किया गया है. रुद्राणी मानती हैं कि किन्नर समाज बुरी तरह डरा हुआ है. इनका कहना है कि हमारे लिए कौन-सा कानून है जिसके तहत हम अपने समाज को बचाएं? हम तो मोदी की इस घोषणा से एक ही बार में बर्बाद हो गए हैं. हालात ऐसे हो गए हैं कि इन लोगों के पास पुराने नोट कोई नहीं ले रहा है और कोई भीख में भी कुछ नहीं दे रहा है. एक किन्नर के मुताबिक, 'कई किन्नरों की हालत तो भूखों मरने की आ गई है. अब तो दूध और रोजमर्रा की चीजों से भी परेशान हो गए हैं कोई उधार भी नहीं दे रहा. अब समझ में नही आ रहा की क्या करें.'

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रुद्राणी इस बारे में कहती हैं, 'हुकूमत के तुगलकी फरमान मे पिसता आम आदमी और एकतरफा भेदभाव वाले नियमों की मार झेलता हमारा किन्नर समाज जिसको मुख्यधारा मे जोड़ने की बात तो सरकार ने अपना 56 इंच का सीना ठोक कर कई बार कही है. लेकिन आज हमारे हालात से सब बेखबर हैं, मंदिर, मस्जिद और सभी धर्मस्थलों की धन आवक हर तरह के टैक्स से फ्री है. पर क्या सरकार का स्तर इतना गिर गया है. किन्नर समाज न किसी बिजनेस से जुड़ा है न किसी उद्योग से. उनकी दो वक्त की रोटी का सवाल सिर्फ उन घरों से जुड़ा है जहां पर कोई मंगल अवसर हो.

चंद रुपये अपने कल के लिये बचा कर रखने वाला, अपने दुख दर्द मे काम आने के लिए रखता है यह कोई ब्लैक मनी नहीं है सिर्फ बुढ़ापे मे जीने का सहारा है जिसको लोगो ने सिर्फ एक तरह से भीख मे दिया है.' किन्नर समाज की चिंता एकदम सही है, लेकिन काला धन के फेर में फंसी सरकार इनकी सुध ले पाएगी.

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